आज धनतेरस है, आज के ही दिन से दीपावली का पाँच दिवसीय प्रकाश पर्व प्रारंभ होता है। धन तेरस, छोटी दीपावली, दीपावली, अन्नकूट तथा भाई दूज इस प्रकार पाँच दिनों तक हम सब प्रकाश की आराधना में लग जाते हैं। शायद यह अपनी तरह का एक ही पर्व है जहाँ प्रकाश की आराधना की जाती है। जहाँ यह कहा जाता है कि अज्ञान के अँधेरों से हमें ज्ञान के उजाले की ओर ले चलो।
आइये आज धनतेरस के पर्व पर तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं सुलभ जायसवाल, डॉ. संजय दानी, अश्विनी रमेश और चरनजीत लाल इन शायरों के साथ
सुलभ जायसवाल
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मुसलसल जल रहे दीपक, मुसलसल बढ़ रहे दीपक
कभी सुस्ता नहीं सकते, हमेशा जागते दीपक
जो सूरज चाँद कर सकते, वही हिम्मत है दीपक में
अँधेरा चीर कर बढ़ना, हमें समझा गए दीपक
हमेशा हौसला रखना, यहाँ तारे उगाने का
तरीका जगमगाने का, यही सिखला गए दीपक
हिफ़ाज़त धर्म है उनका, समझते जान से बढ़कर
"उजाले के मुहाफ़िज़ हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक"
इरादे नेक रखना तुम, कि दुनिया आज़माती है
यही दुनिया झुकाये सर, दिखे जब सामने दीपक
तुम्हें हर हाल चलना है, हवाओं में कि बारिश में
लड़ाई है अँधेरों से, जरा संभाल के दीपक
जो देना था दिया सब को, पराया कौन अपना है
सभी बच्चे हैं पूर्वज के, यही बस मानते दीपक
गली, घर, द्वार रौशन है, अमावस की दिवाली में
मकानों पर चढ़े दीपक, कतारों में सजे दीपक

मुसलसल जल रहे दीपक, मुसलसल बढ़ रहे दीपक
कभी सुस्ता नहीं सकते, हमेशा जागते दीपक
जो सूरज चाँद कर सकते, वही हिम्मत है दीपक में
अँधेरा चीर कर बढ़ना, हमें समझा गए दीपक
हमेशा हौसला रखना, यहाँ तारे उगाने का
तरीका जगमगाने का, यही सिखला गए दीपक
हिफ़ाज़त धर्म है उनका, समझते जान से बढ़कर
"उजाले के मुहाफ़िज़ हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक"
इरादे नेक रखना तुम, कि दुनिया आज़माती है
यही दुनिया झुकाये सर, दिखे जब सामने दीपक
तुम्हें हर हाल चलना है, हवाओं में कि बारिश में
लड़ाई है अँधेरों से, जरा संभाल के दीपक
जो देना था दिया सब को, पराया कौन अपना है
सभी बच्चे हैं पूर्वज के, यही बस मानते दीपक
गली, घर, द्वार रौशन है, अमावस की दिवाली में
मकानों पर चढ़े दीपक, कतारों में सजे दीपक
मतले में ही बहुत सकारात्मक प्रयोग किया है सुलभ ने, दीपक के सतत संघर्ष को रूपक बना कर हम सब की ज़िंदगी का मानों पूरा क़िस्सा कह दिया है। और मतले के बाद का शेर भी उसी रंग में बन पड़ा है। गिरह का शेर भी बहुत अच्छा बना हैजिसमें दीपक के बहाने से उजालों की रक्षा की बात बहुत सुंदर तरीक़े से कही है। नेक इरादों वाला शेर तो मानों ईसा से लेकर गांधी तक सबकी कहानी कह रहा है। और सबको एक समान मान कर सबको एक समान उजाला देने की बात बहुत ही सुंदर है। सारे शेर मानों दीपक की ज़िंदगी का पूरा फलसफ़ा बन गए हैं। बहुत सुंदर वाह, वाह, वाह।
डॉ संजय दानी दुर्ग

उजालों के मुहाफिज़ हैं तिमिर से लड़ रहे दीपक
जलन का दंश सहते आग अपने सर रखे दीपक
ज़रा सा दर्द भी हम सह नहीं पाते कभी यारों
मगर तन को जलाकर मरते दम तक खुश दिखे दीपक
मेरा औ उनके जीने का तरीका है जुदा बिल्कुल
मगर हर घर में बिल्कुल इक तरीके से जले दीपक
बिना ही स्वार्थ के औरों के खातिर ज्यूँ जले दीपक
उसी ही तौर से इंसानों के दिल में बसे दीपक
मदद के दरिया में डुबकी लगाना है कठिन दानी
मगर उस राह पर बेखटके ही आगे चले दीपक
बहुत अच्छे से मतले में ही संजय जी ने गिरह का शेर बना लिया है। अपने सिर पर आग रख कर दुनिया को उजाला देने की बात बहुत अच्छे से कही है। अगले ही शेर में मानों उसी बात को और अलग तरीक़े से कहा है। अपने आप को जला कर उजाला करने की बात बहुत अच्छे से कही है। अगले शेर में हर घर का अलग स्वभाव मगर हर घर में दीपक का एक समान प्रकाश, बहुत सारे अर्थ छिपाए हुए है यह शेर। मकता भी अच्छा है जिसमें दूसरों के लिए जीने की राह पर चल रहे दीपक से प्रतीक लेकर बहुत अच्छे से बात कही गई है। बहुत अच्छी ग़ज़ल, बहुत सुंदर वाह, वाह, वाह।
अश्विनी रमेश
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अमावस की अँधेरी रात को हैं ये खले दीपक
अँधेरे को मिटाते झिलमिलाते जल गए दीपक
खड़े जो तानकर सीना हमारी सरहदों पर हैं
डटे वो वीर सैनिक सरहदों के अपनी ये दीपक
हर इक बच्चा पढ़ेगा तो उजाला ज्ञान का होगा
सदी में इल्म की इक रोशनी ये कर रहे दीपक
सियासत गर हमारी ये सुधर जाए तो अच्छा है
यहाँ पर भी जले जो आम जन की आस के दीपक
कभी अहसास उनकी दिक्कतों का तुमको हो जाए
कभी तो फिर किसानों की जलें उम्मीद के दीपक
अँधेरों ने तो की साजिश मगर दीपक मुख़ालिफ़ थे
अँधेरों से नहीं हरगिज़ कभी भी ये डरे दीपक
छटेगा ये अँधेरा अब गरीबी का यहां कैसे
घरो में मुफ़लिसों के जो दिवाली में जले दीपक

अमावस की अँधेरी रात को हैं ये खले दीपक
अँधेरे को मिटाते झिलमिलाते जल गए दीपक
खड़े जो तानकर सीना हमारी सरहदों पर हैं
डटे वो वीर सैनिक सरहदों के अपनी ये दीपक
हर इक बच्चा पढ़ेगा तो उजाला ज्ञान का होगा
सदी में इल्म की इक रोशनी ये कर रहे दीपक
सियासत गर हमारी ये सुधर जाए तो अच्छा है
यहाँ पर भी जले जो आम जन की आस के दीपक
कभी अहसास उनकी दिक्कतों का तुमको हो जाए
कभी तो फिर किसानों की जलें उम्मीद के दीपक
अँधेरों ने तो की साजिश मगर दीपक मुख़ालिफ़ थे
अँधेरों से नहीं हरगिज़ कभी भी ये डरे दीपक
छटेगा ये अँधेरा अब गरीबी का यहां कैसे
घरो में मुफ़लिसों के जो दिवाली में जले दीपक
अमावस और दीपक का चिंरतन संघर्ष मतले में बहुत अच्छे से बाँधा गया है। अगले शेर में सरहदों की रक्षा कर रहे सैनिकों की तुलना दीपकों से की गई है, सच में वे सैनिक हमारी सीमाओं पर जल रहे दीपक ही तो हैं। ज्ञान की रोशनी फैला रहे दीपकों की बात बगले शेर में अच्छे से कही गई है। किसानों की बात कहने वाला शेर बहुत सुंदर है, सच में किसान के जीवन का संघर्ष किसी को नहीं पता, सब यही कहते हैं कि किसान का जीवन बहुत आसान है। अगले दोनों शेरों में अँधेरे तथा दीपक का संघर्ष अश्विनी जी ने बहुत अच्छे से चित्रित किया है। बहुत अच्छी ग़ज़ल, बहुत सुंदर वाह, वाह, वाह।
चरनजीत लाल
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उजाले के मुहाफ़िज़ हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक
इलाही नूर का दिलकश नज़ारा बन गए दीपक
वो काशी में प्रकाशित हैं औ काबे में भी हैं रौशन
धरम निरपेक्षता का इक उदाहरण हैं बने दीपक
वबा कोविड की क्या बरपी कई अपने यहाँ बिछुड़े
क़तारें बन के जन्नत में हैं स्वागत में जले दीपक
ख़ुदा ए पाक, ऐ मुश्क़िल कुशा, परमेश्वर, मालिक
सवाली बन के रहमत की दुआएँ माँगते दीपक
चराग़-ए-लौ से रौशन हो उठी हर एक सू देखो
नशात-ओ-ऐश हर मायूस दिल में भरने लगे दीपक
महामारी में कोविड की जिन्होंने अपने हैं खोए
उन्हीं तारीक आँखों को मुनव्वर कर रहे दीपक
चरागाँ दिल के महलों में ‘चरन’ होने दो अब हर सू
नज़र जिस ओर भी जाए, उधर जलता दिखे दीपक

उजाले के मुहाफ़िज़ हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक
इलाही नूर का दिलकश नज़ारा बन गए दीपक
वो काशी में प्रकाशित हैं औ काबे में भी हैं रौशन
धरम निरपेक्षता का इक उदाहरण हैं बने दीपक
वबा कोविड की क्या बरपी कई अपने यहाँ बिछुड़े
क़तारें बन के जन्नत में हैं स्वागत में जले दीपक
ख़ुदा ए पाक, ऐ मुश्क़िल कुशा, परमेश्वर, मालिक
सवाली बन के रहमत की दुआएँ माँगते दीपक
चराग़-ए-लौ से रौशन हो उठी हर एक सू देखो
नशात-ओ-ऐश हर मायूस दिल में भरने लगे दीपक
महामारी में कोविड की जिन्होंने अपने हैं खोए
उन्हीं तारीक आँखों को मुनव्वर कर रहे दीपक
चरागाँ दिल के महलों में ‘चरन’ होने दो अब हर सू
नज़र जिस ओर भी जाए, उधर जलता दिखे दीपक
मतला बहुत अच्छा है एकदम रवायती तरीक़े से गिरह को मतले के शेर में ही चरनजीत जी ने बहुत अच्छे से बाँधा है। मिसरा सानी बहुत अच्छा बन पड़ा है। अगला शेर हमारे देश के मूल स्वरूप को कमाल तरीक़े से बता रहा है काशी हो या काबा, दीपक का प्रकाश हर जगह समान होता है। इसके बाद के दोनों शेर पिछले कुछ समय से जिस महामारी से पूरा विश्व जूझ रहा है, उसको लेकर बहुत अच्छे से बात कह रहे हैं। लेकिन उसके बाद दीपकों द्वारा हर जीवन में एक बार फिर से प्रकाश का प्रवेश करने की बात सामने आ रही है बहुत सुंदर तरीक़े से । मकता भी बहुत सुंदर है जहाँ दिलों में भी उजाला करने की बात कही जा रही है। चरनजीत लाल जी अमेरिका में रहते हैं और हमारे तरही मुशायरे में पहली बार आए हैं। उनका स्वागत है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
आज की चारों ही शायरों ने बाकमाल ग़ज़लें कह कर मुशायरे को मानों एकदम से ऊँचाई पर पहुँचा दिया है। आप सभी को एक बार फिर से धनतेरस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। दाद दीजिए आज के इन शायरों को और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।