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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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जाड़ों के मौसम पर मुशायरे के लिए मिसरा

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दीपावली का मुशायरा बहुत अच्छा रहा, सभी ने जिस प्रकार बढ़-चढ़ कर इसमें हिस्सा लिया उससे बहुत उत्साह बढ़ा है। ऐसा लगा जैसे हमारा वही पुराना समय लौट कर आ गया, जब हम इसी प्रकार ब्लॉग पर मिलते थे और इसी प्रकार ग़ज़लें कहते कहाते थे। हम कई बार कहे हैं कि वह समय तो बीत गया, होता असल में यह है कि हम स्वयं ही उस समय से बाहर निकल कर आ जाते हैं और उस समय में फिर लौटने के हमारे पास समय ही नहीं होता है। ऐसा लगता है कि जैसे वह समय किसी दूसरे जीवन की बात हो। लेकिन हम कभी भी उन बातों को अपने जीवन में दोहरा सकते हैं, और उनके साथ एक बार फिर चल सकते हैं। जैसे अभी हमारे दीपावली के मुशायरे में कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि हम लगभग पन्द्रह साल पूर्व जिस उत्साह के साथ मुशायरे में जुड़ते थे, वैसे ही उत्साह के साथ अब भी जुड़ रहे हैं। हाँ यह बात अलग है कि कुछ लोग जो पहले आते थे, उनकी अनुप​​स्थिति अब महसूस होती है, किन्तु यह भी तो है कि कई नए मुसाफ़िर भी जुड़ गए हैं हमसे, जो नए जु़ड़ रहे हैं, उनमें नएपन का उत्साह है। असल में सफ़र का मतलब ही यही होता है कि कुछ छूटेंगे, कुछ जुड़ेंगे। यह तो रेल यात्रा है, जिसमें हर स्टेशन पर कोई उतर जाता है, कोई चढ़ जाता है। कई तो ऐसे भी साथी हैं, जो सदा के लिए ही हमसे बिछड़ गए, जैसे महावीर जी, प्राण जी। मगर बात वही है कि यह तो सफ़र का स्वभाव ही होता है, यहाँ हर किसी को अपना स्टेशन आने पर उतर ही जाना पड़ता है। मगर सफ़र कभी नहीं रुकता। सफ़र मस्ट गो ऑन।

इस बार इच्छा हुई थी कि हमने चूँकि बरसात पर, गर्मी पर, वसंत सब पर मुशायरा आयोजित किया। दीवाली, ईद, राखी, होली, पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी पर मुशायरा किया, लेकिन जाड़ों के मौसम और क्रिसमस पर कभी आयोजन नहीं किया। तो इस बार सोचा है कि सर्दियों पर मुशायरा किया जाए। सर्दियों के साथ उसमें क्रिसमस पर भी शेर हों, बीतते बरस की बात हो।

तो इस मुशायरे के लिए जो मिसरा सोचा है, वह है

यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम

122-122-122-122

बह्र हम सब की बहुत जानी पहचानी बह्र है फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन जिस पर बहुत लोकप्रिय गीत है –मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए। और रामचरित मानस में शिव की वंदना –नमामी शमीशान निर्वाण रूपं  । बह्रे मुतक़ारिब मुसमन सालिम। इसमें रदीफ़ नहीं है, मतलब ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल है जिसमें रदीफ़ नहीं है केवल क़ाफ़िया की ही बंदिश है। और क़ाफ़िया है “मौसम”। आप सोच रहे होंगे कि यह तो मुश्किल क़ाफ़िया है। नहीं बिल्कुल नहीं है, इसमें आप 2 के वज़्न का, 22 के वज़्न का और 122 के वज़्न का क़ाफ़िया ले सकते हैं। जैसे दो के वज़्न पर - दम थम ख़म छम ग़म कम हम नम आप ले सकते हैं। 22 के वज़्न पर आप ले सकते हैं-महरम बरहम बे-दम सरगम हम-दम रुस्तम मातम आदम आलम रेशम ताहम दम-ख़म परचम शबनम हमदम। और 122 के वज़्न पर - मोहर्रम मुजस्सम छमा-छम ले सकते हैं आप। इसके अलावा भी कई क़ाफ़िये हैं इसमें।

सोचा यह है कि दिसंबर के दूसरे सप्ताह से यह मुशायरा प्रारंभ किया जाएगा और क्रिसमस तक इसका आयोजन किया जाएगा। तब तक हो सकता है कई ऐसे लोग भी ग़जल़ कह दें, जो पिछले कई मुशायरों से लापता हैं। तो मिलते हैं जाड़ों के मुशायरे में, गुलाबी ग़ज़लों के साथ।


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