सौरभ पाण्डेय
रजाई में दुबके, कहे सुन छमाछम..
किचन तक गयी धूप जाड़े की पुरनम
चकित चौंक उठतीं नवोढ़ा की आँखें
मुई चूड़ियों मत करो शोर मद्धम
तुम्हीं को मुबारक जो ठानी है कुट्टी
नजर तो नजर से उठाती है सरगम
गजल-गीत संवेदना के हैं जाये
रखें हौसला पर जमाने का कायम
भरी जेब, निश्चिंतता हो मुखर तो
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
निराला जो ताना, तो बाना गजब का
नए नाम-यश का उड़ाना है परचम
रिसालों में तिकड़म से फोटू छपा कर
बजा गाल ’सौरभ’ कहे.. ’बस हमीं हम’
मतले में ही सौरभ जी ने प्रकृति को अपने साथ ले लिया है तथा रजाई में छमाछम करती हुई जाड़े की धूप को किचन तक जाते हुए देख रहे हैं। और अगले ही शेर में नई दुल्हन को चौंकने से बचाने के लिए शायर का चूड़ियों से शांत रहने को कहने का बिम्ब बहुत ही सुंदर बन पड़ा है। अगले शेर में कट्टी तथा नज़र से नज़र को मिलती सरगम बहुत ही सुंदर बनी है। ग़ज़ल गीत का सचमुच ही जन्म संवेदना की कोख़ से होता है। गिरह का शेर एकदम ही अलग तरह से बाँधा है सौरभ जी ने सच में जब जेब भरी हो तो हर मौसम सुहावना होता है। और अगले दोनों शेरों में आत्ममुग्धता को मज़ाक क्या सलीक़े से उड़ाया गया है। सच में केवल अपने फोटो छपवा कर नाम कमाना ही रह गया है इन दिनों साहित्य में। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह, वाह, वाह।
तिलक राज कपूर
कहीं सर्दियों से हैं कुहसार बेदम
कहीं गुनगुनी धूप थामे है मौसम।
भरी भीड़ में जब मिला एक हमदम
छुपाया मगर छुप न पाया कभी ग़म।
कटी रात आंखों में करवट बदलते
सबेरे दिखी लॉन की घास पुरनम।
सरकती रहीं कांच की खिड़कियों पर
थिरकती हुईं ओस बूंदें छमाछम।
वहाँ बर्फ़ की एक चादर बिछी है
"यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम।"
गुलाबी अधर नर्म कलियों के जैसे
यहाँ किसलिए आ के ठहरी है शबनम।
इसी कश्मकश में हमारा मिलन था
बताएं तो क्या-क्या, छुपाएं तो क्या हम।
तुम्हारा बदलना भी मौसम के जैसा
धड़कता है दिल जब बदलती हो मौसम।
कुहसार का सर्दियों से बेदम होना तथा गुनगुनी धूप का मौसम को थाम लेना, बहुत ही सुंदर बना है मतला। और हुस्ने मतला भी सुंदर बना है जिसमें किसी अपने के सामने आते ही ग़म छलक उठने की बात कही गई है। सारी रात जब करवट बलते निकलती है तो सबेरे लॉन की घास भी नम हो जाती है, बहुत ही अच्छा प्रयोग है। और काँच की खिड़की पर शबनम की बूँदों का छमाछम सरकना बहुत सुंदर। बर्फ़ की चादर के साथ गुलाबी मौसम की गिरह बहुत सुंदर है। गुलाबी अधरों पर शबनम का आकर ठहरना शायर के लिए हैरानी कर रहा है। और अगले शेर में क्या बताएँ क्या छुपाएँ की बात बहुत सुंदरता के साथ आई है। और किसी के बदलने से मौसम की तुलना बहुत ही सुंदर है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
गिरीश पंकज
लगे है अभी कुछ शराबी है मौसम
'यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम'
सभी ओढ़ लेटे रजाई यहाँ पर
लगी ठंड जैसे नवाबी है मौसम
हुए लाल चेहरे बढ़ी कुछ नज़ाकत
ये सर्दी भी बोले शबाबी है मौसम
मोहब्बत का इज़हार सर्दी में मुश्किल
यही एक तुझ में खराबी है मौसम
अगर शीत में बाँट दें ऊनी कपड़े
तो हम भी कहेंगे सबाबी है मौसम
गिरीश जी ने क़ाफ़िया बदल दिया है तथा रदीफ़ भी लगा दिया है। मगर उससे भी सुंदरता बढ़ गई है। मतला बहुत सुंदर है। रज़ाई ओढ़ कर सभी लेटे हुए हैं नवाबी मौसम की छाँव में। अगले ही शेर में चेहरे की लाली का सर्दियों में बढ़ जाना और मौसम का शबाबी हो जाना। मोहब्बत का इज़हार सर्दी में नहीं होने के कारण शायर को मौसम में ख़राबी दिखाई दे रही है। और अंत में परोपकार की भावना के साथ ग़ज़ल को समाप्त किया गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह, वाह, वाह।