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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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आज प्रकाश अर्श का जन्‍मदिन है सो आज प्रकाश से ही सुनते हैं उसकी एक चौंका देने वाली ग़ज़ल । ये ग़ज़ल उन सबको चौंका देगी जिन्‍होंने अर्श का प्रारम्भिक लेखन देखा है ।

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जन्‍मदिवस एक ऐसा अवसर होता है जब हम पीछे मुड़ के देखते हैं । देखते हैं कि जिन उद्देश्‍यों को लेकर पिछले साल आगे चले थे उनमें कहां तक पहुंचे हैं । वे सारे कार्य जिनको हम इसी जीवन में पूरा करना चाहते हैं, वे कार्य अभी किस अवस्‍था में हैं । जन्‍मदिन के दिन पीछे मुड़ के देखना बहुत ज़रूरी है । इसलिये क्‍योंकि इसके ही बाद आपकी आगे की यात्रा की ज़रूरी बातें तय होंगी । एक वर्ष का ये चक्र जब पूरा होता है तो सुकवि अटल बिहारी के शब्‍दों में 'क्‍या खोया क्‍या पाया जग में, मिलते और बिछड़ते मग में'  जैसा आकलन बहुत ज़रूरी है । प्रकाश अर्श का आज जन्‍मदिन है। सबसे पहले तो प्रकाश को पहले शादीशुदा जन्‍मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं । और अब बात प्रकाश की ग़ज़ल की । ये ग़ज़ल मुझे चौंका गई । चौंका गई उस विस्‍तार को दे कर जो प्रकाश की ग़ज़ल में अब देखने को मिल रहा है ।

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ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

आइये प्रकाश अर्श को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं देते हुए सुनते हैं ये ग़ज़ल ।

ARSH

प्रकाश सिंह अर्श

हर वक़्त सोचता हूँ, ये कैसा मस'अला है ?
फूलों का रंग क्या हो, मौसम पे आ टिका है !

रख कर हक़ीक़तों को गिरवी मैं आ गया हूँ ,
कुछ लोग कह रहे थे,  तू ख़ाब बांटता है ?

जब सल्तनत के सारे प्यादे वजीर हैं तो,
ये आम आदमी क्यूँ, क्यूँ इनका मुद्द'आ है ?

मैं रोना चाहता था और ये भी देखिये अब,
किस्मत से एक तिनका आँखों में आ गिरा है !

कुछ तो शऊर ज़िंदा इनमें भी हो की अब तो,
इस शह्र की हवा में ये जिस्म जल रहा है !

सब खर्च कर के देखो रिश्तों की अपनी पूंजी,
और फिर ये देखना की आखिर में क्या बचा है ?

ये भीड़ आ लगी है साए से डर के अपने,
जिसकी यहाँ दुकां है वो धूप बेचता है !

दुनिया की तजरबों से मुझको हुआ ये हासिल,
हर रात की सहर सा सब कुछ तो तयशुदा है !

अफवाह की वो आंधी कल ख़ाक कर गई सब,
अब देखना है ये की मलबे में क्या दबा है ?

बौने ही रह गए  हैं आँखों के ख़ाब सारे ,
मजबूरियों का बरगद इस घर में पल रहा है !

इतना तो बस बता दे, क्या दोष था हमारा,
"ये कैदे बामशक्कत जो तूने की आता है !!"

मैं रोना चाहता था और ये भी देखिये अब, ये शेर बहुत बहुत कमाल बना है । इसमें किस्‍मत से आंखों में गिरे तिनके की तो बात ही क्‍या है । पूरी ग़ज़ल उस निम्‍न मध्‍यम वर्गीय जीवन का चित्र बनाती है जो हर पल छोटी छोटी इच्‍छाओं को घुट कर मरते हुए देखता है । बौने ही रह गए हैं आंखों के ख़ाब सारे में बरगद का प्रतीक हैरते में डालने वाला है । कमाल का प्रतीक है । हैरत में हूं । जब सल्‍तनत के सारे प्‍यादे वज़ीर हैं तो में भी उसी प्रकार की सोच सामने आ रही है जिसमें विस्‍तार है मिसर सानी पर कुछ और मेहनत के बाद एक नायाब शेर हो सकता है । वर्तमान के पूरे समय को बखूबी रेखांकित करता हुआ मतला सामने आता है । सब कुछ कह कर कुछ नहीं कहना । बहुत सुंदर वाह वाह वाह ।

तो बच्‍चे को जन्‍मदिन पर बधाई दीजिए और दाद दीजिए उसकी सुंदर ग़ज़ल पर । 


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