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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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मकर संक्रांति का पर्व बीत गया सूर्य भी उत्‍तरायण हो गया है आइये आधी आबादी के साथ चलते हैं आगे लावण्‍या शाह जी, शार्दूला नोगजा जी, पूजा भाटिया जी और डिम्‍पल सिरोही जी की ग़ज़लों के साथ।

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सूर्य के उत्‍तर की ओर हो जाने को एक प्रतीक माना जाता है कि अब ऊर्जा का समय वापस आ रहा है। वैसे तो पृथ्‍वी के कारण ही सूर्य इस प्रकार उत्‍तर और दक्षिण होता रहता है। हमारी भी वही स्थिति होती है। हम कहते हैं कि हमारी ऊर्जा कम हो रही है शक्ति कम हो रही है, लेकिन असल में तो ऊर्जा के सापेक्ष हमारी स्थिति आगे या पीछे, उत्‍तर या दक्षिण या उत्‍तर होती रहती है। ऊर्जा कभी कम नहीं होती, वो कम हो भी कैसे सकती है। बात केवल सापेक्षता की होती है। मुझे लगता है कि आइंस्‍टीन का सापेक्षता का सिद्धांत जीवन में हर जगह लागू होता है। इसीलिए मुझे लगता है कि किसी एक परम सत्‍य को छोड़ कर बाकी सब कुछ सापेक्ष सत्‍य ही है। जो मेरे लिए सत्‍य है वो किसी और के लिए नहीं है। इसका मतलब ये कि वो मेरा सापेक्ष सत्‍य है। दुनिया भर में सारे युद्ध, सारी लड़ाइयां केवल इसी बात को लेकर तो हैं कि हम केवल अपने सापेक्ष सत्‍य को सच मानते हैं और दूसरे के सापेक्ष सत्‍य के बारे में सोचते भी नहीं हैं। एक दिन कहीं प्रबुद्ध चर्चा में मैंने कहा था कि हिन्‍दु और मुस्लिम के बीच मंदिर मस्जिद का कोई झगड़ा नहीं है, असल में दोनों एक दूसरे के सापेक्ष सत्‍य को पहचान नहीं पा रहे हैं। पुरानी अनपढ़ और अशिक्षित पीढ़ी जानती थी, समझती थी, इसलिए सब मिलजुल कर रहते थे । लेकिन आज की ये भौतिक शास्‍त्र और आइंस्‍टीन को रट रट कर बड़ी हुई पीढ़ी नहीं समझ पा रही है। खैर बात कहां से शुरू हुई और कहां पर पहुंची । लेकिन सापेक्षता के सिद्धांत का मैं अपने जीवन में खूब उपयोग करता हूं। जब किसी से कोई विवाद की स्थिति बनती है तो हमेशा ये जानने की कोशिश करता हूं कि उसका सापेक्ष सच क्‍या है। और कई सारे विवाद होने से पहले ही समाप्‍त हो जाते हैं। 

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मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

आज के प्रवचन समाप्‍त होते हैं तो आइये आज तीनों कवयित्रिओं के साथ चलते हैं आगे की काव्‍य यात्रा पर । आइये आधी आबादी के साथ चलते हैं आगे लावण्‍या शाह जी, शार्दूला नोगजा जी, पूजा भाटिया जी और डिम्‍पल सिरोही जी की ग़ज़लों के साथ।

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लावण्या शाह

वह मिलन की यामिनी थी अश्रु से धोई हुई
रूठ कर अभिसारिका थी नींद में खोई हुई

ये कहा उसने था मिलने आऊंगा में ईद पर 
अबके इस महताब की होगी न केवल दीद भर
हाय लेकिन वो न आया ईद फीकी रह गई
अनछुई सी देह की सूनी हवेली रह गई
पड़ गया सिंगार फीका उस नई दुल्हन का सब
ले मिलन की आस तारा आखिरी भी डूबा जब

दो नयन में आंसुओं की फ़स्ल थी बोई हुई
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

लावण्‍या जी की इंतज़ार हमेशा हम सबको इसलिए ही रहता है कि अब उनसे कोई सुंदर सा गीत सुनने को मिलेगा। और इस बार विरह का सुदंर सा गीत लेकर वे आईं हैं। गीत क्‍या है, मानो किसी ने एक रूठ कर सोई हुई अभिसारिका का चित्र बना दिया है। जिस चित्र में ईद है, ईद का चांद है। हवेली है जो इंतज़ार कर रही है कि कोई आए तो वो जगमगा उठे। एक नई दुल्‍हन है जो विवाह के बाद की पहली ईद पर सज संवर के, पूरा सिंगार करके अपने पी की प्रतीक्षा कर रही है जो परदेस कमाने गया है और ईद पर आने का कह के गया है। पर आया नहीं है। सारा सिंगार आंसुओं के खारे खारे पानी  से धुल कर बह रहा है और नायिका रूठ कर सो रही है। देखिये आप भी इस चित्र को और आनंद लीजिए। वाह वाह वाह।

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शार्दूला नोगजा

ज़िन्दगी पथराई, खुशियों की घड़ी सोई हुई
कब कुंवर चूमेगा आ के सुंदरी सोई हुई?

सो नहीं पातीं कपिलवस्तु में व्याकुल नारियाँ
तज गया सिद्दार्थ जब से संगिनी सोई हुई

माफ़ करता है फ़लक इन्सान को सौ बार, फ़िर
छोड़ देता है सुदर्शन शिंजिनी सोई  हुई

ये सियासी जंग वर्णावत में हो, बस्तर में हो
बच निकलते शाह, जलती भीलनी सोई हुई

कर सबर, अपने सिदक तक नेक-बद ख़ुद जायेंगे 
हाँक कर क्या तू जगाता, बन्दगी सोई हुई?

मुस्कुरा, अरुणिम उषा ने पाँव धीमे कर लिए
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई

राधिका! ओ राधिका! ओ राधिका! ओ राधिका!
श्याम मथुरा को चले, तू रह गई सोई हुई

क्‍या आपने अंतिम शेर का जादू देखा, राधिका को पुकारने, बार बार पुकारने से शेर क्‍या सौंदर्य से जगमगा उठा है। मैं इस शेर को पढ़ने के बाद ठिठक गया, ठहर गया। कुछ देर तक उलझा रहा । जब होश आया तो लगा कि ये शेर तो जादू कर रहा है। और एक शेर मेरे मन का, सो नहीं पातीं कपिलवस्‍तु में, मिसरा उला के दर्द को ज़रा महसूसिए। उन नारियों के दर्द को महसूसिए तो उस दर्द को भोग रही हैं । उस्‍ताद कहते थे कि जब तुम दूसरों के दर्द को ठीक प्रकार से स्‍वर दे देते हो तो कविता हो जाती है। यहां भी कविता हो गई है। ऐसा ही एक शेर है वर्णावत में भीलनी के जल जाने का शेर। बहुत सुंदर। और हां उतनी ही नाज़ुकी से गिरह का शेर बांधा है। उफ सुबह के पांव धीमे होना । ग़ज़ब। ग़ज़ब। क्‍या दृश्‍य है । वाह वाह वाह ।

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पूजा भाटिया

था वो आँगन मुफलिसी का,थी ख़ुशी सोई हुई
मौत पहरे पर थी ऑ थी ज़िन्दगी सोई हुई

वो नज़ारा देख कर हम हो गए हैरतज़दा
तीरगी की बांह पर थी रौशनी सोई हुई

था तक़ाज़ा वक़्त का सो ख़र्च लफ़्ज़ों को किया
देखना था किस जगह है  ख़ामुशी सोई हुई

रात में देखा था माँ को जागते सोते हुए
अब ये जाना कैसी लगती है परी सोई हुई

बाग़ है ये या किसी शाइर का इक दीवान है
ओस है पत्तों पे या फिर शायरी सोई हुई

ख़्वाब आँखों में थे लेकिन आंसुओं की ओट में
जैसे हो सहरा की आँखों में नमी सोई हुई

हर तरह के चोंचले हैं हर तरफ़ शो ऑफ है
क्या सभी के दिल में है कोई कमी सोई हुई?

शहर भर में ढूंढती फिरती रही शब् भर जिसे
मेरे दिल में ही मिली वो बेबसी सोई हुई

शाख झुक झुक कर ज़मीं छूती रही थी रात भर
"मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई"

पूजा जी का शायद तरही में प्रथम आगमन है लेकिन धमाकेदार आगमन है। ख्‍़वाब आंखों में थे लेकिन आंसुओं की ओट में, इस शेर में मिसरा सानी में सहरा और नमी के प्रतीक बहुत खूबी से इस्‍तेमाल हुए हैं। बहुत सुंदर तरीके से। इसी प्रकार वो नज़ारा देख कर हम हो गए हैरतज़दा वाला शेर है तीरगी की बांह पर रौशनी के सोए होने का सुंदर दृश्‍य रचा गया है। बहुत ही सुदंर तरीके से। रात को देखा था मां को जागते सोते हुए में मां की तुलना परी से की गई है, इससे पहले सारी ग़ज़लों में बेटी की तुलना परी से की गई थी। लेकिन चूंकि ये एक बेटी का शेर है इसलिए परी की तुलना तो मां से होगी ही। गिरह का शेर भी बहुत सुंदर बन पड़ा है। शाखों का झुक कर ज़मीं छूना बहुत सुंदर है। वाह वाह वाह।

dimple sirohi

डिम्पल सिरोही

मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
यूं लगा उपवन में कोई हो परी सोई हुई

नींद आ पाती नहीं मुझको किसी भी हाल में
देखती हूं जब मैं भूखी जिंदगी सोई हुई

आंख मलती सी सुबह यूं आई है नववर्ष की
नींद से जागी हो जैसे लाडली सोई हुई

भूलकर शिकवे शिकायत यूं सभी आगे बढ़ो
रह न जाए एक इन्सां की खुशी सोई हुई

नींद से मुझको जगा देती है डिम्पल रात में
दिल में कोई आरज़ू कुचली दबी सोई हुई

डिम्‍पल जी पूर्व में भी अपनी ग़ज़ल लेकर हमारे मुशायरे में आ चुकी हैं, आज उनका एक बार फिर से स्‍वागत है। सबसे पहले बात उस शेर की जिसमें आंख मलती हुई नव वर्ष की सुबह इस प्रकार आ रही है  जैसे नींद से जाग कर लाड़ली चली आ रही हो। बहुत खूब । इसी प्रकार से मतले में ही मिसरा ए तरह पर बहुत सुंदर तरीके से गिरह बांधी गई है। दोनों मिसरे एक दूसरे के पूरक होकर उभर रहे हैं। नींद आ पाती नहीं मुझको किसी भी हाल में शेर उसी सामाजिक सरोकार की बात कर रहा है जिसकी चर्चा हम कल भी कर चुके हैं । अच्‍छा लगता है जब शायर इस प्रकार से सामाजिक सरोकारों की ओर इशारा करता है उनकी चर्चा करता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है डिम्‍पल जी ने । वाह वाह वाह।

तो आनंद लीजिए इन चारों रचनाओं का और दाद देते रहिए। मिलते हैं अगले अंक में कुछ और रचनाकारों के साथ।


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