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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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तो आइये होली के तरही मुशायरे की ओर बढ़ते हुए आज तीन और रचनाकारों श्री गिरीश पंकज जी, श्री समीर लाल समीर और श्री मंसूर अली हाशमी की रचनाओं का आनंद लेते हैं ।

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इस बार के तरही मुशायरे में बहुत विविध रंगी ग़ज़लें मिलीं । और अब सामने है सचमुच का विविध रंगी त्‍यौहार । अभी तक होली के मुशायरे के लिये कुछ  रचनाएं मिल चुकी हैं । लेकिन इंतजार है कि और सब लोग भी रचनाएं भेजेंगे । मिसरा तो याद है न

केसरिया, लाल, पीला, नीला,हरा, गुलाबी

कुछ मेल मिले हैं कि रदीफ काफिया कुछ  समझ में नहीं आ रहा है, उनके उदाहरणार्थ  एक मिसरा 'जिसको भी तुमने देखा वो हो गया गुलाबी'' । कुछ लोगों ने पूछा है कि रचना हास्‍य की भेजनी है या सामान्‍य, तो उनके लिये ये कि होली पर कुछ सामान्‍य नहीं होता है ।

तो होली  के लिये जल्‍द से अपनी रचना भेजें ।

एक सूचना -30 मार्च को भोपाल के टीटीटीआई सभागार में आपके मित्र को 'वागीश्‍वरी सम्‍मान' प्रदान किया जायेगा । जो मित्र भोपाल में हों वे सदर आमंत्रित हैं

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने अता की है

girish pankaj

श्री गिरीश पंकज जी 

इक दिन सभी को जाना पड़ता है तयशुदा है
जो भी समझ न पाए तो उसकी ये खता है

अहसान मानता हूँ भगवान् या खुदा का
ये कैद-ए -बामुशक्कत जो तूने की अता है
 

दुःख मिल रहा है मुझको कल तो खुशी मिलेगी
आयेंगे दिन सुनहरे हमको यही पता है

जो खुश नहीं रहेंगे जीवन नरक बनेगा
लगता है आजकल ये हर द्वार की कथा है

वो था बड़ा ही ज़ुल्मी अब भागता फिरे है
छोटा-सा दीप जबसे आँगन में इक जला है

कितने ही लोग ऐसे जिनके छिपे हैं चेहरे
आयेगा वक्त अब तक पर्दा कहाँ हटा है

मन में वसंत छाया बिछुड़ा वो प्यार पाया
मुरझा गया था 'पंकज' सहसा अभी खिला है

सबसे पहले तो मतला बहुत प्रभावी बना है । जीवन की कड़वी सच्‍चाई को बयान करता हुआ मतला बहुत कुछ कह रहा है । घर में  संतान हो जाने के बाद अपराध बोध किस कदर कचोटता है उसका उदाहरण है वो था बड़ा ही ज़ुल्‍मी शेर । और कितने ही लोग ऐसे जिनके छिपे हैं चेहरे में सोच को  विस्‍तार दिया गया है । मकते के शेर में अपने नाम का प्रयोग बहुत सुंदरता के साथ हुआ है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह  ।

sameer lal 

श्री समीर लाल ’समीर’  जी

ये कैदे बामश्क्कत, जो तूने की अता है
ये मुझको दी सजा है या खुद को दी सजा है.

ये दुनिया देखती है,  हाथों में हाथ अपने
इसमें तेरी रजा है, इसमें मेरी रजा है.

इल्ज़ाम जो मोहब्बत, के हम पे लग रहे हैं
तेरी भी कुछ खता है, मेरी भी कुछ खता है.

जो इश्क की गली में,  मंदिर है प्रीत वाला
वो तेरा भी पता है, वो मेरा भी पता है

नाकामियों का मतलब, कोशिश में कुछ कमी है
ये तुझको भी पता है, ये मुझको भी पता है.

है बेरहम ये दुनिया,  दूजा जहां बसाएं
तेरा भी फैसला है मेरा भी फैसला है

एक प्रयोग के तहत ये ग़ज़ल कही गई है । जिसमें मिसरा सानी को एक ही प्रकार से लिखने की कोशिश है । ये प्रयोग पूरी तरह से सफल रहा है। इसी प्रयोग के चलते मतला बहुत  सुंदर होकर सामने आया है । और इल्‍जाम जो मोहब्‍बत के हम पे लग रहे हैं में भी मिसरा सानी का प्रयोग सुंदर बन पड़ा है । जो इश्‍क की गली मे मंदिर है प्रीत वाला में ये प्रयोग अपने सुंदरतम रूप में सामने आया है । नाकामियों का मतलब में भी ये प्रयोग बहुत खूब बना है । सुंदर ग़ज़ल,वाह वाह वाह ।

Mansoor ali Hashmi

श्री मंसूर अली हाशमी जी

हरदम कचोटती जो वो  अंतरात्मा है,
काजल की कोठरी में जलता हुआ दिया है

ये क़ैदे बामशक़्क़त जो तूने की अता है      
कर भी दे माफ अब तो ये मेरी इल्तिजा है

दरया में है सुनामी , धरती पे ज़लज़ला है
ए गर्दिशे ज़माना दामन में तेरे क्या है?

यारब मिरे वतन को आबादों शाद रखना
दिल में भी और लब पर मेरे यही दुआ है

फैशन, हवस परस्ती, अख्लाक़े बद , ये मस्ती
जब जब भटक गए हम तब तब मिली सजा है

जम्हूरियत है फिर भी 'राजा' तलाशते है !
अपनी सहूलियत से कानून बन रहा है

क्या बात ! पाप अपने धुलते नही हमारे ,
गंगा नहा लिए है, ज़मज़म भी पी लिया है

मज़हब कहाँ सिखाता आपस में बैर रखना ?
है वो भी तो अधर्मी दिल जो दुखा रहा है

'चार लाईना', माअज़रत के साथ :
"जुल्फों के पेंचो ख़म में दिल ये उलझ गया है,
दीवाना मुझको करती तेरी हर एक अदा है
पाबंदियाँ है आयद रंगे तगज्ज़ुली पर
कैसे बयाँ करूँ मैं , तू क्या नही है क्या है।"

क्‍या कहा जाये मतले के बारे में, काजल की कोठरी में जलते हुए दिये की उपमा से अंतरात्‍मा को खूब पहचान दी है । आनंद का शेर । फिर शेर जम्‍हूरियत है फिर भी राजा तलाशने का शेर, आज के लोकतंत्र पर पैना व्‍यंग्‍य कसा है । लोकतंत्र के बाद भी हमारे देश में चल रही वंश परंपरा किसी राजशाही से कम नहीं है । गिरह का शेर एक अलग प्रकार से उस मोक्ष कामना है जिस मोक्ष को पाने के लिये बड़े बड़े ग्रंथ रचे गये । मजहब कहां सिखाता में धर्म को खूब परिभाषित किया गया है । अधर्मी सचमुच वही है    जो दिल दुखाता है ।  और चार लाइना में शायर अपने ओरिजनल रंग हास्‍य में डूबा होकर होली का माहौल बना रहा है । सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

तो दाद देते रहिये और तालियां बजाते रहिये।


होली का माहौल बनाने के लिये आइये आज सुनते हैं एक हजल जो है डॉ संजय दानी की हजल, साथ में श्री निर्मल सिद्धू तथा श्री अरुन शर्मा की ग़ज़लें ।

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होली आ ही गई है । और ब्‍लाग का माहौल भी होलीमय हो गया है । ऐसा कुछ दिनों पूर्व से इसलिये किया गया है क्‍योंकि दो दिन तक कवि सम्‍मेलनों के चक्‍कर के बाहर रहना है । सो दो दिन पूर्व से ही माहौल बना दिया गया । आज एक साथ तीन तीन शायर आ रहे हैं होली के माहौल को बनाने के लिये डॉ संजय दानी जी, श्री निर्मल सिद्धू जी और श्री अरुन शर्मा। आज का अंक अंतिम होना था किन्‍तु तकनीकी कारणों से अब अगला अंक इस तरही का अंतिम अंक होगा और उसके बाद होली का होला प्रारंभ हो जाएगा । गेस कीजिये  कि तरही के अंतिम अंक में शो स्‍टॉपर के रूप में कौन सा शायर अपनी एकल प्रस्‍तुति लेकर आने वाला है । दिमाग पर ज़ोर डालिये ।

होली के मिसरे पर कुछ ग़ज़लें प्राप्‍त हो चुकी हैं इतनी कि उनसे हमारा मुशायरा तो हो जाएगा लेकिन यदि सभी शिरकत करेंगे तो और आनंद आयेगा क्‍योंकि असली मज़ा सब के साथ आता है । तो केशरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी पर अपनी रचना ज़रूर भेजें । 24 के पूर्व भेज दें तो ठीक है, वैसे 24 और 25 को भी भेज सकते हैं । 26 को होली के एक दिन पूर्व हम होली के तरही का समापन करेंगे, सो 26 को या उसके बाद यदि आप रचना भेजते हैं तो वो एक अप्रैल के बाद ही बासी होली में स्‍थान पायेगी । क्‍योंकि हमारे यहां होली का पांच दिन का अवकाश होता है ।

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

sanjay dani

डॉ. संजय दानी जी

बिजली का रेट जब से इस प्रान्त में बढा है,
ये प्रान्त चोरों का गढ सा बनते जा रहा है।

क्यूं मुझको कैटरीना से दूर जाने कहते,
ये कैदे -बामशक्कत तो तूने की अता है।

रुकता न काम मेरा    दफ़्तर में कोई  भी अब ,
साड़ी पहन, वहां जाने का ये फ़ायदा है।

मैं सायकिल चलाता हूं बैठ डंडी में अब,
आगे का चक्का इस विधि से तेज़ भागता है।

महंगी है "माल" की सब चीज़ें तो फिर हुआ क्या,
वो मुफ़्त में मुहब्बत का ठौर खोलता है।

रामू ने पा लिया है होटल चलाने का गुर,
हर डिश में अब वो थोड़ी सी भांग घोलता है।

कुछ लोग पीते भी हैं, बीबी से डरते भी हैं,,
सारे दुखों से ये दुख इस दुनिया में बड़ा है।

मेरा पड़ोसी पोलिस का गुप्तचर है दानी,
पर उसका शह्र के चोरों से भी राब्ता है।

महंगी हैं मॉल की सब चीजें तो, में बहुत उम्‍दा तरीके से मॉल की तुलना मुहब्‍बत से की है । सच में मॉल संस्‍कृति को यदि कोई शै मात दे सकती है तो वो मुहब्‍बत ही है  । बस और बस मुहब्‍बत । साथ में ये भी निवेदन है कि रामू के होटल का पता अवश्‍य दे दीजिये ताकि उस होटल में हम कुछ भी खाने पीने से बच सकें । कुछ लोग पीते भी हैं बीबी से डरते भी हैं, ये शेर दुनिया के सारे मर्दों को समर्पित है । क्‍योंकि पीते भले ही सब न हों लेकिन डरते तो सब हैं ये एक ग्‍लाबल सचाई है । बहुत बहुत सुंदर ग़जल़ वाह वाह वाह होली का मूड बना दिया । 

nirmal sidhu

श्री निर्मल सिद्धू जी

ये क़ैदे बामुशक्क़त जो तूने की अता है
लगती कभी दवा तो लगती कभी सज़ा है,

तुझसे करें गिला कब तुझको कहाँ तलाशें
किस देश में नगर में, आखिर कहाँ छुपा है,

ये जग बदल-बदल के हर पल बदल रहा है
अपने ही घर में बैठा इन्सान लुट रहा है,

कलियुग की धार इतनी पैनी हुई है अब तो
हर कोई काटता है हर कोई कट रहा है,

तस्वीर इस जहां की यूं कर हुई है धुंधली
हर दिल धुआँ-धुआँ है हर दिल बुझा-बुझा है,

जो साथ चल रहा है वो भी नहीं हमारा
परखा उसे तो जाना उसमें कहाँ वफ़ा है,

संभलेंगे कब ये बिगड़े हालात इस जहां के
तू ही हमें बता दे तुझको तो सब पता है,

ऐसे में रुख़ हवा का जब तेरे दर से आता
मिलता तभी सुकूं है आता तभी मज़ा है,

तुझसे करें गिला कब तुझको कहां तलाशें, में बहुत सुंदर तरीके से उस बात को कहा गया है जिसे कई कई बार शायरों ने कई तरीके से कहा है । उसी को नये तरीके से कहा गया । कलियुग वाला शेर भी अपने मिसरा सानी के कारण प्रभावी हो गया है । सचमुच आज यही तो हाल है कि हर कोई काटता है हर कोई कट रहा है । सभलेंगे कब ये बिगड़े हालात इस जहां के में एक बार फिर से उस मालिक से प्रश्‍न है और एक यूनविर्सल प्रश्‍न है । ऐसे में रुख हवा का शेर भी अलग बन पड़ा है । बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

arun sharma

श्री अरुन शर्मा

काटों भरी डगर है जीवन का पथ खुदा है,
गंभीर ये समस्या हल आज लापता है,

अंधा समाज बैरी इंसान खुद खुदी का,
अनपढ़ से भी है पिछड़ा, वो जो पढ़ा लिखा  है,

धोखाधड़ी में अक्सर मसरूफ लोग देखे,
ईमान डगमगाया इन्‍सां लुटा पिटा  है,

तकदीर के भरोसे लाखों गरीब बैठे,
हिम्मत सदैव हारें इनकी यही खता है,

अपमान नारियों का करता रहा अधर्मी,
संसार आफतों का भण्डार हो चला है.

धोखाधड़ी में अक्‍सर मसरूफ लोग देखे शेर शेर अच्‍छा बन पड़ा है । अरुन की ये शुरूआत है और शुरूआत के हिसाब से गज़ल अच्‍छी बनी है । शुरू के दौर में कहन और वज्‍न का संतुलन साधना बहुत मुश्किल होता है । उस समय में यदि ग़ज़ल में हम ये संतुलन साध लें तो आगे के लिये काफी संभावनाएं जाग जाती हैं । मतले भी उसी प्रकार की संभावना दिखाई दे रही है । तकदीर के भरोसे बैठने वाला शेर भी उसी प्रकार से बना है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

तो आनंद लीजिये दोनों ग़ज़लों का और दाद देते रहिये और हां दिमाग में गुंजाते रहिये 'केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी' ।

आज के शो स्‍टॉपर प्रस्‍तुतिकरण में दो रचनाकारों श्री मधुभूषण शर्मा 'मधुर' और श्री नवीन सी चतुर्वेदी से सुनते हैं उनकी ग़ज़लें ।

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पहले इस शो स्‍टॉपर में केवल एक ही रचनाकार श्री नवीन चतुर्वेदी जी होने थे, लेकिन कल ही श्री द्विजेन्‍द्र द्विज जी द्वारा उनके गुरू श्री मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जी की एक ग़ज़ल तरही के लिये भेजी गई । चूंकि द्विज जी के गुरू हैं सो हम सबके भी वे गुरू हुए, सो बस ये तय किया गया कि नवीन जी के साथ मधुर जी मिल कर शो स्‍टॉपर बनेंगे तथा तरही का समापन करेंगे । हालांकि शो स्‍टॉपर को फैशन शो के संदर्भ में कुछ और अर्थ में लिया जाता है । वहां उसका मतलब होता है कि ऐसी प्रस्‍तुति जो शो को रोक दे । तो ये दोनों ग़ज़लें भी ऐसी ही हैं । समापन के बाद हम दो दिन का विश्राम लेंगे तथा 24 मार्च से होली की तरही शुरू हो जाएगी । तो दो दिन तक आप इन दो ग़ज़लों का आनंद लीजिये और होली का मूड बनाइये । मूड बना कर लिख भेजिये एक ग़ज़ल ।

केसरिया,लाल,पीला,नीला,हरा,गुलाबी

holi-cartoons

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

आइये आज सुनते हैं श्री मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जी,  एवं श्री नवीन सी चतुर्वेदी से उनकी ग़ज़लें ।

 naveen chaturvedi

श्री नवीन सी. चतुर्वेदी जी 

ज़ुल्मत की रह में हर इक तारा बिछा पड़ा है
और चाँद बदलियों के पीछे पड़ा हुआ है

फिर से नई सहर की कुहरे ने माँग भर दी
और सूर्य अपने रथ पर ख़्वाबों को बुन रहा है

नींदें उड़ाईं जिसने, उस को ज़मीं पे लाओ
तारों से बात कर के किस का भला हुआ है

मिटती नहीं है साहब खूँ से लिखी इबारत
जो कुछ किया है तुमने कागज़ पे आ चुका है
 

जोशोख़रोश,जज़्बा; ख़्वाबोख़याल, कोशिश
हालात का ये अजगर क्या-क्या निगल चुका है

जब जामवंत गरजा हनुमत में जोश जागा
हमको जगाने वाला लोरी सुना रहा है

फिर से नई सहर की कुहरे ने मांग भर दी में सूर्य द्वारा अपने रथ पर ख्‍वाबों को बुनना बहुत प्रभावशाली बिम्‍ब बना है । अंधेरे और उजाले के बीच के द्वंद को बहुत अच्‍छी तरह से दिखाया गया है । मिटती नहीं है साहब खूं से लिखी इबारत में आसमान पर उड़ने वालों को ज़मीन पर लाने की बात का शायर ने खूब चित्रित किया है । जोशो खरोश जज्‍बा में एक बार फिर शायर ने हालात के अजगर पर करारी चोट की है । और अंत में हनुमान में जोश भरने वाला जामवंत का स्‍वर हम सब पर अर्थात हम सभी पर ही चोट कर रहा है । हम जो जगाना भूल गये हैं । हम जिनको जगाना है उन्‍हें सुला रहे हैं । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

madhubhooshan madhur
श्री मधुभूषण शर्मा जी 'मधुर'

अप्रैल 1951 में पंजाब में जन्मे डा० मधुभूषण शर्मा ‘मधुर’ अँग्रेज़ी साहित्य में डाक्टरेट हैं. बहुत ख़ूबसूरत आवाज़ के धनी ‘मधुर’ अपने ख़ूबसूरत कलाम के साथ श्रोताओं तक अपनी बात पहुँचाने का हुनर बाख़ूबी जानते हैं.इनका पहला ग़ज़ल संकलन जल्द ही पाठकों तक पहुँचने वाला है.आप आजकल डी०ए०वी० महविद्यालय कांगड़ा में अँग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष हैं.

ज़ुल्मो-सितम से आजिज़ जो खून खौलता है
वो आँख से टपक कर हाथों पे रेंगता है

दिल ही नहीं है दिल वो, जो दिल नहीं है रखता
अब चीज़ क्या है दिल ये, ये दिल ही जानता है

चांदी के चंद सिक्के खनकेंगे चाँद पे जब
देखेंगे हुस्न शायर किस शै से तोलता है

बाज़ार है ये दुनिया, हर चीज़ की है कीमत
ईमां ज़मीर सब कुछ पैसा खरीदता है

कहता हूँ ज़िंदगी मैं ज़िंदादिली से उसको
ये कैदे-बामुशक्कत जो तूने की अता है

आकाश में 'मधुर' भी कुछ देर तो उड़ेगा
उतरेगा फिर जमीं पे, दाना भी देखता है

तो बात मतले की । आंखों से टपक कर हाथों पर रेंगने वाले खून की बात ही क्‍या इसी खून के लिये तो चचा गालिब ने कहा था कि जो आंख से ही न टपका तो फिर लहू क्‍या है । बहुत सुंदर मतला । और उसके बाद का शेर तो उफ क्‍या शेर है दिल की आवृत्तियों ने आनंद ला दिया है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर । चांदी के चंद सिक्‍कों के चांद पर खनकने की बात बहुत दूर की सोच का परिचायक है, दूर की सोच मतलब बहुत आगे की सोच । जब चांद पर इन्‍सां पहुंच जाएगा । और अंत में बहुत शानदार से मकते के शेर ने ग़ज़ल का मुकम्‍मल कर दिया है । सुंदर शेर । सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

तो आनंद लीजिये दोनों शानदार ग़ज़लों का और देते रहिये दाद । और अब मिलते हैं होली के मुशायरे में । याद रहे आपने अभी तक अपनी ग़ज़ल 'केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी' पर नहीं भेजी है । जल्‍दी भेजिये क्‍योंकि 24 से 26 तक होने वाला है होली का धमाल ।

होली के सुअवसर पर आइये आज सिरू करते हैं कबूतरी सम्‍मेलन । धेस विधेस की जानी मानी कबूतरियां पधार रही हैं होली के अवसर पर अपना अपना पाट लेकर ।

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अखिल ब्रह्मांडीय कबूतरी सम्‍मेलन

मितरों और मितरानियों । सबको जथाजोग परनाम पोंचे । तो जैसा कि आप सब जानते ही हैंगे कि इस बार अखिल ब्रह्मांडीय कबूतरी सम्‍मेलन का आयोजन होली के सूअ(वस)र पर किया जा रया है । इस कबूतरी सम्‍मेलन में भाग लेने के लिये दूर दूर से कई सारी कबूतरियां आईं हेंगी । मैं आपका संचालक भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के आप सब का सुआगत कर रिया हूं । आप सबको पता ही हे रिया है कि इस बार का ये कबूतरी सम्‍मेलन 'केसरिया, लाल, पीला, नीला हरा गुलाबी' पर किया जा रहा है । तो आइये आगे बढ़ते हैं अपने इस कबूतरी सम्‍मेलन को लेकर । सगरे बिरज मंडल में धमल चल रइ है । सगरे भारत वर्ष में धमाल चल रइ है । होरी खों पापन परब ढिंका चिका करतो फिर रओ है । तो आप सब सरोताओं को एक एक भंग का पव्‍वा और बिस में थोड़ा सा धतूरा मिला कर हम भेंट कर रये हेंगे । पिओ और टुन्‍न हो जाओ । किसी के भी हाथ मती आओ ।

 DHARMENDRA SAJJAN

धर्मेंद्र कुमार सिंह

हमारी सबसे पेली कबूतरी जो हेंगी बे सीधे डेम पे से चली आ रइ हेंगी । काय के जे कछु इंजीनियर बिंजीनियर हेंगी । इनने कित्‍तेइ बांध बनाये हैं कागजन पर । ओरिजनल जगे पे इनका एक भी बांध नइ मिलता हेगा । कोई पूछे तो बताती हैं कि बांध चोरी हो गया है । आप साकाहारी हैं सो केबल सड़े टमाटर से सुआगत करा जाए ।

होने लगी है देखो काली घटा गुलाबी
क्या गेसुओं में उसके जाकर गिरा गुलाबी
फागुन छुपा के लाया क्या तोहफ़ा गुलाबी
होने लगी है धीरे धीरे फिज़ा गुलाबी
भरते हैं सिसकियाँ क्यूँ बागों के पेड़ सारे
क्या फागुनी हवायें करतीं खता गुलाबी
ऐसे डसा है मुझको इक फागुनी नज़र ने
है अंग अंग मेरा पड़ने लगा गुलाबी
मदिरा गुलाब जल सा मुझपे करे असर अब
लब ने लबों को दे दी कैसी सजा गुलाबी
कोई है रंग ऐसा खिलता न हो जो तुझपे?
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
सोलह बसंत अबके वो पार हो रहे हैं
होने लगे शहर के आब-ओ-हवा गुलाबी

सेंसर सेंसर सेंसर, कबूतरी भूल रइ हेंगी कि मुसायरा पारिवारिक है और जे सोलह बसंत, अंग अंग, लबों जैसी बातें कर रही हैं । जे सारे सबद मूसायरे में से भिलोपित किये जाते हैं । कोई भी इन को सुनने की कोसिस न करे । 

सूचना- हमारे मुसायरे के गरिष्‍ठ सदसय श्रीमान नीरज गोस्‍वामीझूमरी तलैया से दारू के ठेकेदार का चुनाव लड़ रये हेंगे । जिनका चुनाव निसान हेगा मोगरे की सूखी डाली । सब लोगन से अपील की जाती है कि मोगरे की सूखी डाली पे गोबर से सने जूते का ठपपा लगा के नीरज गोस्‍वामी को दारू  का ठेकेदार बनाएं । सूचना समाप्‍त भई ।

DIGAMBER NASWA

दिगंबर नसवार
जे किछु आधुनिक लग रइ होंगी आपको, काय कि जे सीधे बुदई से चली आ रही हैं । अपने इंडिया में तो किछु कर ना पाईं सो सीधे बुदई में जा के किछु ना कर रई हेंगी । भां पे जा के आपने अपना जूता पालिस का सानदार दुकान खोला हेगा । इनका दावा है कि कोई भी जूता अगर इनके टकले से कम चमका तो पूरे पैसे वापस दे दिये जाएंगे । काय कि जे रोज अपना टकला भी उसी प्रकार से चमकाती हैं । आइये इनसे भी सुन ली जाये । जे दो प्रकार की गजल ला रही हैं । एक को नाम इनने हास्‍य गजल दओ है । इने नइ मालूम कि इनकी सारी ग़ज़लें ही हास्‍य होती हेंगी । काय कि बिना बहर की गजल सुन के हंसी नी आयेगी तो क्‍या आयेगा ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
काला सफ़ेद जो हो समझो मिला गुलाबी
कटते नहीं हैं रस्ते, बस ख्वाब के सहारे
सच देखना है तो फिर, परदा उठा गुलाबी
चेहरे का नूर है या, है कुदरती करिश्मा
क्यों चाँद आसमा का, फिर हो रहा गुलाबी
सुख दुःख, निशा उजाला, सब जिंदगी का हिस्सा
सबको कहाँ मिला है, रंगी समा गुलाबी
परवर दिगार से बस, इतनी ही इल्तज़ा है
चारों तरफ हो सबके, खिलता हुआ गुलाबी

हास्य गज़ल
गलती से मांग में जो, रंग लग गया गुलाबी
थप्पड़ पड़ा है ऐसा, नक्शा छपा गुलाबी
बेरंग रंग सारे, काले बदन पे तेरे
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
गमला उठा के मारा, क्यों बोलने पे इतना
“वो फूल फैंकना तो, मुझको ज़रा गुलाबी”
मैके गई है जबसे, अर्धांगिनी कहूं क्या
मन का घना अंधेरा, फिर से हुआ गुलाबी
होली के बाद उनकी, बाहों में सो गया था
कीचड़ से मैं उठा जब, उतरा नशा गुलाबी

काय कि अपनी कहूं तो मोय तो हास्‍य ग़ज़ल में जरा, नेक सी भी हंसी नई आई । एक बार मेरे होंठ जिरा से टेढ़े भये थे पर बो हंसी नई थी बो तो मैं अपने गाल पर बैठी मक्‍खी को होंठ टेढ़ा करके भगा रहा था । आप सब के गले की कसम मोय जिरा सी भी हंसी नी आई है जिस हास्‍य गजल पे । आपको आई हो तो हंस लो हंसने पे कोइ टैक्‍स थोड़ी है ।

सूचना - हमारे मुसायरे के एक वरिष्‍ठ सदस्‍य श्री राकेश खण्‍डखण्‍ड वॉलजी कल रात को मुन्‍नी बाई के कोठे से लापता हो गये हैं । किछु लोगन का कहना हेगा कि बे आखिरी बार मुन्‍नी बाई के कोठे के नीचे कल्‍लू पहलवान को अपना गीत सुनाने की कोसिस कर रय थे । लोगों का केना है कि कल्‍लू को गीत सुनाने की कोसिस ही उनके लापता होने का कारण है । जिनको राकेश जी की सूचना देनी हो बे राकेश जी के मोबाइल पे दे सकते हैं ।

NIRMAL SIDDHU

निरमल सिद्धू 

काय कि इनसे  पेले तो गजल लिखा ही नहीं रही थी जिसके कारण इनने पेले तो उसी माइक से अपने आप को टांगने का निरनय ले लिया था । किन्‍तु बाद में इनको ग़ज़ल सूझ गई । जे सीधे डनाका से चली आ  रही हैं । इनको  भी सुनाने की भोत इच्‍छा हो रही है । भोत देर से  केरइ हैं कि मोय भी कविता करनी है । सो आप सब सानती के साथ बैठ कर कविता सुन लो ।

दस्तक होली की सुन हर चेहरा हुआ गुलाबी
रितु बसंत आई तो नयनों में घुला गुलाबी
देखो जिधर-जिधर भी मस्ती छलक रही है
माथे पे उमंगों के अब सेहरा सजा गुलाबी
मिलने लगे गले सब बंटने लगी मिठाई
देखी ज़मीं की रंगत सूरज हुआ गुलाबी
पीकर भंग, चढ़ा के दारू क़दम न टिकते
नाचे छोरा छोरी सब, ऐसा नशा गुलाबी
रंग-बिरंगे फूल हैं खिलते, उसको कहते भारत
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

काय बिन्‍नो जे होली में देस भक्ति किते से घुसड़ रई हेगी । कोई 26 जनवरी मन रइ हेगी क्‍या । देसभक्ति करनी की अपने भारत में दो तारीख हेंगी । 15 और 26 जिनके इलावा कोई भी देसभक्ति करने की जिरूरत नहीं समझता । जिस दिन सुबू सुबू से रेडियो पर मेरे देस की धरती बजने लग उसे दिन 2 रुपये का झंडा अपनी इस्‍कूटर पे लगा के देसभक्ति की जाती है समझी ।

सूचना - खबर आई हेगी कि भोपाल के सबरी लुगाइन के लिये सरकार ने इस बार करवा चौथ पर उचित भेभस्‍था की है । काय कि हर बार चांद देर से हीटता था । जा बार सरकारी चांद निकाला जा रिया हेगा । करवा चौथ के दिन भोपाल की श्‍यामला पहाड़ी पर दूरदर्शन के टावर पे श्री तिलक  राज कपूरको खड़ा किया जायेगा । सरकार का केना है कि उनकी चांद के आगे आसमान का चांद फीका पड़    जायेगा । किछु लोगन ने सरकारी खोपड़ी का मतदाताओं को लुभाने का उपयोग करने की याचिका दायर कर दी है । सूचना खतम भई ।

PRAKASH ARSH

प्रकाश अर्श

किछु भी मत पूछो इनके बारे में । कोई कोई तो ऐसा के रय हैं कि बाकी तो दुनिया में किसी की शादी हुई ही नहीं है, केवल इन्‍हीं की तो हुई है  । इनको गजलें केने का भोत शोक भी हेगा,, पर शौक होने से भी क्‍या होता हेगा । ग़ज़ल केना हर किसी के बस की बात नहीं होती । जे कबूतरी सीधे दिल्‍ली से चली आ रही हेगी ।


दिन के लबों का रंग भी बेसाख्ता गुलाबी
सूरजमुखी का चेहरा भी हो गया गुलाबी !!
कल रात मुझसे मिलने आया था यार मेरा ,
फिर रात भर अँधेरा होता रहा गुलाबी !!
शरमा के छिप गए थे परदे के पीछे जब तुम ,
पर्दा वो अब तलक है घर का मेरा गुलाबी !!
दोनों ही सूरतों में सूरज की तरह है वो ,
आता हुआ गुलाबी जाता हुआ गुलाबी !!
होली क्या आ गई की ये रंग चढ़ रहा है ,
वरना तो इससे पहले हर रंग था गुलाबी !!
इस रंग के मुकाबिल सब रंग फीके है अब .
मिलते ही मुझसे उसका चेहरा हुआ गुलाबी !!
किसको नज़र में रखूं किसको निकाल फेंकूं'
कत्‍थई सी आँख वाली का ज़ायका गुलाबी !!
मल दूंगा चहरे पे मैं रंग इश्क़ वाला ,
फिर धीरे धीरे बढ़ कर हो जाएगा गुलाबी !!
इक शख्स है धनक सा जिसमे हैं रंग सारे ,
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी !!

उइ मां कित्‍ती हट के गजल हेड़ी है । लेकिन जिसमें भी कुछ सब्‍द ऐसे हैं जिन पर सेंसर को भोत आपत्‍ती हेगी । अंधेरा सब्‍द का उपयोग नहीं किया जाना था । जब ये कबूतरी आ रही थी तो किसी ने दिया एक टमाटर और जब जा रही थी तब फिर दिया एक टमाटर, जिससे ही प्रभावित होकर कबूतरी ने शेर लिखा ' आता हुआ गुलाबी, जाता हुआ गुलाबी' । तो जिसको सुननी है वो सुन ले गजल । हमें तो नई सुननी है ।

सूचना- भारत सरकार ने घोष्‍णा कर दी है कि अब काला धन देस के बाहर नहीं जा सकता है । इस घोषणा से कनाडा से भारत आये श्री समीर लालपरेसान हो गये हैं क्‍योंकि उनके भी भारत से बाहर जाने के रास्‍ते बंद हो गये हैं । सभी को सूचित किया जाता है कि गोरेपन की कोई ऐसी क्रीम जो तीन दिन में गोरा कर दे उसके पता श्री लाल को प्रदान करें । तीन दिन में उनका प्‍लेन उड़बे बाला है । सूचना समाप्‍त भई ।

RAJEEV BHAROL1

राजीव भरोल

कित्‍ती नीक सुंदर लग रइ हेंगी ये कबूतरी । काय कि   सीधे अमेरिका से चली आ रही हैं । जिनको भी आजकल ग़ज़ल सुनाबे को भोत शौक चर्रा रओ है । काय कि अमरीका में कोई को हिंदी तो समझ में आती नहीं है । तो पेलने में कोई खतरा नहीं होता है । और दूसरी बात ये कि अमरीका में हमारी यहां जैसे टमाटर, अंड को रिवाज नहीं है । भां पे सीधे पुलिस पकड़ ले जाती है ।

आँखों में थे सितारे, हर ख़ाब था गुलाबी,
उस उम्र में था मेरा, हर फलसफा गुलाबी.
फूलों को बादलों को, हो क्यों न रश्क आखिर,
गेसू घटाओं जैसे, रंग आपका गुलाबी.
बदला है कुछ न कुछ तो, कुछ तो हुआ है मुझको,
दिखता है आज कल क्यों, हर आइना गुलाबी.
मौसम शरारती है मेरी निगाहों जैसा,
है हर गुलाब तेरे, रुखसार सा गुलाबी.
होली का रंग है ये, कह दूंगा मुस्कुरा कर,
पूछा जो उसने क्यों है, चेहरा मेरा गुलाबी.
रंगों की बारिशों में, हर शख्स दिख रहा है,
"केसरि-य,  लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी"

नी वैसे ये बात तो हेगी की गजल तो अच्‍छी हेगी । भोत अच्‍छी तो नई के सकते हैं । के देने से कबूतरी का दिमाग खराब हो जाता है । कम बजट में कवि सम्‍मेलन करना हो तो कवि की तारीफ मती करो कभी भी । तो बस जेकि ठीक पढ़ी।

सूचना- होली के अवसर पर उत्‍तर परदेश की सरकार ने घोसना कर दी है कि काय कि पिछले चुनाव में मायाबत्‍ती का परचार करने के कारण सौरभ नाम के एक कवि का नाम गर्दभ कर दिया गया है । अभी तक ये नहीं पता चला है कि क्‍या जे सब कुछ हमारे ही बीच के कवि श्री सौरभ पाण्‍डेयके साथ हुआ है । या कोई और है । हमने सरकार को पत्‍तर लिखा है जैसे ही जवाब मिलता है सू‍चित करते हैं । ( लच्‍छन से तो ये ही लग रहे हैं । ) सूचना समाप्‍त हुई ।

RAJNI MELHOTRA

रजनी मल्होत्रा  नैय्यर

जिनको डाक्‍टर ने के रखी है कि हाइजीन का खूबे खयाल रखना है । सो इनने दूर से ही काव्‍य पाठ करने की कही है । माइक को मुंह से दो फिट दूर रख के । हमें इनको सुझाव ये देना है कि माइक को दूर रखने के बजाय बंद करके ही काव्‍य पाठ कर दें उससे इनका भी भला होगा और सरोताओं का भी ।


केसरिया, लाल,  पीला,  नीला,  हरा, गुलाबी,
रंगों की बारिश  में    लगे     सांवरा   शराबी .
छूने दे  रंग के   बहाने   गोरी    गालों      को ,
रहे   न   अब  दरमियाँ    दायरा      जरा  भी .
निभा लो आज  वैर ,दस्तूर   सबको   मंजूर ये ,
रख न कोई   मलाल , दे सौगात यारा  जुलाबी.
रंग  के  नशे   में,   कोई  भंग   के    नशे    में,
होली   के   नाम    पर     कर   गया    खराबी .
आज    सारी    तहजीब  लगे बातें     किताबी
मल कर गुलाल कर दो   हर    चेहरा   गुलाबी ,

भभ्‍भड़ कवि इस गजल को सर्वश्रेष्‍ठ हास्‍य गजल का खिताब देते हैं । काय के दो कारण हैं पेली तो ये कि ये गजल भभ्‍भड़ कवि को नेक भी समझ नहीं पड़ी । समझ नहीं पड़ी तो मतलब कुछ अच्‍छी ही होगी । और दूसरा कारण ये है कि भभ्‍भड़ कवि की  हर शेर पे हंसी छूटी तो इसका मतलब हास्‍य तो भरपूर था ।

सूचना- कुख्‍यात गजलकार श्री द्विजेन्‍द्र द्विजने सड़े हुए अंडे को मिट्टी के तेल में जलाकर एक प्रकार का विशेष काजल बनाया है  जिसको लगाने के कारण उनका चश्‍मा उतर गया है । जिस किसी भाई को काजल चाहिये वो संपर्क करें । काजल की कीमत में उनकी दो ग़ज़लें सुननी होंगी । सुनते समय हर मिसरे पर तीन बार जोर से और दो बार धीरे से दाद देना होगा । सूचना समाप्‍त हुई ।

SANJAY DANI1

संजय दानी

डाक्‍टर साबनी भी गजल पढने आ गईं हेंगी । अपने दवाखाने पर ढेर सारे मरीज छोड़ कर आईं हेंगी । इनका जरा जल्‍दी सुन लिया जाये । अभी इनका मरीज भी देखने हैं । मरीज जो इनकी गजलें सुनकर या तो बिल्‍कुल ठीक हो जाते हैं या फिर बिल्‍कुल ही ठीक हो जाते हैं । तो आइये सुनतेहैं ।


नीलू को मैंने जब से यारो कहा गुलाबी,
तब से हुई है उसकी हर इक अदा गुलाबी।
हर लड़की आहें भरती हैं जब भी वो पहनता,
काले कमीज़ के नीचे तौलिया गुलाबी।
करके विवाह मै भी पछता रहा हूं, मुझको,
अब पीने ना मिले रम ओ वोदका गुलाबी।
कर बैठा इश्क़ इक गुन्डे की बहन से,तब से
है मेरी पीठ छाती ओ चेहरा गुलाबी।
करते नहीं नशा जो,वो पीले दिखते हैं क्यूं
दिखता है जब यहां का हर बेवड़ा गुलाबी।
सबने मिठाइयां ही रंगीन देखी होंगी,
मेरी दुकां में मिलता है ढोकला गुलाबी।
जबसे मिली है राखी सांवत की जूती मुझको,
हां हो गई है मेरे घर की हवा गुलाबी।
पंचर न होती अब मेरी सायकिल,वजह है
उसको चलाती अब केवल साइना गुलाबी।
कांग्रेसी नीति से महंगाई बढी है ये सुन,
होने लगी है जाने क्यूं भाजपा गुलाबी।
पर्यावरण का ऐसा बदलाव आया यारो,
होने लगा है बाग़ों का हर भटा गुलाबी।
घर का सफ़ेद कमरा होली में हो चुका है,
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी।
रंगीं रदीफ़ों पर कुर्बां हैं सुबीर दानी,
चाहत है जबकि शिष्यों की काफ़िया गुलाबी।

चलो रे चलो सब चलें गुलाबी रंग को ढोकला खाने के लिये । मटरू की बिजली में एक गुलाबी भैंस तो हमने सुनी थी । लेकिन काफिया मिलाने के लिये ढोकले में रुह अ फजा मिलाकर क्‍या सफाई से उसे गलाबी किया है । चलो रे सब छोड़ो गजल वजल अब तो गुलाबी ढोकला ही खाया जाये ।

सूचना - मध्‍यप्रदेश की सरकार ने तय किया हैश्री मंसूर हाशमीजी को मानिसक रोगी विकास मंच का प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया जायेगा । इस अध्‍यक्ष पद के तहत उनको  राज्‍य मंत्री का दर्जा मिल रहा है । जिसके तहत उनको अपनी गाड़ी पर लाल रंग की लालटेन लगाने का भी अधिकार मिलेगा । और साथ में उनक गाड़ी में एंबुलेंस  का सायरन भी फिट किया जायेगा । सुचना समापत भई ।

SULABH JAISWAL

सुलभ जायसवाल

उइ मां जै कौन सी कबूतरी आई है । सिर के सारे बाल सुनहरे हो गये हैं । तिस पे दांत  हेड़ हेड़ के कविता पढ़ने का ये कौन सा अंदाज हेगा । पता नहीं कौन से देस से आई है । पर आई है तो सुन लो भैया ।

 
संझा सुबह गुलाबी,  रात्री दिवा गुलाबी
घंटा मिनट घड़ी सब, सब हो गया गुलाबी 
जब से उसे है देखा, सुधबुध मैं खो चूका हूँ
काला न कोई नीला, जादू चला गुलाबी   
नग्मे ग़ज़ल न दोहे, तू गा ले फाग मुक्तक
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
जब जी करे सुनाना, मन भर वही तराना
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
कैसट अटक गया है, मेरा हुजूरे आला
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
क्यूँ रे 'सुलभ' बनाये, हमसब को आज बुद्धू
गुझिया व पान लाये, भरके भूसा गुलाबी 
इस साल एक बच्चा, कमजोर सा था पीला 
लफ़्ज़ों से खेल होली, वो हो गया गुलाबी  
गुलाबी नंबर  # २
मस्ती  घोले हवा में, बादे-सबा गुलाबी
फागुन हुआ सुहाना, मौसम बना गुलाबी   
गुजरात से हिमाचल, आसाम से उड़ीसा
यू .पी. बिहार, गोवा, ऑलिन-डिया गुलाबी
दाना चुगे नशीला, सूरज को बोले चन्दा    
बेकाबु सब परिन्दा, अम्बर धरा गुलाबी 
बच्चा बूढा जवनका, सबके जबाँ पे गाली   
भाषा हमार सादा,  बोली बड़ा गुलाबी
ढोलक मझीरे तबले, ढमढम बजे दनादन
सुर ताल में लिपटकर, चीखे गला गुलाबी
नाचे रगड़ झमाझम, जीजा के संग साला
काका कमर हिलावे, खा कर पुवा गुलाबी
गर चाहते हो तुम भी, घोड़े की चाल ताकत
खेसड़ की दाल पीओ, फांको चना गुलाबी
इंजन के पीछे डिब्बा, डिब्बा के पीछे इंजन
देखी न ऐसी गाड़ी, उगले धुँआ गुलाबी
'नीरज-तिलक' सुनाये, किस्सा महीन-गाढ़ा  
रच दो कहानी 'भभ्भर', गबरू गधा गुलाबी 
हैपी रहेगा सिस्टम, हैपी रहेगी जनता 
भ्रष्टों की तोड़े हड्डी, क़ानून बना गुलाबी
जो चाहते हो भारत, बन जाय विश्व गुरु
भगवा हरा न सादा, चश्मा पहन गुलाबी
जिसमे ख़ुशी तुम्हारी, मुझको वही लगाना
'केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी'
अँगना वहीँ बनाना, दुनिया वहीँ बसाना
पनपे जहाँ मोहब्बत, बरसे घटा गुलाबी
इस मंच के सभी लिक्खाडियों और श्रोताओं को समर्पित एक गुलाबी सुलाभी शुभकामनाएं !!
होली बड़ा केमिकल, री-एक-शन  नि-राला
जोभी था मन में काला, सब हो गया गुलाबी

भोत लम्‍बी नी हो गई ये गजल । दूसरी वाली तो मिझे ऐसा लग रह था कि खतम ही नहीं होने वाली है । खतम होने को को तो फिर एक शेर हीट पड़े । इत्‍ते तो गुजरात में शेर नहीं है जित्‍ते इस  गजल में से हीटे । हर शेर खूब अच्‍छा हास्‍य पैदा कर रहा था । कारण तो आप सबको पता ही है कि क्‍यों हास्‍य पैदा कर रहा था ।

सूचना- सूचना मिली हेगी किश्री मधुसूदन जी मधुरअपनी अंग्रेजी की गजलों की कोचिंग क्‍लास जे वाली गर्मी की छुट्टी में लगाने वाले हैं । काय कि अंग्रेजी में उनको काफिया में बहुत मिल गये हैं । तो जिनको भी अंग्रेजी में गजल सीखनी है वे सब संपर्क करें । योग्‍यता में बस ये कि  ए से लेकर जेड तक के पूरे इक्‍कीस अक्षर याद होना चाहिये । ऐसा मधुर जी का कहना है । तो चलिये अपनी मातृभाषा में ग़ज़ल कहते हैं । सूचना समाप्‍त हुई ।

SUMITRA SHARMA1

सुमित्रा शर्मा

इनको भी होली में ही गजल लिखने की सूझ रही थी । अब लिखी है तो सुननी भी पड़ेगी । काय कि आपने नहीं सुनी तो ये आपकी भी नहीं सुनेंगी । मुशायरे का नियम होता है कि आप हमारी गजल सुनकर दाद दो, हम आपकी गजल सुनकर खाज देंगे । और बाद में दाद खाज मिटाओ जालिम लोशन लगाओ ।


केसरिया लाल पीला  नीला हरा गुलाबी
तपने लगा जो सूरज मौसम हुआ गुलाबी
बेमोजुं झूमते हैं गुंचे कली ये डाली
इनको पिला गया ज्यूँ मौसम सुरा गुलाबी
गेंदा गुलाब गुडहल महका रहे जमीं को
वो खिलखिलाया नीरज जल हो चला गुलाबी
पीपल की उम्र को भी सहला गयी पवनिया
शरमा के गात उसका कुछ हो रहा  गुलाबी
ख़ारिज किये  फिज़ा  ने सब उम्र के पहाड़े
बूढ़े कदम भी थिरके सुर हो  उठा गुलाबी
महुआ ने बांटी मदिरा  बैखोफ हर किसी को
उस का नशा जंहा को ही कर गया  गुलाबी
ये ओढ़नी बसंती धरती ने ओढ़ लीनी
दुल्हन बनी ,सजी वो ,आनन हुआ गुलाबी

तो भैया ये थी गजल इनकी, जिन जिन ने सुन ली है और जिन जिन को समझ में आ गई है वे दाद दे सकते हैं । जिनको समझ में नहीं आई है वो और जोर से दाद दें ताकि मन की भड़ास निकल जाये । और हां जिन जिन को समझ में आई है वो भभ्‍भड़ कवि को भी समझा दें इसका मतलब ।

सूचना- मुम्‍बई के सुप्रसिद्ध जूहू चौपाटी पर अब एक और दुकान खुल गई है । ये दुकान ढोकले की दुकान के ठीक पास है  । श्री नवीन चतुर्वेदीजी ने दोहे की दुकान खोली है । जिन भी सज्‍जन को उचित बनावट वाले दोहे चाहिये वे कभी भी जुहू जाकर ले सकते हैं । एक साथ तीन दोहे खरीदने पर एक चौपाई मुफ्त दी जायेगी । तो आइये आइये चले आइये दोहे की दुकान पर । सूचना समाप्‍त ।

MUKESH TIWARI 1

मुकेश कुमार तिवारी

ओ तेरी । ये  कौन है जो गुलाबी गजल में लाल रंग मिला रही है । मुझे तो लगे कि कोई मालवा की कबूतरी है । मालवा की कबूतरी ही इस प्रकार से गुलाबी रंग में लाल रंग मिलाती हैं । तो आइये सुनते हैं ।


केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
ये हैं रंग की छटाएँ बांधे समां गुलाबी
कोई नही यहाँ पे दूजे रंग में दिखता
सब पे ही चढ़ा है रंग खुशनुमा गुलाबी
बौछार है खुशी की जो मन का मैल धो दें
तन हो गया गुलाबी मन हो गया गुलाबी
बच्चा बना दें फिर से बीते दिनों की यादें
हो जाए मन शराबी जो रंग उड़ा गुलाबी
जीजा के साथ साली भौजी के संग देवर
होली चढ़े नशे सी जीवन बना गुलाबी
काटे न पेड़ कोई हरियाली को बचाएँ
खिल जाए मन की बगिया उपवन रहा गुलाबी
माथे गुलाल टीका त्यौहार के शगुन का
ऐसे मनाएँ होली पानी बचा गुलाबी

काटे न पेड़ कोई, काय क्‍या कोई हरियाली और खुशहाली का रेडियो का प्रायोजित कार्यक्रम चल रहा है सरकारी । मोय जे समझ में नहीं आये कि हर जगे पे ज्ञान ज्ञान ज्ञान को क्‍या मतबल है । अरे भैया होली के दिन ज्ञान व्‍यान को कोई काम नहीं होता । होली तो अज्ञान से मनती है । और पानी बचाने का मतलब ये नहीं है कि त्‍यौहार ही खतम कर दो । आप क्‍या दैनिक भास्‍कर से आ रही हैं ।

सूचना- इलाहाबाद में एक विशेष प्रकार का अमरूद विकसित करने की योजना सरकार ने बनाई है । जे अमरूद का नाम श्री शेशधर तिवारीअमरूद होगा । काय कि ये अमरूद खा तो सब लेंगे लेकिन किसी को ये नहीं पता चलेगा कि इसका स्‍वाद क्‍या था । नाम के आगे प्रश्‍नवाचक चिन्‍ह भी लगा होगा । सूचना समाप्‍त ।

VINOD PANDEY

विनोद पाण्डेय

कबूतरी को पता है कि गुलाबी रंग सबसे अच्‍छा काले रंग के कन्‍ट्रास में दिखाई देता है । सो कबूतरी आज कन्‍ट्रास में आई है । राम जाने गजल में भी कुछ कन्‍टरास है कि सब कन्‍ट्रास पोशाक में ही हैगो ।

वो हैं गुलाब जैसे,हर एक इक अदा गुलाबी
उनसे मिली नजर तो चेहरा हुआ गुलाबी
गुझिया खिलायी  उसने,हाथों के अपने लाकर
मन मस्त हो गया और,मौसम हुआ गुलाबी
लेकिन खुमारी होली सर पे थी ऐसी छाई
मैं खुद हुआ गुलाबी उनको किया गुलाबी
तन,मन हुआ रंगीला,होली का रंग बिखरा
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
भाभी ने छत से फेका रंग भर के बाल्टी में
नीचे खड़ा था भोलू कुरता हुआ गुलाबी
दुबे जी निकले घर से पुरे बदन को रंग के
बच्चों ने फेंका गोबर,गोबर हुआ गुलाबी
ठंडई के साथ बूटी जो भंग की चढ़ा ली  
काला-कलूटा चेहरा भी दिख रहा गुलाबी

तालियां तालियां तालियां । मटरू की बिजली में केवल भैंस ही गुलाबी थी लेकिन हमारी कबूतरी ने तो गोबर भी गुलाबी कर दिया है  । मित्रों ऐसा पहली बार काव्‍य जगत में हुआ है कि गोबर गुलाबी हो गया है । सो इसे एक ऐतिहासिक घ्‍टना घोषित किया जाता है ।

सूचना- हिमाचल में मंत्रीमंडल का पुनरगठन किया गया है । तथा श्री नवनीत शर्माको हल्‍कट मुख्‍यमंत्री का पद दिया गया है । ये पद उनकी हल्‍की सेवाओं के चलते दिया गया है । उनको प्रदेश के सारे हल्‍के काम करने होंगे । जबकि भारी काम दूसरा मुख्‍यमंत्री करेगा । सूचना समाप्‍त हुई ।

तो अब भभ्‍भड़ कवि आज्ञा लेते हैं । थक गये हैं । कल होली के मुशायरे के दूसरे अंक में आप सब से मुलाकात होगी । दाद देने के लिये एक पैग भंग का चढ़ाएं और फिर दाद दें ।

बुढि़याती कवयित्रिओं के साथ आज मनाते हैं होला । बुढि़याती शब्‍द का प्रयोग इसलिये किया गया है कि इसमें से कुछ बाकायदा बूढ़ी हैं तो कुछ मानने को तैयार नहीं हैं की वो बूढ़ी हैं ।

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हम आप सब के प्रेम पियारे भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के बोलिस रहिन । कल का दिन जो कुछ हुआ सो हुआ लेकिन वैसा कुछ भी आज नहीं होना चाहिये । कल बहुत लोग भंगिया पी पी के बहुत ऊधम मचायरहे । सो कल सारे दिन हमारा माथा    का नाम कपाल टनटनाया रहा ।जवान छोकरे छोकरियां दिन भर इत्‍ती मस्‍ती किये कि बस । आज कुछ अच्‍छा होबे की उम्‍मीद हेगी । काय कि आज तो सबरे के सबरे बुढि़याए लोग आ रय हैं । जोन कछु बुढियाय नहीं लग रहे हेंगे तोन के बारे में जान लो कि वो सब ब्‍यूटी पार्लर में से आ रहे हैं । अपनी अपनी उमर घटवा के । कोनो के बोटेक्‍स के अंजिक्‍शन लगे हैं तो कोनों ने फेस लिफटवा करवाई है । कोनो कोनो ने तो .................. जाबे दो सेंसर हो जाएगा, हमारा ये जो है ये फेमिली शो है । एक्‍कोदम नीचे जो द्विजवा को फुटवा छपा रहिन उका देख के आपको समझ में आयेगा कि हम का कहत कहत छो‍ड़ दिहिस रहिन । होली आय गइस रहिन । सो अब का करिस । खूब मौज मस्‍ती करिस । भांग तो दुइ दिन पहले की बात रहिन आज तो साक्षात ऊ का बारी है । ऊ का, समझ नहीं पडिस, अरे ऊ ही जेका सब लोग महुआ की सुपुतरी कहत रहिन । तो आज तो भैया जै बात जै बात होई के रहिस ।

आज के सगरे बुढऊ लोगों को परिचय भी संग में रहिस रहिन । सारे बुढ़ऊ बुढियाती उमर में गन्‍नाय रहे हैं । कोनो की भी मती पूछो सगरे के सगरे आग खाओ अंगारे @@@@ हो रहे है । कोऊ से कछु कहने जाओ तो जोगी रा सारारारा कह कह के होरी की आड़ में अपने मन की कर रहे हैं । सच कहा है किसी ने' होली में दो से बचो बूढा बच्‍चा जात' । बच्‍चा  तो मान जाय है पर बूढा, ऊ तो ससुर तजरुबे वाला होत रहिस । ऊ तो अपनी उमर के आड में सबे कछु करबे चाही ।

होली है भई होली है बुरा न मानो होली है ।

केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

सगरे लोग लुगाइन को होली की शुभकामनाएं, केसरिया होली है, लाल ललाई होली है, पीली पीली होली है, नीली नीली होली है, हरी हराई होली है, गुलो गुलाबी होली है । होली है भई होली है । होली है भई होली है ।

DWIJENDRA DWIJ

द्वजेन्‍द्र द्विज

ई मुटल्‍ली जोन आपको दिखिस रहिन ई सीधे पहाड से सीधे चल्‍ली आ रहि स रहिन, ई मुटल्‍ली जो है ई भी घजल लिखबे की शौकीन रहिस । आप ई की इस्‍टाइल पर भिल्‍कुल भी नहीं जाइस । बुढिया गई है पर इस्‍टाइल छोडबे की नहीं । किछु दिना पहले बुढिया का चिश्‍मा उतर गया । तो का भया सुसरी बिना चिशमा के भी घजल लिख रइ है और धना धन लिख रही है । अउर का परिचय दिया जाय । बस इत्‍ता सिमझ लो कि आप्‍पो आप को ही खूब बडी साइरा सिमझती है । का है कि अपने देस में गलतफहमी पे कोउ टैक्‍स जो नहीं है । तो आइये सुनते हैं बुढिया की घजल ।


होली है  यारो, मेरा  चश्मा हुआ गुलाबी
‘सच्ची में’ कह रहा हूँ देखा-सुना गुलाबी
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
होली में रंग लेकिन सब पर चढ़ा गुलाबी
तू है गुलाब जैसी , तेरी हर अदा गुलाबी
तू इक  हवा गुलाबी, तू इक घटा गुलाबी
होली में हो गया है मेरा हौसला गुलाबी
मेरे लिए भी माँगो कोई दुआ गुलाबी
अपने शबाब पर है अब तो हवा गुलाबी
जा, जाम ला गुलाबी, मुझको पिला गुलाबी
अब जब कि हो गई है सारी फ़ज़ा गुलाबी
मेरी जान आके मुझसे चक्कर चला गुलाबी
तेरी बेरुख़ी से मैं भी, मुरझा के रह गया हूँ
आकर बरस तू मुझपर, मेरी घटा गुलाबी
तू ‘Jet-black’ लेकिन रह-रह के सोचता हूँ
किस झोंक में था मैंने तुझको कहा गुलाबी
तेरे  सामने  मैं  सूखे  पत्ते-सा  काँपता  हूँ
मुझे बख़्श, जा गुलाबी , मुझे छोड़ जा गुलाबी
होली के दिन तो कोई ‘mono-colour’ नहीं है
‘Multi-colour’ है दुनिया , सबपे फबा गुलाबी
बाक़ी मेरे लिए भी ‘choice’ नहीं है कोई
आँखें हैं ‘pink’ उसकी मैं भी हुआ गुलाबी
सत्तर का हो गया पर बदला नहीं है ससुरा
दादा भी बन गया है लेकिन रहा गुलाबी
चाँटा जड़ा जब उसने आँखों में रंग नाचे,
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
वो भाँग की पिनक में था गुलबदन का साया
उतरी जो भाँग उसकी , भैंसा मिला गुलाबी
‘सज्जन’, ‘ख़याल’, ‘पंकज’, ‘नीरज’, ‘नवीन’, ‘सौरभ’,
‘नवनीत’ ‘अर्श’, ‘राही’ सब पर चढ़ा गुलाबी
‘वीनस’, ‘मधुर’, ‘सुलभ’, का ‘राजेन्द्र’, ‘नासवा’ का
‘राजीव’ का, ‘उड़न’ का, चक्कर चला गुलाबी
होली का है वो अन्धा, है हाल उसका मन्दा,
जाओ निकालो, ‘द्विज’ को काँटा चुभा गुलाबी

अरे दद्दा हम ई बतावा तोभूल ही गये कि बुढिया तो इंगरेजी की परफोसर है । मुंहजली देखो तो कैसे टकाटक इंगरेजी के शब्‍द फैंक रही है । बुढा गई है पर अभी भी गुलाबी चक्‍कर चलानें को दिल कूद कूद रहा है । कोनो भी कोइ दाद वाद नइ देगा इत्‍ती बुरी घजल पे । जो भी दाद देने की कोसिस करेगा ऊ के मुंह में दो किलो गोबर के कंडे जुल्‍मी सिपइया के हाथ से ठुंसवाये जाएंगे ।

सूचना - खबर आई रहिस है कि दुबई में रहबे बारे एक कोनो दिगम्‍बर नासवाके सामने बड़ी दिक्‍कत हो गई है । काय के दुबई की सरकार ने आर्डर दिये हैं कि जिसका भी जो भी नाम होगा वो अपने नाम के हिसाब से ही रहेगा । मतबल ये कि जेका नाम खुशबू है ऊका महकते रहना होगा। तो दिगम्‍बर नासवा के सामने परेसानी जो है वो आप उनके नाम का अर्थ निकाल के समझ सकते हैं । जिन किसी को इस मुश्किल का हल मिले वो अवश्‍य सूचित करें । सूचना समापत भई ।

MADHUSOODAN MADHUR

मधुभूषण शर्मा मधुर

काय बुढऊ का एको बार मधु से काम नहीं चल रओ हतो जो तुम दो बार मधु लगा लिये । एको बारे आगे मधु और एको बार पीछे मधु । बुढापे में जे ही हो जाविस रहिन । अब कित्‍ती बार भी मधु लगा लो चाहे तो दो बार आगे और दो बार पीछे लगा लो पर किछु भी नहीं होने वाला । जब उमर का ही मधु सूख जाये तो नाम के मधु से का होविस रहिन । हमहू का है लगता रहो मधु मधु मधु ।


होली का आज दिन है, मौसम हुआ गुलाबी
हुड़दंग वो मचाओ, कर दो फज़ा गुलाबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
रंगे-रदीफ़ में हो हर काफिया गुलाबी
होली का ये मिलन तो कुछ हो गया गुलाबी
आगे भी क्या चलेगा ये सिलसिला गुलाबी
कुछ यूं हुए हैं अपने मनमोहना गुलाबी
उन्नीस छू लिया तो हर हादसा गुलाबी
होली का आज दिन है, मौसम हुआ गुलाबी
हुड़दंग वो मचाओ, कर दो फज़ा गुलाबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
रँगे-रदीफ़ में हो हर काफिया गुलाबी
होली का ये मिलन तो कुछ हो गया गुलाबी
आगे भी क्या चलेगा ये सिलसिला गुलाबी
कुछ यूं हुए हैं अपने मनमोहना गुलाबी
उन्नीस छू लिया तो हर हादसा गुलाबी
सरकार भी है सहमत दो दिल अगर हैं सहमत
हो के रहेगी अब तो आबो-हवा गुलाबी
करती है सी-बी-आई हल्के से क्या इशारा
माया हो या मुलायम, हर चेहरा गुलाबी
मोदी का देख जादू हो कांग्रेस तो पागल
भगवां से हो रही पर क्यूं भाजपा गुलाबी
जीजा के संग साली जब खेलती है होली
फिर हर ख़ता गुलाबी, फिर हर सज़ा गुलाबी
चमका दिए हैं उसने होली के रंग सारे
गालों पे छा गयी जो शर्मो-ह्या गुलाबी
रंगीन हैं, 'मधुर' हैं, मेरी तमाम राहें
मंज़िल ने खुद किया है यूं रास्ता गुलाबी

ओय होय का शेर हेडा है सहमती से गुलाबी गुलाबी होने का । बुढापे में जे ई तो मजा है किछु करो न करो पर तसव्‍वुर तो खूबेकर सकत हो । जे बात और जोड लो कि बस तसब्‍बुर ही कर सकत हो । बुढाप में भगवा रंग की बजाय गुलाबी हो रय हो । काय के मधुर और काय का मधु । बुरी गजल, जो लोग कान से बहरे होंऔर जिनने किछु भी नहीं सुना हो वो दाद दे सकत हैं । और किसी ने दाद दी तो ऊ के दोनों कानों में दो दो बूंद कडवा तेल डलवाया जायेगा, दो बूंदजिंदगी की ।

सूचना - कनाडा की गवरमेन्‍ट ने अब एकनया कानून बनाया है कि अब वहां पर रहेन वाले सभी चांदुर रेलवे ( गंजे ) को दुई दुई घंटा खरबूज के खेत में खडा रहबे का परी । का है कि ऊ से खरबूज में चमक आयेगी । का है कि चंदिया को देख के खरबूजा रंग बदलता है । ई घोष्‍णा से हमारे बीच के निरमल सिद्धूखुस भी हैं और परेसान भी । खुस काहे हैं और परेसान काहे ई आप गेस लगाइसे । सूचना समापत ।

HASHMI JEE

मंसूर अली हाशमी 
ई इनका जोडे से खिंचा फोटो रहिस । तन्निक गौर से तो द‍ेखिये । कोनो बात निजर आई । नइ आई कोई बात नहीं । सोचते रहो । ई फोटो अपनी वरिष्‍ठ इमराना हाशमी, भूला किछु और नाम है । तो जो भी नाम हाबे हमका का है । नाम में का धरो है । का नाम में हाशमी लगा होने से सबे कोई इमरान हाशमी बन जाबे । इमरान हाशमी बनने के लिये कलेजा चाहिये सात सात और आठ आठ फेफडे ।

केसरिया, लाल, पीला,  नीला, हरा, गुलाबी
जिस रंग में तुझको देखा, मन हो गया गुलाबी.
अब कौन रंग डालू तू ही ज़रा बतादे
केसरिया,लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी ?
होली से पहले ही है छायी हुई ख़ुमारी
हर सूं ही दिख रहा है नीला,हरा, गुलाबी.
''केसरियालाल'', पीला; क्यूँ होता जा रहा है,
''सेठानी'' पर सजा जब नीला, हरा, गुलाबी.
तअबीर मिल रही है, रुखसार से हया की   
आईना हाथ में और चेहरा तेरा गुलाबी
केसरिया, लाल, नीला; अब खो रहे चमक है
सब्ज़ा* हुआ है पीला , 'मोदी' हुआ गुलाबी. 

सच बात तो यह है कि हमारे 'धर्म-निरपेक्ष' देश में होली खेलने का अवसर ही नहीं मिला !  बचपन में अपने बंद मोहल्ले में 'सादे पानी' से ही होली ज़रूर खेली.  क्योंकि दूसरी तरफ 'गंदी होली' [ गंदी इसलिए कि उसमे रंगों के अलावा 'गौबर' और 'गालियाँ' भी शामिल होती थी] खेली जाती थी. बच्चों को प्रदूषण से बचाने का ठेका तो हर समाज लेता ही है ! फिर किशोरावस्था आते-आते हम ज़्यादा अनुशासित हो चुके थे, सो सफ़ेद कपड़े पहन कर होली के दिन भी निर्भीक घूम लिया करते थे- यूं 'दाग-रहित'  रह लिये. जवानी में आर. के. स्टूडियो की होलीयाँ देख-देख कर [चित्रों में], लाड़ टपकाते रहे……….    
और अब बुढ़ापे में तो……।
क्या लाल, कैसा पीला, केसरिया क्या है नीला ?
सब कुछ हरा लगे है, सावन गया 'गुलाबी' !
''केसरियालाल'' पीला, कुरता भी है फटेला,
'नीला' हरी-भरी है, हर इक अदा गुलाबी.
फिर भी "होलीयाने" की कौशिश कुछ इस तरह की है :-
टकता है छत से बाबू, चेहरे पे है उदासी,
खाए गुलाब जामुन  नीचे गधा गुलाबी.
पिचकारी छूटती है, किलकारी फूटती है,
ढेंचू का सुर अलापे , देखो गधा गुलाबी.
[ठीक से तो पता तो नही पर होली के दिन गधों को कुछ विशेष महत्व प्राप्त हो जाता है, इसीलिए गधे महाराज की मदद ले ली है कि होली की इस गोष्ठी में शायद प्रविष्टि मिल जाये.
पुनश्च :    नीचे से १४ वीं पंक्ति में 'लार' की जगह "लाड़" टपक गयी है ! कृपया टिस्यू पेपर से साफ़ करले ! धन्यवाद.

जब आप को ही तरही में प्रविष्टि मिल गई तो आपको ये तो समझ ही जाना था क‍ि तरही में गधों के आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है । ऊ पे अलग से गधे का नाम लेने की कोनो जरूरत नहीं है । एक बात और कहिस का चाहे ऊ ये कि बुढापे में  ढेंचू का सुर मत लगाओ बुढिया, पता चलेगा कि कहीं का सुर कहीं लग जाय का रही । गंदे नाले का कसम खाय रही इत्‍ती बुरी गजल हम अपनी पूरी जिन्‍नगी में नहीं सुनी । जोन भी इस गजल पे दाद दे ऊका काली रात में खुजली वाले काले कुत्‍ते की सगी पत्‍नी काटे ।

सूचना- अब्‍बी अब्‍बी सूचना अई है कि बत्‍तीसगढ़ में एक डाग-टर को पुलिस ने धर पकडा है । सूचना मिली है कि डागटर का नाम कोनो संजय फंजय दानीहै । पुलिस से पिरापत जानकारी के अनुसार डाक्‍टर मरीज को आपरेशन से पहले अपनी गजल सुना कर बेहाश कर रहा था । जब पुलिस वहां पहुंची तो डागटर एक मरीज को गजल सुना रहा था । पुलिस वाले पहले बेहोश हुए और बाद में उन्‍होंने डाकटर को पकडा । सूचना समापत भई ।

NAVNEET SHARMA

नवनीत शर्मा
शकल सूरत से कोनो भी बिल्‍कुल न समझे की ये बुढिया नहीं  है। हम पहले ही बता दिहिस रहिन कि इध्‍र कुछ बुढिया लोग किछु किछु  करवा करवा के आइस रहिन । ई बुढिया भी बहुत किछु छिपा के आई है । कोनो हमको बातइस रहिन कि ई बुढिया कोनो पत्‍तरकार वत्‍तरकार है । होइबे करी हमका का । अपनी पत्‍तरकारी उते ही रखियो इते तो भभ्‍भड की पत्‍तरकारी चले है ।

चाँटा भी क्या गुलाबी, घूँसा भी क्या गुलाबी
पड़ते दो हाथ  सूरज ,   तारा दिखा गुलाबी
देखा है दिल ने जबसे चेहरा तेरा गुलाबी
फिर बज उठा है दिल में इक दिलरुबा गुलाबी
मैं रंग ले के उनको रँगने गया तो बोलीं
‘चल फूट ले यहाँ से, आया बड़ा गुलाबी’
बेशक मैं साठ का हूँ मुझपे भी रंग फेंको
वो दौर ही अलग था जब मैं भी था गुलाबी
उसको किसी कलर की होगी भी क्योंग जरूरत
गुस्से में लाल रुख़ है,  वैसे भी था गुलाबी
होली की धुन में हमने मुखड़ा ही गुनगुनाया
कोरस में फिर गधों ने मंज़र किया गुलाबी
कनटाप इक दिया है उनके ब्रदर ने जबसे
खाना न खा सके हैं जबड़ा हुआ गुलाबी
कानों में, नाक में भी, बनियान तक हमारी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
दाँतों का ‘सेट’ दिखा कर बोले बुज़ुर्ग हमसे
है ये ‘मेमरी’ पुरानी , हुआ मैं भी था गुलाबी'
तुमने तो कल कहा था कोई नईं है घर पे
टपका ये फिर कहाँ से ‘भइया’ तिरा गुलाबी
दीवार फाँदनी थी उनके मकाँ की यारो
लेकिन फिसल गया तो उतरा नशा गुलाबी

काय के जब भी किसी को ठुकवाना होता है तो हम अपना भैया को अलमारी में छिपा देते हैं । और बाद में हमे अपने आसिक को  जूते से ठुकते हुए देख  भोत मजा आवत है । सो आप ठुके । मगर आपके गले की कसम गजल तो इत्‍ती बुरी लिखी है इत्‍ती बुरी लिखी है कि अक्षर अक्षर में से बास आ रही है । कोई भी दाद देने की कोसिस न करे । कोई भ पत्‍तरकारी के डर में जदी दाद देगा तो ऊका होली की गोद में प्रलाद की जगे पे बिठाया जायेगा ।

सूचना- महिन्‍द्रा एंड महिन्‍द्रा कम्‍पनी ने अपने यहां पर काम करने वाले मुकेश कुमार तिवारी की तनखा दुगनी कर दी है और सेलरी भी बढा दी है वेतन बढाने पर भीविचार चल रहा है । इनको अब फेक्‍ट्री में बैठ कर अपनी भोत बुरी बुरी गजलें सुनानी पडती हैं । जिससे मजदूर तेजी से काम करते हैं । काय कि जल्‍दी से काम करके....... भागो । सूचना समापत भई ।

NEERAJ GOSWAMI

नीरज गोस्‍वामी
जिनके बारे में आप सोच रहे होंगे कि जे माथे पर इलग से एक काली लट किधर से आई हे । तो जे जो काली लट है बुढिया के माथे पर जे तो काले करमों का परिणाम है । जे काले कुकर्म कभी भी दबते नहीं है । किसी न किसी उमर में फूट के बाहर आ ही जाते हैं । इ काली लट जो है इ सारी कहानी कह रही है ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
सारे लगा के देखे, तुझपे खिला गुलाबी
रहता था लाल हरदम, दुश्मन के खून से जो 
होली में प्यार से वो, खंज़र हुआ गुलाबी
काला कलूट ऐसा की रात में दिखे ना
फागुन में सुन सखी वो, लगता पिया गुलाबी
आँखों में लाल डोरे, पावों में हल्की थिरकन
तू पास हो तो मुझ पर, चढ़ता नशा गुलाबी
पैगाम पी का आया, होली पे आ रहे हैं
मन का मयूर नाचा, तन हो गया गुलाबी
कल तक सफ़ेद झक थी, जुम्मन चचा की दाढ़ी
काला किया लगा तब, है मामला गुलाबी
होली पे मिल के 'नीरज' इक दूसरे को कर दें
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी

इमान से बुढिया ने अजुन तलक इत्‍ती बुरी गजल कभी नहीं सुनाई थी । बुरी तो पेले भी सुनाई पर इत्‍ती बुरी तो कोइ कदी नी थी । अइसन लगविस रहिन जइसन कि कोनो नीम की पत्‍ती को करेले का रस में मिला कर कुनैन का पानी छिडक छिडक के लिखी हो । दाद देने की कोनो जिरूरत नहीं है बुढिया की गजल पे । केवल दाद देने के लिये हमने किछु किन्‍नर बुलाय हैं जो आय हाय कह के दाद देंगे । सरोता में से कोई भी दाद देगा तो उसको भी किन्‍नरों में शामिल कर दिया जायेगा ।

सूचना- पाकिस्‍तान की सरकार ने भारत के इंजीनियर धर्मेंद्र कुमार सिंहकी सेवाएं मांगी है । पाकिस्‍तान ने भारत की सीमा  पर एक बडा बांध बनाने के लिये ये सेवाएं मांगी हैं । गुप्‍तचर सूत्रों के अनुसार बांध बनते बनते ही टूट  जायेगा । और पाकिस्‍तान का मकसद पूरा हो जायेगा । सूत्रों के अनुसार इनके बनाये बांध उदघाटन के पहले ही धूम धडाम हो जाते हैं । पाकिस्‍तान के प्रस्‍ताव पर सरकार विचार कर रही है  । कुछ लोगों का कहना है कि दे दो बला टले । सूचना समाप्‍त हुई ।

RAKESH KHANDELWAL JEE

राकेश खंडेलवाल 
जे डुकरिया सीधे अमरीका से आ रइ हेगी । अमरीका में दो रंग के लोग रेते हैं । जे डुकरिया दूसरे रंग की है । कुछ सूचना मिली है कि जे डुकरिया ओबामा की साली है । कुछ का जे भी केना है कि ओबामा की भूतपूर्व प्रेमिका की सगी लडकी है ये । परिचय तो भोत बडा नहीं है पर इत्‍ती सी बात  समझ लो कि पूरे अमरीका में इस समय बुढिया का खौफ है । जे लम्‍बे लमब्‍े गीत सुना सुना कर पूरे अमरीका को दहशत में डाला हुआ है डुकरिया ने ।

केसरिया    लाल  पीला   नीला   हरा   गुलाबी
ये तरही का हमको मिसरा  दिखता नहीं ज़रा भी
आँखों पर इक चश्मा जाने कैसा  चढ़ा हुआ है
सूखा गीला भूरा काला थी क्या   कहीं  खराबी
होठों पर तुम टाला जड कर कैसे बैठ गए हो
हमने तो ख़त तुमको भेजा, हर इक बार जबाबी
तीसमारखां गज़लें अपनी भेजेंगे तरही में
किन्तु एक भोपाली होगा सौ दो सौ पर भारी
सुनो  अदब से बा मुलाहिजा होशियार हो जाओ
खोपोली का दादा आता ले कर ठाठ नबाबी
जय हो होली की खुनक की . जनाब पंकजजी का पत्र आया और साथ ही फोन भी ठकठका दिया कि मियाँ  होली आ रही है तो ग़ज़ल लिखो और तो और अल्टीमेटम भी दे दिया की तीन दिन में सबको लपेट कर रख देंगे इसलिये अभी बिना एक मिनट की देरी किये लिख कर भेजो..हमने उनको साफ़ साफ़ मना कर दिया की ग़ज़ल वज़ल या हज़ल लिखना हमारे बूते का नहीं है तो दूसरी गोली दाग दी की ठीक है-- तरही में ग़ज़ल लगाने से पहले जो हम उठा पटक करते हैं वैसा ही कुछ लिख डालो. अब मरता क्या न करता वाली नौबत आ गई साहब. हम्ने तय किया कि माफ़ी माँहने  हम सीधे सीहोर ही पहुँच जाते हैं. इस बहाने माफ़ी माँगने के साथ साथ थोड़ा ताजा ताजा गाजर का हलवा भी उड़ा लिया जायेगा. और कोई दूसरा रास्ता बचा भी तो नहीं. हमको न तो गज़ल लिखना आता है न ही लेख न गद्य. हमने आज तक तो कुछ लिखा नहीं. खूब समझाया  भाई साहब  अपने सौरभ हैं, वीनस हैं, अंकित-प्रकाश,धर्मेन्द्र,गौतम, सुलभ, सौरभ, विनोद, द्विजजी,दिगम्बर,राजीव , शार्दुला, कंचन, रजनी सुमित्राजी, इस्मताजी के साथ साथ और भी धुंआधार शायर हैं तरही के लिये. निर्मल सिद्धूजी अभी शीत समाधि तोड़ने  वाले हैं और निर्मलाजी अपनी कलम की धार घिस घिस कर पैनी कर रहीहैं, और फिर---- अपने मियाँ भोपाली एक साथ इकत्तीस गज़लें लेकर किनारे पर मौक़ा तलाश रहे हैं तो भाई नीरज जी सचिन तेंदुलकर की तरह अपनी कलम से हर घंटे एक ग़ज़ल बाउंड्री की तरफ फेंक रहे हैं तो हमें बख्शिये.

केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
रंग कत्थई जामुन वाला,अनन्नास,उन्नावी
भूरा,धानी,चटकीला सा चाकलेट असमानी
तोतई मटमैला कजरारा और रंग पुखराजी
सभी रंग चढ़ गये हुई फिर काया जरा नबाबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

मौसम की मस्ती रंगों पर तन पर मन पर छाये
फ़ागुन चुहल करे जेठों से भी भाभी कहलाये
सुरे बेसुरे राग सभी गूँजें पूरब पश्चिम में
मस्त हुआ नन्देऊ सेड़ का पंचम सुर में गाये
सेवन करे भांग का पैमाने को छोड़ शराबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

शिवबूटी को घिस कर घोली कुल्लड़ में ठंडाई
थाप चंग पर देते गाती इक टोली फ़गुनाई
चिलम चमेली की बाँहों में मन खाये हिचकोले
रंग डाल कर भिगो ना तन को चूनर चोली बोले
हलवाई की भट्टी में  बाकी ना राख जरा भी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

शाखा पर लेते नव पल्लव नींद छोड़ अंगड़ाई
अम्बर से पूनम ने भर कर कलश सुधा बरसाई
चले खेत से खलिहानों से स्वर्णमयी कुछ बूटे
धानी चूनर गेंहू की बाली के सँग लहराई
गंगा के संग मुदिन ह्रदय से नाचे झेलम रावी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

ऐ मैया ऐ माताराम, नेक छोटो कर दे जिरा इस गीत को । काय के अमरीका वाले तो झेलबे के भोत मिजबूत होते हैं पर इधर अपने इधर इत्‍ती मजबूती नहीं हेगी । काय री परमेशरी इत्‍तो बडो गीत काय लिखे है री । धे ठकाठक  धे  ठकाठक, गीत है कि मालगाडी । एक डिब्‍बा फिर एक डिब्‍बा । भभ्‍भड कवि ई घोषित  करते हैं कि इत्‍ते घटिया और टुच्‍चे गीत पर कोई भी वाह वाह करबे के लिये अपना सिरीमुख नहीं खोले । जिसने सिरीमुख खोला उसका कान में पूरा का पूरा इनका किताब अंधेरी रात  का सूरज उतार दिया जायेगा ।

सूचना- कल के अंक में श्री विनोद पांडेयने अपनी एक टिप्‍पणी में भभ्‍भड को कुशल कवि, साहित्‍यकार, गजलकार और जाने कौन कौन सा ऊल जलूल बात कही है । होली के अवसर पर इस प्रकारी की ऊल जलूल बातें बिल्‍कुल भी बरदास्‍त नहीं की जाएंगी । विनोद पांडेय को तीन गिलास भंग की पिलाई जाये ताकि वे इस प्रकार की ऊलजुलुल बातें बंद करें । सूचना समापत भई ।

SAMEER LAL JEE

समीर लाल ’समीर’

झिंगा लाला झिंगा लाल हुर्र हुर्र,‍ झिंगा लाला झिंगा लाला फुर्र फुर्र । हचाबो मसाबो मसाबो । क्‍या आपको समझ में नहीं आ रहा । ये दरअसल  कवि की भाषा में बात कीजा रही थी । ये जो डोकरी आपको घूंघर वाले बाल लिये दिखाई दे रही है ये किरजिंगलिप्‍पा के आदिवासी इलाके से आई हे । डोकरी के उमर पर ना जाइये । बात की बात में उडन तश्‍तरी की तरह सर्र से जोगीरा सारारा करते निकल जाती है ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
मौसम हुआ हैं रंगीं, बादल हुआ गुलाबी
खुश्‍बू सी है फिज़ा में , ये कैसी बहकी बहकी 
कोई गुलाब है के, गजरा तेरा  गुलाबी 
त्यौहार होली का है, यूं चढ़ रही खुमारी  
अंखियन की डोर देखी,  कजरा भया गुलाबी
फागुनिया प्रीत का रंग , छिपता नहीं छिपाये
सांवरिया साजना भी  भंवरा बना गुलाबी
छन्ना के रुठ जाना, छन्ना के मान जाना
कहता समीर इसको नखरा तेरा  गुलाबी

भोत बुरी गजल  हे रे भैया भोत बुरी गजल । इत्‍ती बुरी तो अपने पूरे इतिहास में नहींलिख हो गी । इत्‍ती बुरी की भभ्‍भड़ कवि पूरी गजल सुनने के दौरान दो बार बाहर जाकर कानों से उल्टियां करके आए हैं । एक बार इधर के कान से और दूसरी बार उधर के कान से । अभी तक कान मिचला रहे हैं भभ्‍भड के । तो अब जिनका भी दाद देने का है वो समझ लें कि उनको होली से रंग पंचमी तक ये ही गजल सुनाई जायेगी ।

सूचना - कल के अंक पे अपनी कमेंट में सौरभ पांडेयलिखविस रहिन कि सूचनवा के बाद का टुनटुनी-टुनटुन... अने टिंगटौगठुस्स को काय ला म्यूट करे बैठे हैं, भभ्भर कवीजी ?? हर सूचना का पाछे टिंगटौंगठुस्स.. टिंगटौंगठुस्स.. का बजना बनता था न । ई में हमें बाद का ठुस्‍स तो सिमझ में आ रहिस किन्‍तु ऊ  जो पहिले का टिंगटौंग है ऊ हमार कपाल में नहीं घुसिस । कोनो को सिमझ में आय रहिस तो भभ्‍भड को सिमझाने की किरपा करें । सूचना समापत भई ।

SAURABH PANDEY

सौरभ पाण्‍डेय

ई इल्‍लाहाबादी अमरूद हैगा रे भैया । लोग कहिस रहिन कि इल्‍लाहाबादी अमरूद अंदर से लालम लाल रहिस, लेकिन किन्‍तु परंतु ये अमरूद तो बाहर से भी लाल गुलाबी हो रहिस रहिन । बुढोती में बुझौती लौ की फडफडाहट का रंग किस दिना से गुलाबी हो रहिन है । सूचना ये भी है कि इ  जो बुढिया है ई इल्‍लाहाबाद के किसी नइ उमर के लरिका के चक्‍कर में अपना बुढापा खराब कर रही है । राम बचाये ।

कचनार से लिपट कर महुआ हुआ गुलाबी
फिर रात से सहर तक मौसम रहा गुलाबी
बेदम हुए बहाने बेबाक पैंतरों से
लय साधता खटोला, होता गया गुलाबी
करने लगीं छतों पर कानाफुसी निग़ाहें.. . 
कुछ नाम बुदबुदाकर, फागुन हुआ गुलाबी
इस क्रम को याद रखना, ये दौर प्यार के हैं -
केसरिया.. लाल.. पीला.. नीला.. हरा.. गुलाबी.. .!!
उसने किया इशारा तो साथ हो लिए हम
भागे मग़र पलट कर वो शख़्स था गुलाबी
ऐसी चढ़ी फगुनहट, संसद पढ़े जोगीरा
आलाप ले रहा है, मनमोहना गुलाबी..
वो फूल रख गयी है टेबुल पे, पर करूँ क्या 
दफ़्तर ने आज ही तो चिट्ठा रखा गुलाबी ..

हें...... बुढिया सरम कर सरम  । काहे को कचनार और महुआ की आड में अपने बुढाते हुए दिल का गुबार हेड रही है । काय का हम को नहीं पता की इलाहाबाद के उस लरिके का नाम कचनार सिंह केसरी है । ऊ कचनार है तो हुइबे करी पर तू कब से महुआ हो गई  । बासी बंदगोभी अपने को महुआ कह रही है । और गजल तो भोत बुरी के दी हेगी । काय लरिका ने किछु नइ सिखायो । कोनो को भी दाद देने की जिरूरत नहींहै । लरिका आयेगा तो खुद ही सबके बदले में बुढिया को जूतन से दाद देगा ।

सूचना- आज भभ्‍भड  कोई भी मुंहझौंसे को आदरणीय-फादरणीय, श्री-फ्री, जी-बी, साब-वाब आदि आदि नहीं लगा रहे हैं । का है कि कल प्रकाश अर्शने अपनी टिप्‍पणी में भभ्‍भड कवि को अत्‍यंत आदर के साथ भभ्‍भड साब कह के पुकार लिया था । होली के दिनों में भभ्‍भड  को आदर देने और लेने की बिल्‍कुल आदत नहीं है । कल साब सुनने के बाद भभ्‍भड की घुटने की धड़कन बढ़ गईं थीं । बडी मुश्किल से कंट्रोल हुई हैं । कोई भी आज आदर की बात नहीं करे । सूचना दी एंड । 

SHESHDHAR TIWARI 1

शेषधर तिवारी

नाम तो धरा हेगा शेषधर किन्‍तु एक मक्‍खी भी सिर पर बैठ जाये तो पूरा देह का ब्रहमांड हिल पड़े । डोकरी तरही में कभी कभी आती है ।इस बार तो भोत दिन के बाद चक्‍कर लगा है । मैंने पूछा कि किधर गई हती तो बोली की दूर के रिश्‍ते के बेटे की शादी में गई थी । मैंने पूछा दूर के रिश्‍ते का बेटा । तो बोली मेरे चौथे पति की पांच वी पत्‍नी के तीसरे पति का बेटा था । जोगीरा सारा रा रा ।


सूरज उगा है लेकर ऐसी छटा गुलाबी
दुनिया के सर पे जैसे सेहरा सजा गुलाबी
कर दे मेरे मसीहा कोई कमाल ऐसा 
इठला के बोले हर शै इक जाम ला गुलाबी
टकरायेंगे परिंदे सर आज आसमां से
है इस कदर फजां पर नश्शा चढ़ा गुलाबी
बचना कि हो न जाए तकसीर कोई मुझसे
चेहरा हर एक मुझको दिखने लगा गुलाबी
मिल जाए आज मौक़ा तो मैं गले लगा लूं
मुझसे लिपट के होता है देवरा गुलाबी
तख्मीस हो न जाए हर शेर इस ग़ज़ल का
होली के रंग में हर मिसरा हुआ गुलाबी
सच है ये मैं दियानतदारी से कह रहा हूँ
ज़ह्राब लब का मंज़र दिखने लगा गुलाबी 
हालाते जाँकनी में लेटे बुज़ुर्ग की भी
यादों में हंस रहा है इक हादसा गुलाबी
जिस रंग में भी चाहे मुझको तू रंग देना
“केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी”
पूछा जो दोस्तों से क्या रंग भंग का है
इक घूँट पी के बोले "अब हो गया गुलाबी"
हो रंग कोई सबकी अपनी कशिश है लेकिन
मखसूस कुछ है इसमें जो है जुदा गुलाबी
ऐजाब हो रहा है हर इक हसीं को खुद पर
यूँ लडखडा रहे हैं मर्दाज़्मा गुलाबी 
माइल ब औज है अब, नश्शा ये भंग का है
दिखने लगेगी सब को सारी फ़ज़ा गुलाबी
बदख्वाह है परीशां दे कैसे बद्दुआयें 
जब बद्दुआ भी निकले बनकर दुआ गुलाबी
दौराने रंगपाशी पूछा जो उनकी च्वाइस 
नज़रें मिला के बोले वो बरमला "गुलाबी"

खतम हो गई गजल, सचमुच खतम हो गई गजल । कोई जाकर पक्‍का करो कि खतम हो गई है । मुच्‍ची में खतम हो गई हो तो भभ्‍भड कवि नींद खतम करके उठ जाएं । किसी डाक्‍टर  ने परचा लिख दिया है इनको कि एक गजल सुबह एक दोपहर और एक शाम को  लिखना है । और हर गजल में तीन सौ अठहत्‍तर शेर होना कम्‍पलसरी है । इत्‍ती बुरी गजल सुनने के बाद भभ्‍भड के लिये भांग पीना जिरूरी हो गया है । इस बीच में कोई भी दाद नी देगा । जो दाद दे उसको कबरी बिल्‍ली की कसम ।

सूचना - कल की पोस्‍ट में बुढऊ तिलक राज कपूरअपना भेजे का कपाल घुसा कर एक टिप्‍पणी करी रही कि केवल एक ही बहर में हंसना है । ऊ टिप्‍पणी को बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं दिया जाए । आप अपनी मन मर्जी की बहर में हंस सकते हैं ।भीनस केसरीजिस बहर में हंसा है ऊ भी चलेगा । जे में भी आपको फेफडा परमीशन दे ऊ बहर में हंसे । सूचना समापत भई रही ।

TILAK RAJ KAPOOR

तिलक राज कपूर
जे ब्‍बात, बुढिया को देखो  तो सही । ससुरी मध्‍यप्रदेश की चक्‍की का आटा खा खा के बुढापे को रोके हुए है । मुस्‍कुराहट पे तो जैसे टैक्‍स ही लगा हो । कुछ दबी सी कुछ खिली सी । जे बात कही जाती रही है कि जे जो मुसायरा है इसमें कोई भी लिखी हुई गजल नहीं पढेगा । तो हाथ में जो कागज पत्‍तर है ऊ फैंक दिया जाए ।

हास्य  ग़ज़ल-1
होली की मस्तियों में डूबे चचा गुलाबी
घर से चलें हैं जैसे इक मनचला गुलाबी।
पतली कमर हिली तो ठुमका लगा गुलाबी
टपके जो दॉंत निकला मुँह पोपला गुलाबी।
चाची मना रही हैं होली अलस्सुँबह कल,
ये जानकर चचा को सपना दिखा गुलाबी।
पगड़ी सजी चचा की होली के रंग लेकर
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।
निकले  चचा गधे पर उल्टी  दिशा में बैठे
चाची ने जब ये देखा चेहरा हुआ गुलाबी।
पिचकारियॉं लिये सब छज्जे भरे हुए थे
चाची चचा को सबने, मिलकर किया गुलाबी।
चाची चचा मिलन से, छाया सुरूर ऐसा
रंगीन थी दुपहरी, सूरज ढला गुलाबी।
हास्य ग़ज़ल-2
बीबी ख़फ़ा हुई तो, जीवन हुआ गुलाबी
चर्चा मेरा नगर में होने लगा गुलाबी।
सारी हसीं नगर की, चक्कर लगा रही हैं
ऐसे में हो न जाये, हमसे ख़ता गुलाबी।
होली की दी इज़ाज़त, तो रंग यूँ लगाया
मेरे अधर को छूकर उसने किया गुलाबी।
चेहरे पे रंग मेरे उसने लगा के बोला
ये हाथ रुक न पाये, सर हो गया गुलाबी। 
होली पे ये लिपिस्टिक काजल बिके धड़ाधड़
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।
बोतल चढ़ा के मुझपर इल्ज़ा म रख दिया है
सर चढ़ के बोलता है तेरा नशा गुलाबी।
देखा उदास उसको तो वैद्य ने बताया
ये रोग है गुलाबी, इसकी दवा गुलाबी।

ग़ज़ल-3 
वीरान जि़न्दगी में कुछ भी न था गुलाबी
आहट सुनी तुम्हाबरी सब कुछ हुआ गुलाबी।
रंगीनियॉं लिये है पतझड़ के बाद फागुन
टेसू खिला हुआ ज्यूँ , केसर मिला गुलाबी।
रिश्ते बदल रहे हैं पल-पल में रंग कितने
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।
गेसू में रंग काला भरकर खुदा ने सोचा
गालों में क्यां भरूँ अब, फिर भर दिया गुलाबी।
मदिरा का रंग क्या है, किसको दिखा बताओ
ऑंखों का रंग लेकिन सबको दिखा गुलाबी।
तू है कि संग-ए-मरमर सा जिस्म इक मुजस्सम
लेकर गुलों की रंगत जो हो गया गुलाबी।
बिखरी है राह पर जो, उस धूप से बचा कर
झुलसा न दे कहीं ये, चेहरा तेरा गुलाबी। 
बस तीन ही गजल.... काय और नहीं लिखीं । और लिख लेती बिन्‍नो । काय तीन से तेरो तो किछु भी नइ होने बारो । पांच सात आठ किछु और लिख लेती । बुढापे में भी आदत नहीं छूट रही है । आपके गले की सौं जिनने भी तीनों गिजलें पूरी सुनी हैं वो हाथ ऊपर कर दें । उन सब को अलग से सम्‍मान किया जायेगा । भभ्‍भड़ कवि घोसित करते हैं कि भले ही पहली गजल खराब थी लेकिन दूसरी उससे भी खराब थी । हां ये बात अलग है की तीसरी दोनों से और ज्‍यादा खराब थी । कुल मिलाकर बात ये हुई कि तीनों ही खराब थीं । दाद देने वाले को @@@@###### कम लिखा ज्‍यादा समझना ।

सूचना- @@@@######  #####@@@@  #####@@@@@  @@@@#### #####@@@@ @@@@####  @@@@@##### ##$$#### @@@@@### @@@##### $$$$$##### सूचना समाप्‍त हुई ।

NAVEEN CHATURVEDI1

नवीन चतुर्वेदी

इत्‍ते सारे माइक, काय का एक से काम नहीं चल रओ थो । अच्‍छा भोत तरीकेसे बोलना हेगा । एक माइक पे दोहे, एक पे छंद एक पे गजल और एक पे गीत । का है कि अलग अलग माइक से बोलने में अलग अलग प्रभाव आता है । एक ही माइक और एक ही मुंह से श्रोता बोर हो जाता है । अलग अलग तरीके से बोर करना हो तो माइक भी अलग अलग होना चाहिये ।


चूनर पे तक चकत्ता इत्ता बड़ा गुलाबी
कहने लगीं सहेली, वो कौन था? गुलाबी
कैसे बताए सब को, थी सोच में गुलब्बो
नज़रें चुरा के बोली कुछ लोच में गुलब्बो
होली का पर्व है सो, पुतवा रही थी घर को
मिस्टर ने थामी कूची, मैंने गहा कलर को
दीवार पुत चुकी थी, दरवाज़ा रँग रहे थे
ठीक उस के पीछे सखियो कुछ वस्त्र टँग रहे थे
मिस्टर तपाक बोले, इन को हटा दो खानम
मैंने कहा सुनो जी, तुम ही हटा दो जानम
कुछ और तुम न समझो, मैं ही तुम्हें बता दूँ
मैं समझी वो हटा दें, वो समझे मैं हटा दूँ
दौनों खड़े रहे थे, जिद पे अड़े रहे थे
दौनों की जिद के चलते कपड़े पड़े रहे थे
आगे की बात भी अब तुम सब को मैं बता दूँ
दौनों ने फिर ये सोचा, चल मैं ही अब हटा दूँ
यूँ हाथ उठाया उन ने, इत मैं भी मुड़ चुकी थी
कब जाने सरकी चुनरी शानों पे जो रुकी थी
फिर जो बना है बानक कैसे बताऊँ तुमको
शब्दों से सीन सारा कैसे दिखाऊँ तुमको
हेमंत ने अचानक बहका दिया था हमको
कुछ ग्रीष्म ने भी सखियो दहका दिया था हमको
बरसात की घटा ने दिखलाया रंग ऐसा
कुछ था वसंत जैसा और कुछ शरद के जैसा
कर याद फिर शिशिर को दौनों हुए शराबी
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी

छुट्टन से छमिया ने कहा छिटके मत छोकरे नैन लड़ा ले
फूल सजा गजरे में गुलाब का इत्र लगा कर मूड बना ले
नौकरिया ने शरीर में जंग लगा दई है तो उपाय करा ले
चंग बजाय के रंग उड़ाय के भंग चढाय के जंग छुड़ा ले

इत कूँ बसन्त बीतौ, उत कूँ बौरायौ कन्त
सन्त भूलौ सन्तई कूँ मन्तर पढ़ौ भारी
पाय कें इकन्त मोसों बोलौ रति-कन्त कीट
खूब है गढ़न्त तेरे अंगन की हो प्यारी
तदनन्तर ह्वै गयौ गुणवन्त – रति वन्त
करि कें अनन्त यत्न बावरी कर डारी
साँची ही सुनी है बीर महिमा महन्तन की
साल भर ब्रह्मचारी, फागुन में संसारी

पेले वाले गीत पर तो सिरम  के मारे भभ्‍भड कुछ के नहीं पा सक  रहे हैं । काय कि सिरम तो सबके आती है ना । उसके बाद जो छुट्टन और छमिया का किस्‍सा है ऊ किछु किछु कम सरम का है । तीसरा जो किछु भी है वो भभ्‍भड के माथा कानाम कपाल के ऊपर से निकल गया है । जिनके नहीं गुजरा हो वो भभ्‍भड़ को एसएमएस करके समझाएं । दाद देने की कोसिस भी करने वाले को पछीट पछीट के मारा जाएगा । एक कोठी में कीचड़ और  नाली का पानी घोल रखा है उसमें पछीटा जायेगा । सो सिमझ में आ जाये ।

सुचना- घोसना की जाती है कि आज की पोस्‍ट पर जदी कोई भी टिपपणी करते समय जी, साहब, आदरणीय, जनाब जैसे लुच्‍चे शब्‍दों का प्रयोग किसी के लिये भी करेगा तो उसको अगले साल होली के डांडे  की जगह पर प्रयोग किया जायेगा । किसी भी प्रकार के आदरणीय अथवा फादरणीय  शब्‍दों का प्रयोग पूरी तरह  से प्रतिबंधित है । जो भी करेगा ओ के वास्‍ते @@@@###   । जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा । ओय चली चल चली चल ओय चली चल सारारा , ओय चली चल ओय चली चल ओय चली चल सारा रा।

सबको होली की शुभ  का म ना एं । मंगल कामनाएं । आप सबके जीवन में रंगों का ये त्‍यौहार खुशियों के नये रंग लाये । आपके जीवन में जो भी कलुष है वो रंगों की बोछार से धुल जाये । हर तरफ सुख हो शांति हो समृद्धि हो । आनंद की रस वर्षा हर ओर हो । हम सबके बीच में प्रेम बना रहे सदभाव बना रहे । आमीन ।

होली की शुभकामनाएं

भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के

नुसरत मेहदी नये मौसम, नये लम्हों की शायरा -डॉ. बशीर बद्र ( शिवना प्रकाशन की नई पुस्‍तक 'मैं भी तो हूं' ग़ज़ल संग्रह नुसरत मेहदी )

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MAIN BHI TO HOON1

नुसरत मेहदी नये  मौसम, नये लम्हों की शायरा -डॉ. बशीर बद्र
( शिवना प्रकाशन की नई पुस्‍तक 'मैं भी तो हूं' ग़ज़ल संग्रह नुसरत मेहदी )
शायरी ख़ुदा की देन है । इसका भार हर कोई नहीं सह सकता । यह न शीशा तोड़ने का फ़न है, न फायलातुन रटने का । यह काम बहुत नाज़ुक  है । इसमें जिगर का ख़ून निचोड़ना पड़ता है, तब कहीं कोई शेर बनता है। ग़ज़ल के शेर रोज़ रोज़ नहीं होते-चमकती है कहीं सदियों में आँसुओं से ज़मीं, ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं।
हर नामचीन और अमर शाइर (या शाइरात), हज़ारों साल के ग़ज़ल के सफ़र से बिना मेहसूस किए ही सीख हाासिल कर के एक नए व्यक्तित्व का सृजन करता है और यह सीख या शिक्षा उसके चेतन और अवचेतन का हिस्सा बन जाती है । साहित्य के आकाश पर कई सितारे डूबते हैं सैकड़ों उभरते हैं उनमें एक चमकदार और रौशन तारा नुसरत मेहदी हैं । बात करने से पहले उनके चंद शेर देखिए .....
महकने की इजाज़त चाहती है
हसीं चाहत भरे जज़्बों की ख़ुश्बू
फूलों की हवेली पर ख़ुश्बू से ये लिखा है
इक चाँद भी आयेगा दरवाज़ा खुला रखना
खामोशी बेज़बाँ नहीं होती
उम्र भर वह समझ  सका था क्या
किसी एहसास में डूबी हुई शब
सुलगता भीगता आँगन हुई है
मिरे शेरों मिरे नग़्मों की ख़ुश्बू
तुम्हारे नाम इन फूलों की ख़ुश्बू
कोई साया तो मिले उसमें सिमट कर सो लूँ
इतना जागी हूँ कि आँखों  में चुभन होती है
जाने कब छोड़ कर चली जाए
ज़िदंगी का न यूँ भरोसा कर
नुसरत मेहदी  के अश्आर को मैंने दो तीन बैठकों में पढ़ा । हर्फ़-हर्फ़ पढ़ा । मुझे हिंदुस्तान की तमाम ज़िक्र के योग्य शाइरात को पढ़ने और सुनने का अवसर मिला, उनका साहित्यिक मर्तबा इस बात से कम नहीं होता कि आज के सब से मनभावन, भावपूर्ण और सुंदर लहजे के अनगिनत शेर, मुद्दतों बाद नुसरत मेहदी  के कलाम में पाये। यह शेर सीधे दिल और दिमाग़ को प्रभावित करते है और पढ़ने सुनने वाला  एक अलग और नायाब लहजे और शेर के सौंदर्य के नये ग़ज़लिया स्वाद से परिचित होता है....
वहीं पर ज़िंदगी सैराब होगी
जहाँ सूखे हुए तालाब होंगे
तेज़ाबी बारिश के नक़्श नहीं मिटते
मैं अश्कों से आँगन धोती रहती हूँ
जब से गहराई  के ख़तरे भाँप लिए
बस साहिल पर पाँव भिगोती रहती हूँ
एक मुद्दत से इक सितारा-ए-शब
सुब्ह की राह तकता रहता है
तारीकियों में सारे मनाज़िर चले गए
जुग्नू सियाह रात में सच बोलता रहा
शेरों की सादगी और रचावट सादा लहजे में अहम और बड़ी बात कहने का ढंग स्त्रियोचित परिवेश के बावजूद ज़िंदगी की फुर्ती चुस्ती और कर्म की राह की मुसीबतों  से न घबराना । तेज़ाबी बारिशों, सूखे हुए तालाबों  से ज़िंदगी की प्यास बुझाना, गहराई  के खतरे को भाँपने  के बावजूद किनारे पर क़दमों के निशाँ, काली रात में जुगनुओं का सच, अंधेरी और अंतहीन रातों में  उम्मीद का चमचचमाता तारा, नुसरत मेहदी की ज़िंदगी  से मोहब्बत, सच्चाई की तरफ़दारी और नाइंसाफ़ी  से लड़ने का इशारा है। यह सीधा सपाट लेखन नहीं है कि इससे शेर का भाव आहत हो यह तो ग़मों, फ़िक्र और दुःख को बरदाश्त करने का और  विषय को बारबार दोहराने का नतीजा है जो इतना प्रभावशाली शेर काग़ज़ पर जगमगा सकें ।
नुसरत मेहदी के शेरी रवैया और शेरों को दाद देने के लिए रवायती प्रशंसा और सार्थकता का ढंग अपनाना ज़्यादती होगी। वह हमारे दौर की शाइरात में विशिष्ट ढंग की शाइरा हैं। पुरानी किसी महान शाइरा से उनकी तुलना या प्रतिस्पर्धा करना उचित नहीं। समय सब को अपने स्वर एवं चिंतन का राज़दार बनाता है। उनकी शाइरी आज के दौर में ज़िंदगी की सच्चाइयों का उद्गार है। साहित्य में न पुराना निम्न स्तरीय है न नया उच्च स्तरीय। पुराना हुस्न, भूत काल की यादगार है। आज का हुस्न वर्तमान की ज़िंदगी का करिश्मा और भविष्य  के प्रभावशाली दृष्टिकोण का इंद्रधनुषीय सपना है ।  उसके समझने के लिए वर्तमान के साहित्यिक पटल और दृश्य व परिदृश्य पर दृष्टि करनी होगी ओर इसके साथ ही क्लासिकी शाइराना रवैये पर ध्यान देना तथा अध्ययन, गहरा अध्ययन, शेरी ढाँचों को ऊष्मा, हरारत और जीवन से भरपूर कर सकता है। नुसरत बहुत चुपके से इस क्रिया से गुज़री हैं और ऐसे ताज़ा दम शेर लिखने लगी हैं जो नग़्मगी से भरपूर हैं मगर प्राचीन इशारों, उपमाओं, भंगिमाओं, तौर तरीकों से दामन झटकने के बावजूद शहरी अर्थपूर्णता के क़ाबिल हैं। यह उनकी कामयाबी है। कुछ और शेर देखें .....
इस शह्र के पेड़ों में साया नहीं मिलता
बस धूप रही मेरे हालात से वाबस्ता
अपनी बेचहरगी को देखा कर
रोज़ एक आइना न तोड़ा कर
आबे हयात पीके कई लोग मर गये
हम ज़ह्र पी के ज़िंदा हैं सुक़रात की तरह
सिर्फ अजदाद की तहज़ीब के धागे होंगे
ओढ़नी पर कोई गोटा न किनारी होगी
रेत पर जगमगा उठे तारे
आस्माँ टूट कर गिरा था क्या
सलीबो दार से उतरी तो जिस्मों जाँ से मिली
मैं एक लम्हे में सदियों की दास्ताँ से मिली 
आम बोल चाल की भाषा में शाहरा ने नई इमेजरी पेश की है। शहर के पेड़ों में साया न मिलना, धूप और माहौल की सख़्ती का सुंदर चित्रण, आभाहीन चेहरा होने पर आईना तोड़ना और आसमान टूट कर गिरने में ग़म की शिद्दत और आँसुओं  का सितारों की  तरह चमकना। क्रास और सूली से उतरने पर सदियों निर्दयता, सितम, अन्याय और हमारे समाज की चक्की में पिसती आम जनता आदि ऐसी शेरी उपमाएँ हैं, चित्रण है जिसमें स्त्रियोचित अभिव्यक्ति  में एक अजीब प्रकार की मोहब्बत और ममता  के भावों को भर दिया है जो नाराज़ तो है मगर तबाही का तलबगार नहीं। जो अप्रियता दर्शाती तो हो मगर अच्छाई के लिए प्रयत्नशील है क्योंकि उसके आँगन  में नये मौसम और नए क्षणों की सुगंध उड़ कर आ रही है ।
नुसरत मेहदी को सुन्दर और यादगार शेर कहने के लिए मुबारकबाद तो कहना ही है लेकिन अल्लाह पाक की इस देन को भी दिल से मानता हूँ उसकी यह कृपा  है, और उससे दुआ करता हूँ कि अच्छे दिल की, बेहतरीन सोच और कर्म की, ख़ूबसूरत विचारों की शाइरी को वैश्विक पैमाने पर प्रसिद्धि प्रदान करे । आमीन

                        -डॉ. बशीर बद्र

हर सन्‍नाटे को कभी न कभी टूटना होता है और त्‍योहार उसका सबसे अच्‍छा कारण बन सकते हैं ।

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मित्रों बहुत बहुत दिनों के बाद यहां पर कुछ हलचल हो रही है । असल में कुछ ऐसा होता गया कि यहां पर आने के लिये जितना समय चाहिये होता है उतना समय उपलब्‍ध नहीं होता था । और बस इस कारण या उस कारण से यहां का सन्‍नाटा धीरे धीरे बढ़ता चला गया। इस बीच बहुत कुछ घट गया। हम पिछली बार होली  पर मिले थे और अब दीवाली सामने आ गई है । दोनों ही पर्व दो अलग अलग ऋतुओं के पर्व होते हैं । वसंत से चल कर हम शरद तक आ गये और हमारा सन्‍नाटा जस का तस बना रहा।

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इस बीच बहुत कुछ हुआ । इन्‍दु शर्मा कथा सम्‍मान की  पहले घोषणा हुई और फिर उसके बाद लंदन की यात्रा । घोषणा से यात्रा के बीच में बस केवल भागदौड़ थी । और उसी बीच में हिन्‍दी चेतना के विशेषांक का सम्‍पादन भी पूरा करना था । दोनों कार्य ठीक प्रकार से सम्‍पन्‍न हो गये । जब इन्‍दु शर्मा कथा सम्‍मान की घोषणा की गई  थी तो मन में बड़ी दुविधा थी । पहली विदेश यात्रा को लेकर मन उलझन में था कि क्‍या किया जाए और क्‍या न किया जाए । नीरज जी ने जरूर ये आश्‍वस्‍त किया था निश्चिंत रहें सब कुछ ठीक ठाक होगा । और वीजा की भागदौड़ के बीच उनका ये कहना मन को बड़ा सुकून देता रहा । लंदन यात्रा के ठीक एक सप्‍ताह पूर्व हिन्‍दी चेतना का अंक जारी कर दिया गया । और प्रिंट संस्‍करण का विमोचन लंदन यात्रा के ठीक एक दिन पूर्व किया गया। इस बीच परिवार में कुछ सदस्‍यों की अस्‍वस्‍थता भी मन को अशांत करती रही ।

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किन्‍तु कहा जाता है कि सकारात्‍मक सोच ही सब कुछ ठीक करती है । सो नीरज जी ने जो कहा था निश्चिंत रहिये सब कुछ ठीक होगा । सो हो गया । लंदन की यात्रा और वहां का अवार्ड फंक्‍शन सकुशल संपन्‍न हुआ । फंक्‍शन को लेकर कभी विस्‍तार से बातें होंगीं । क्‍योंकि वह ग्रांड फंक्‍शन उतने विस्‍तार की संभावना लिये हुए है । बस ये कि आप सबकी शुभकामनाएं मिलती रहीं । कई गैरों की शुभकामनाएं मिलीं तो कई अपनों ने शुभकामनाएं देना या कुछ और कहना मुनासिब नहीं समझा । कुछ नये बने रिश्‍तों ने उनको ऐसा करने से रोक दिया । बहुत अजीब हो जाते हैं रिश्‍ते जब हम ये देख कर काम करने लगते हैं कि हमारे द्वारा ऐसा करने से हमारे नये बने रिश्‍तों पर कोई प्रभाव तो नहीं पड़ेगा । खैर रिश्‍तों की भी उम्र होती है और उनको भी रीतना और बीतना होता है । ''खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्‍छा............''।

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बचपन में इस टॉवर ब्रिज की एक तसवीर हमारे सरकारी घर में दीवार की दरारों को छिपाने के लिये लगाई गई थी । बड़ी सी तस्‍वीर जो पूरी दीवार को ढंके हुई थी । हम बच्‍चे इसी तस्‍वीर के सामने खड़े होकर अपने जन्‍मदिन पर चित्र खिंचवाते थे । तब हम बातें करते थे कि एक दिन सचमुच के लंदन ब्रिज ( तब हम इसका नाम लंदन ब्रिज ही समझते थे) पर भी खड़े होकर चित्र खिंचवाएंगे । जब नहीं पता था कि ये कब और कैसे सच होगा । लेकिन 2013 के जन्‍मदिन पर ये सच हो गया । और याद आ रहे थे बचपन के वे सारे जन्‍मदिन ।

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खैर तो बात ये कि दीपावली पर ब्‍लॉग के सन्‍नाटे को तोड़ने की इच्‍छा है । तरही का आयोजन तो इतनी जल्‍दी में नहीं हो सकता है किन्‍तु इच्‍छा है कि बरस बरस के दिन ब्‍लॉग पर सूनापन नहीं रहे । यहां पर ग़ज़लों के गीतों के दीपक जलें और जगमगाते रहें । कैसे किया जाए ये समझ में नहीं आ रहा है । एक तरीका तो मुक्‍तकों का है कि किसी मिसरे पर मुक्‍तक लिखे जाएं । एक तरीका ये कि कोई मिसरा न हो बस आप सबकी दीपावली पर लिखी कोई रचना हो । और जो कुछ न हुआ तो पिछले दीपावली मुशायरों में से ही कुछ लिया जाए । निर्णय आप सब को करना है । मैं तो बस ये देखना चाहता हूं कि इतने दिनों की चुप्‍पी ने इस ब्‍लॉग  परिवार पर प्रभाव तो नहीं डाल दिया है ।

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तो आप बताइये कि क्‍या करना है । क्‍योंकि करने वाले तो आप लोग ही हैं । और ब्‍लॉग भी आपका ही है । हां  पिछले दिनों एक गीत मन में  रह रह कर गूंजता रहा ।

ओ मेरे सनम,  ओ मेरे सनम,  दो जिस्‍म मगर,  इक जान हैं हम

                             पता नहीं क्‍यों, क्‍या इस बहर पर कुछ काम किया जा सकता है । मगर उसके लिये तो पहले ये जानना होगा कि इसकी बहर क्‍या है रुक्‍न क्‍या हैं । आप लोगों को पता होगा शायद। क्‍या पता क्‍या है । बड़ी हैरत की बात है । सुनते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय का तराना भी इससे कुछ कुछ मिलता जुलता है । क्‍या कहते हैं । मेरा दिमाग तो कुछ काम नहीं कर रहा  ।

तो ये देखिये और सोचिये

तो मेरे विचार में यही तय रहा दीपावली पर सब अपना अपना कम से कम एक मुक्‍तक भेजें, ग़ज़ल या गीत भेजना चाहें तो और अच्‍छा है ।

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सभी का आदेश है कि लंदन यात्रा की चित्रमय झांकी दिखाई जाये । तो आदेश के पालन में आज कुछ और चित्र पेश किये जा रहे हैं । कुछ लोगों ने टिप्‍पणी में कहा है कि 'ये आपका ब्‍लॉग है'तो मैं ये कहना चाहूंगा कि ये आप सब का ब्‍लॉग है मेरा नहीं है । मेरा इसमें केवल इतना है कि आप सब के आदेश पर मैं इसमें बीच बीच में कुछ लिख देता हूं । बाकी तो सब आपका ही है ।

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( हीथ्रो हवाई अड्डे पर तेजेन्‍द्र जी द्वारा आत्‍मीय स्‍वागत )

तो मेरे विचार में कुछ ऐसा करना चाहिये कि हम कम से कम एक एक मुक्‍तक तो दें ही सही । चूंकि इस बार हम भागते दौड़ते यहां पर आयोजन में एकत्र हो रहे हैं तो कम सक कम मुक्‍तक की ही बात की जाए । हां यदि कुछ लोग गीत या ग़ज़ल देना चाहें तो उनका तो स्‍वागत है ही ।

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( कैलाश बुधवार जी के घर सुश्री पद्मजा जी को प्रति भेंट )

अब प्रश्‍न उठता है कि क्‍या किसी मिसरे पर मुक्‍तक लिखा जाए । मेरे विचार में इस बार मिसरे से मुक्‍त रहा जाए । क्‍योंकि समय कम है । फिर भी यदि सब की इच्‍छा हो तो एक मिसरा दिया जा सकता है । जिसे मिसरे पर लिखना हो वो उस पर मुक्‍तक लिखे, ग़ज़ल  लिखे या गीत लिखे और जिसे स्‍वतंत्र रहना हो वो अपना ही मुक्‍तक लिखे ।

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( अपनी ड्रीम ब्‍लैक मर्सीडीज़ का आनंद)

लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि कम से कम बहर या मात्रिक विन्‍यास की बाध्‍यता तो हम रखें ही सही । अरे हां अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का तराना कुछ ऐसे है 'ये मेरा चमन, है मेरा चमन, मैं अपने चमन, का बुलबुल हूं'  । अंतिम रुक्‍न में सारी मात्राएं शुद्ध दीर्घ हो गईं हैं इस मिसरे में ।

ये मेरा चमन है मेरा चमन, मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ
सरशार-ए-निगाह-ए-नरगिस हूँ, पा-बस्ता-ए-गेसू-संबल हूँ

जो ताक-ए-हरम में रोशन है, वो शमा यहाँ भी जलती है
इस दश्त के गोशे-गोशे से, एक जू-ए-हयात उबलती है
ये दश्त-ए-जुनूँ दीवानों का, ये बज़्म-ए-वफा परवानों की
ये शहर-ए-तरब रूमानों का, ये खुल्द-ए-बरीं अरमानों की
फितरत ने सिखाई है हम को, उफ्ताद यहाँ परवाज़ यहाँ
गाये हैं वफा के गीत यहाँ, चेहरा है जुनूँ का साज़ यहाँ

 

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( किसी मॉल में )

तो मेरे विचार में हमको सोलह दीर्घ की ही बाध्‍यता रखनी चाहिये । अब ये दीर्घ कैसे आते हैं इस पर हम ये कर सकते हैं कि यदि हम सीधे सीधे अभी सोलह मात्राओं को चार रुक्‍नों में बांट  लें सुविधा के लिये तो हर रुक्‍न का तीसरा दीर्घ हम चाहें तो लघु लघु से आये या शुद्ध दीर्घ हो । मतलब 22112 भी हो सकता है और 2222 भी ।

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( काउंसलर जकिया जुबैरी जी ने शापिंग में खूब मदद की )

हालांकि ये भी बस इसलिये कि जो लोग किसी खास बहर पर ही लिखना चाहें उनके लिये । क्‍योंकि समय कम है इसलिये यदि आप दीपावली पर कोई भी मुक्‍तक भेजेंगे तो उसे भी शामिल किया जाएगा । बस शर्त ये है कि वो किसी न किसी बहर में हो और दूसरा ये कि वो 2 तारीख की रात तक मिल जाए ।

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( ये जवाहरलाल नेहरू जहां पढ़े थे वो स्‍कूल है )

अगर आप पूर्ण दीर्घ वाले विन्‍यास पर लिखना चाहते हैं तो बस ये करें कि 'ओ मेरे सनम'गीत की तरह हर मिसरे में  चार स्‍पष्‍ट टुकड़े अवश्‍य दिखाई दें । ओ मेरे सनम- ओ मेरे सनम- दो जिस्‍म मगर- इक जान हैं हम । इस प्रकार के चार खंड स्‍पष्‍ट हों । मतलब ये कि हर खंड स्‍वतंत्र हो ।

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( सिर के पीछे लंदन की आंख )

चूंकि इस ब्‍लॉग पर हर त्‍योहार मनाने की परंपरा रही है । बीच में व्‍यस्‍तता के कारण इस बार राखी, ईद, जैसे त्‍योहार नहीं मनाए जा सकते । मगर दीपावली ये शुरुआत हो जाए तो अच्‍छा है । उसके बाद हम विधिवत मिसरे पर कोई मुशायरा करेंगे ।

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( बिग बेन और ब्रिटिश संसद )

हम दीपावली के दिन इस उत्‍सव को पारंपरिक रूप से मनाएंगे जैसे कि इस ब्‍लॉग पर मनाते हैं । और उसके बाद अगले कार्यक्रमों की घोषणा भी करेंगे । चूंकि ये ब्‍लॉग एक सार्वजनिक चौपाल है जहां सब लोग एक साथ बैठते हैं चर्चा करते हैं इसलिये आप सब ही तय करेंगे कि आगे किस प्रकार से कार्यक्रम तय होंगे ।

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( रेल्‍वे स्‍टेशन पर )

दीपावली के आयोजन में जितने ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग अपना योगदान देंगे उससे हमें आगे काम करने के लिये ऊर्जा मिलेगी । चूंकि काफी समय हो गया है ठहरे हुए सो ऊर्जा की आवश्‍यकता है । और ये आवश्‍यकता ही आप सब से कुछ न कुछ अवश्‍य लिखवा लेगी ।

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( खरीददारी के क्षण )

तो ठीक है फिर आप सब अपना योगदान दीजिये । वो चाहे जिस भी रूप में हो मेरा मतलब है कि कविता, मुक्‍तक, गीत या ग़ज़ल । काव्‍य की किसी भी विधा में अपना योगदान दीजिये । और दीपावली आयोजन को विविध रंगी बनाइये । आपकी रचनाओं का इंतज़ार है ।

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( किसी स्‍टेशन पर यूं ही )

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( लेबर पार्टी के लिये चुनाव प्रचार )


दीपावली की मंगल कामनाएं ये दीपावली आप सब के लिये शुभ हो, मंगलमय हो, सुख, शांति और समृद्धि से छलकते ज्‍योतिपर्व की शुभकामनाएं ।

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मित्रों इस ब्‍लाग की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां सब कुछ आत्‍मीयता से ही होता है । क्‍योंकि इसे सब अपना ही मान कर चलते हैं । जैसे इस बार ही हुआ कि दीपावली के ठी तीन दिन पहले सोचा कि दीपावली का आयोजन तो होना ही चाहिये और देखिये हो भी गया । ये ही तो होता है एक परिवार का गुण । ये हमारा परिवार है । और इस दीपावली पर यही प्रार्थना है कि इस परिवार में स्‍नेह और अपनापन यूं ही बना रहे ।

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दीपावली की बहुत बहुत मंगल कामनाएं ।

आइये आज दीपाली का ये त्‍यौहार मनाते हैं काव्‍य की सतरंगी रौशनी के साथ। कविता की ये रोशनी समाज और देश में फैला हर अंधकार मिटाने में समर्थ है ।

deepawali

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deepawali (11)

अभिनव शुक्‍ला

अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.

ये है सच आज अंधेरों का बोल बाला है,
रोशनी पर लगा इलज़ाम भी निराला है,
पर अमावस में ही सजती हैं शहर की गलियां,
प्यासे सपनों में महकती हैं सुहानी कलियां,
कोई तुमसे कहे जीवन की रात काली है,
तुम दिया एक जलाकर कहो दिवाली है,
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.

खेल मिटटी का दिखाया है दुबारा इसनें,
चाक पर घूम के है रूप संवारा इसनें,
आग में तपता रहा सिर्फ ज़माने के लिए,
आया बाज़ार में फिर बिकने बिकाने के लिए,
रोशनी देगा तो एहसान तेरा मानेगा,
वरना मिटटी से इसे फिर कुम्हार छानेगा,

अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.
फिर अयोध्या किसी मन की नहीं सूनी होगी,
फिर चमक वक्त के चेहरे पे भी दूनी होगी,
फिर से सरयू भी झूम झूम गीत गाएगी,
फिर से मुस्कान सितारों की झिलमिलाएगी
स्वर्ण मृग सीता को लंका में नहीं भाएंगे,
मन में विश्वास अगर हो तो राम आएंगे,
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.

मन में विश्‍वास अगर हो तो राम आएंगे यही तो वो भावाना है जो हमें बरसों बरस से जीवन से संघर्ष करने की प्रेरणा देती है । बहुत सुंदर गीत ।

deepawali (16)
deepawali

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deepawali (11)

श्री अशोक 'अकेला'जी

लो इक बार फिर से आ गई दीवाली
पर न बदली यहाँ की कुरीति निराली
वही दिल में गुस्सा है लबों पे गाली
न कहीं सुकून न छाये चेहरे पे लाली
लो एक बार फिर से आ गई दीवाली....

सुंदर पंक्तियां बुराई को बदल देने की भावना लिये हुए और उस के साथ ही अंधकार को न मिटा पाने पर गुस्‍सा लिये । बहुत सुंदर ।

deepawali (16) 
deepawali

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deepawali (11)

श्री गिरीश पंकज जी  
ग़ज़ल

अंधकार आता है आए, उससे कब घबराता है
इक नन्हा-सा दीप सामने आ कर सबक सिखाता है

अंधकार की फितरत है अपने पंजे फैलाएगा
लेकिन अदना-सा दीपक उससे जाकर भिड जाता है

'बहुत अँधेरा, बहुत अँधेरा'यह रोना कब तक रोएँ?
यह ज़ालिम तो इक दीपक से अक्सर मुँह-की खाता है

अंधकार होता है कायर फिर भी इतराना देखो
दीपक जलते ही घमंड सब मिट्टी में मिल जाता है

किसम-किसम के यहाँ अँधेरे मिल जायेंगे बस्ती में
मन का दीप जले तो हर इक अंधकार मिट जाता है

अरे अँधेरे, मत इतरा तू मौत तेरी अब निश्चित है
हर इक तानाशाह मरा है यह इतिहास बताता है

धनवाले अपने ही घर को रौशन करते रहते है
दिलवाला इंसान अँधेरे दर पर दीप जलाता है

आखिर सच्ची दीवाली का पंकज ने देखा सपना
हर दरवाजा हँसता है और हर आँगन मुस्काता है

गीत
हर आँगन में दीप जले

हर आँगन में दीप जले

हर दिन हो सबकी दीवाली,
दीप ध्यान यह रखना तुम
सिर्फ अमीरों के अंगने में,
जा कर के ना जलना तुम।
खुशी एक बेटी है प्यारी
हर घर फूले और फले।।

सबके हिस्से में हो उत्सव,
नहीं रहे कोई निर्धन।
धन की खातिर कोई न तरसे,
धनतेरस में हो 'खन-खन'.
वो सपना साकार रहे जो,
सपना बारम्बार पले।।

कुछ लोगों की दीवाली है,
बाकी का दीवाला क्यों ?
समझ न आये कुछ लोगों का,
अंतर्मन है काला क्यों ?
कसम हमें इस बार अन्धेरा,
झोंपड़ियों को नहीं छले।।

हर आँगन में दीप जले।

सबके हिस्‍से में हो उत्‍सव यही वो भावना है जिसे हम सर्वे भवन्‍तु सुखिन: कहते हैं उस का बहुत ही सुंदर तरीके से व्‍यक्‍त किया है । बहुत खूब ।

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deepawali

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deepawali (11)

आदरणीया लावण्‍या शाह जी 


दीपावली २०१३ शुभ हो !
सभी को परिवार जन सहित अनंत शुभकामनाएं !

'सुख सुहाग की दीव्य-ज्योति से, घर-आंगन मुस्काये,

ज्योति चरण धर कर दीवाली, घर-आंगन नित आये ' 

दो पंक्तियों में गागर में सागर भरने की कहावत को चरितार्थ किया गया है । और ज्‍योति के चरण धरती दीपावली की तो बात ही क्‍या है । आनंद ।
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deepawali

Mansoor ali Hashmi

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आदरणीय मंसूर अली हाश्मी जी ,

दीपावली की बधाई और शुभ कामनाएं  आपको और सभी साथियों को।

कुछ दुआइयां जुमले पेश है, आपकी महफ़िल में जगह मिल सके तो।

ये खेत, चमन, ये नील गगन, इठलाती हवा, सूरज की किरण, 
हर दिन हो यहाँ सावन-सावन , हर रात दिवाली सी रौशन
रंगोली सजे हर घर आँगन, सेहत में रहे सब तन और मन
ख़ुश हाल रहे तू मेरे वतन, ऐ मेरे वतन, ऐ मेरे वतन.

सचमुच यही तो कामना है हम सबकी कि हमारे देश में हर तरफ खुश हाली हो हर तरफ भाई चारा हो और हर आंगन में प्रेम की रांगोली हो । परमानंद ।

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deepawali (11)

श्री नवीन सी चतुर्वेदी जी
विगत दिनों जीवन के आनन्द में सराबोर समय जी कर लौटे पंकज भाई आप का स्वागत है। किसी शोधार्थी के सत्कर्मों का सम्मान यदि उस के जीवन काल में ही हो जाये तो उस की साधना अन्य उद्यमियों के लिये प्रेरणा का काम करती है।

गीत

हर साल मेरी रूह को,
कर डालती है बावली।
दीपावली दीपावली दीपावली॥

इक वजह है ये मुस्कुराने की।
फलक से,
आँख उट्ठा कर मिलाने की।
घरों को,
रोशनी से जगमगाने की।
गले मिलने मिलाने की।
वो हो मोहन,
कि मेथ्यू,
या कि हो ग़ुरबत अली।
दीपावली दीपावली दीपावली॥

हृदय-मिरदंग बजती है,
तिनक धिन धिन।
छनकती है ख़ुशी-पायल,
छनक छन छन।
गली में फूटते हैं बम-पटाखे भी,
धना धन धन।
अजब सैलाब उमड़ता है घरों से,
हो मगन, बन ठन।
लगे है स्वर्ग के जैसी,
शहर की हर गली।
दीपावली दीपावली दीपावली

तनक धिन धिन की थाप पर हर तरफ मंगल गीत गाये जा रहे हों तो ही खुशियां पायल पहनती हैं । अहा ।

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sameer lal

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श्री समीर लाल ’समीर’ जी

यही बधाई और यही दीवाली के ब्लॉग का मुक्तक, एक पंथ दो काज:

जलाना एक दीपक तुम, अँधेरे गर नजर आयें
उजाला ही उजाला हो, जो सब इतना सा कर आयें
दीवाली का सही मतलब तो इसी में है मेरे हमदम
खुशियाँ हर तरफ बिखरें, खुशियाँ सबके घर आयें.

दीपावली के पर्व पर आप और आपके परिवार के लिए मंगलकामनाएँ..

-समीर लाल ’समीर’, साधना लाल एवं समस्त लाल परिवार

सच में एक ही तो दीपक जरूरी होता है अंधकार हटाने के लिये । और वो एक ही दीपक पूरी दीपावली का सच्‍चा प्रहरी होता है । फिर भले वो दीप भारत में हो चाहे कैनेडा में । आनंद ।

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Saurabh

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श्री सौरभ पाण्‍डेय जी

नवगीत

सामने द्वार के तुम रंगोली भरो  
मैं उजाले भरूँ दीप ओड़े हुए.. .

क्या हुआ शाम से आज बिजली नहीं
दोपहर से लगे टैप बिसुखा इधर 
सूख बरतन रहे हैं न मांजे हुए
जान खाती दिवाली अलग से, मगर --
पर्व तो पर्व है आज कुछ हो अलग
आँज लें नैन सपने सिकोड़े हुए... .

क्या हुआ हम दुकानों के काबिल नहीं
भींच कर मुट्ठियाँ क्या मिलेगा मगर !
मैं कहाँ कह रहा-- हम बहकने लगें ?
पर कभी तो जियें ज़िन्दग़ी है अगर.. !
नेह रौशन करे  ’मावसी साँझ को,
हम  भरोसों  भरें  भाव जोड़े  हुए.. .

सामने द्वार के तुम रंगोली भरो मैं उजाले भरूं दीप ओड़े हुए । क्‍या कामना है । यही तो जीवन है । दो लोगों के हाथ में हाथ हों तो दीपावली तो होती है । सुंदर

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श्री तिलक राज कपूर जी

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मुस्कुराहट मिली ज़माने से
द्वार पर दीप दो सजाने से।

छुप गया चॉंद भी अमावस में
दीपमाला तुम्हारे आने से ।

दीप आकाश से मिला देखो
सिर्फ़ कंदील भर लगाने से।

चॉंद तारों का रक्स  उतरा है
फुलझड़ी साथ मिल जलाने से।

खिल रहे हैं अनार यूँ , जैसे
मनचले कुछ चले दिवाने से।

देख आकाश वल्लरी चमकी
एक राकेट भर चलाने से।

चल रहे हैं ज़मीन पर चक्कर
और तुम खुश हुए चलाने से।

शोर कम कीजिये पटाखों का
ये चलन हो गये पुराने से।

दीप उत्सव है आज रोको मत
मुस्कुराहट अधर पे आने से।

मुक्तक

हमने हर इक रात काटी गीत गा कर
जिन्दगी की पीर पी है मुस्कुरा कर
आईये उत्सव से  दीपों का मनायें
तिमिर में इक दीप आशा का जला कर।

दीप उत्‍सव है ओर रोको मत मुस्‍कुराहट अधर पे आने से । सच में आज तो रोकना ही नहीं चाहिये भई आज तो मुस्‍कुराहट के दीपक जलाने का दिन है । सुंदर ।

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डॉ शौर्य मलिक

सबसे पहले तो आपको इंदु शर्मा कथा सम्मान के लिए ढेरो शुभकामनाये , मैं आपको अपना परिचय देता हूँ , मैं डॉ शौर्य मलिक,जिला शामली ,उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ, लेखन कि शुरुआत अब से २ साल पहले की थी , बस जो दिल में आया वो लिख लेता था, इस वर्ष श्री नीरज गोस्वामी जी के सम्पर्क में आने के पश्चात मैंने उनसे गजल के बारे में काफी कुछ सिखा है, लेकिन अभी मेरे शेरो में भाव कि काफी कमी है, समय के आभाव के कारण बस ये एक छोटा सा मुक्तक ही लिख पाया हूँ, वो मैं आपको भेज रहा हूँ ,  और आपको मेरे और मेरे परिवार कि और से दीपावली कि ढेरो शुभकामनाये ,,,,,,,,,,,

भूले बिसरे यार बुला लूँ
यादों के मैं दीप जला लूँ
नफरत गम सब बैर मिटा कर
भेद दिलो के आज भुला लूँ 

दीपावली की एक सच्‍ची प्रार्थना और वे कुछ काम जो यदि हम हर दीवाली पर कर लें तो हमारा पूरा साल मंगलमय हो जाये । खूब ।

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पारुल सिंह जी

सुबीर संवाद सेवा ब्लॉग पर नयी पोस्ट के संदर्भ में एक रचना आपके विचारार्थ  भेज रही हूँ
दिल्ली(एन सी आर) से मै एक हाउसवाइफ हूँ दो प्यारी सी बेटियां हैं. पति एक कंपनी में सीनियर मैनेजर हैं खाली वक़्त में किताबे पढ़ती हूँ और काम के वक़्त संगीत सुनना पसंद है 


दीवाली के दीपक मेरी आँखों में हैं झिलमिलाये
अब मेरे ही  रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
पुलकित साँसे, कम्पित अधर हुए
जब देखा तुम्हे आते हुए
द्धार खड़े तुम ढूँढ रहे हो
ज्यूँ मोती  मेरी आँखों में
मैं भ्रमित सी पूछ रही
देर हुई क्यूँ आने में
अब मेरे ही  रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
कौनसा अम्बर है वो जिसकी
धनको के रंग ही ऐसे हैं
रंग देते हैं सब नीरसता 
वो जादू टोने जैसे हैं
उन रँगो से चौक पूर दूँ
मन को, 'समर्पित देहरी'करूँ
अब मेरे ही  रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
सज जाएँ बंदनवार में
रूह के रेशे रूह के मोती
रखना स्मरण तुम ये प्रिये
स्त्री कोई वस्तु नहीं होती
प्यार में पूरापन खोती है
वो स्वाभिमान नहीं खोती
अब  मेरे ही रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
दीवाली के दीपक मेरी आँखों में हैं झिलमिलाये
अब  मेरे ही रहने को साँझ ढले तुम लौट आये

बहुत सुंदर गीत है । स्‍त्री के स्‍वाभिमान की सुंदरता से भरा गीत । और उस स्‍वाभिमान में प्रणय के तारे भी सफाई से गूंथे गये हैं । बहुत ही सुंदर गीत ।

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श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह

कविता : लौट आओ राम

रावण ऐसे नहीं मरता
रावण को मारने के लिए जरूरी है
कि उसकी नाभि का अमृत सोखकर
उसे स्वाभाविक मौत मरने के लिए छोड़ दिया जाय

रावण की जान ले लेने पर
वो अमर हो जाता है
और राम को कभी लौटने नहीं देता लंका से
अहिल्या को पवित्र करने वाले
गिद्ध का अंतिम संस्कार करने वाले
शबरी के जूठे बेर खाने वाले
बंदरों से सहायता माँगने वाले
सौतेली माँ की खुशी के लिए चौदह वर्ष वन में रहने वाले
शरणागत को राज्य देने वाले
पत्नी की रक्षा के लिए रावण का वध करने वाले, राम....
वो राम कहाँ वापस लौट सके लंका से?
लंका से वापस लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम अयोध्या नरेश
जो राजा तो बहुत अच्छे थे
मगर राम नहीं थे
राजा तो रावण भी बुरा नहीं था
तब से लगातार पैदा हो रहे हैं मर्यादा पुरुषोत्तम
लेकिन धरती को हमेशा जरूरत रही है राम की
जो स्त्रियों और मजलूमों का ही नहीं
पशु पक्षियों का भी दुख दर्द समझ सकें
दुनिया का सबसे पुराना और सबसे अच्छा धर्म मर रहा है
इसका गला घोंट रहे हैं सैकड़ों मर्यादा पुरुषोत्तम
हर दीपावली की रात
मैं सुनता हूँ धरती की सिसकियाँ
और एक मरते हुए धर्म की कराहें
लौट आओ राम..... लौट आओ राम.....

सच कहा कि राम के आने पर ही दीपावली मनतीहै क्‍योंकि राम उजाले का प्रतीक हैं और अंधेरे से लड़ने के लिये एक उजाला आना ही  होता है । राम तुम आ जाओ । सुंदर अति सुंद र।
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आदरणीय देवी नागरानी जी

दिवाली है आई.
बधाई, बधाई, बधाई बधाई
मुबारक सभी को दिवाली है आई.

दशहरा गया अब दिवाली जो आई
अंधेरों से रौशन उजाले है लाई

हैं शुभ शुभ सुन्हरा ये त्यौहार लोगो
जलाकर दिये सबने किस्मत जगाई

जो श्रधा से पूजन करें लक्ष्मी जी का
वहीं धन की बरसात ले के वो आई

सदा माँ सरस्वत कृपा धारणी बन
दे वर ज्ञान का हर किसी को है भाई

खिलोओ और खाओ दिवाली मनाओ
बने अच्छे पकवान और रस मलाई

करे विघ्न का नाश गणनाथ देवी
हरे कष्ट सारे करे है भलाई.

हर किसी के लिये मंगल की कविता । हर पंक्ति में दुआओं की कविता । हर किसी के लिये कुछ न कुछ मांगने के लिये । बहुत ही सुंदर ।  
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मन बहुत पुलकित है इतने छोटे से नोटिस पर आप सबने अपनी अपनी रचनाएं भेजीं और दीपावली के पर्व को आज उजास से भर दिया । आप सबके जीवन में दीपावली का ये पर्व प्रकाश और उल्‍लास लाये यही मंगल कामना है ।

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दीपावली का त्‍योहार भी बीत गया और अब आगे कुछ नया करने के लिये समय खड़ा है । आज केवल लंदन के ये वीडियो आप सब के लिये ।

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इस बार हम बहुत बहुत जल्‍दी में दीपावली के त्‍योहार का आयोजन कर पाये । हालांकि इससे एक बात भी पता चली कि वो कहावत हमेशा सही नहीं होती कि जल्‍दी का काम शैतान का काम होता है । और इस बार जिस प्रकार से लोगों ने तुरंत तुरंत रचनाएं दीं तथा आयोजन में भागीदारी की उससे मन बहुत गार्डन गार्डन (बाग बाग) हो गया है । तो जल्‍द ही कुछ और आयोजन होने की भूमिका भी उससे जुड़ गई है । और हां शिवना का वार्षिक आयोजन जो इस बार लंदन की यात्रा की व्‍यस्‍तता के कारण नहीं हो पाया अब वो जनवरी में होगा । तारीख जल्‍द ही घोषित कर दी जाएगी ।

कई लोगों ने लंदन के सम्‍मान समारोह की वीडियो देखने की मांग की है । तो आप सब की मांग पर प्रस्‍तुत है ये वीडियो । इसे पूरा देखने के लिये आपको लगभग दो घंटे का समय चाहिये होगा । चूंकि एक ही लेंथ में पूरा वीडियो अपलोड किया गया है । तो आप इसे देखिये और बताइये कि आपको कैसा लगा ।

तो आज की ये पोस्‍ट केवल आपके साथ लंदन सम्‍मान समारोह की वीडियो शेयर करने के लिये ही है । समय निकाल कर देखियेगा । मैं जो कुछ आज हूं उस होने में आप सबका बहुत योगदान है । तो ये आप सब को समर्पित ।

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तरही मुशायरे को लेकर कुछ मिश्रित सी प्रतिक्रिया आई है, काफी लोगों ने अपनी ग़ज़लें भेज भी दी हैं ।

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इस बार के मुशायरे को लेकर मिश्रित सी प्रतिक्रिया है । मिसरे को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि कठिन है, तो कुछ लोगों का कहना है कि विषय में बांधने के कारण कुछ कठिनाई हुई है । मगर ऐसे भी लोग हैं जिनकी ग़ज़लें मिसरा घोषित होने के सप्‍ताह भर के अंदर ही प्राप्‍त हो गईं हैं । और बहुत सुंदर ग़ज़लें प्राप्‍त हुई हैं । इस बार कुछ नये लोगों की भी ग़जल़ें मिली हैं । आइये आज के पाठ में बहरे मुजारे के बारे में कुछ और विस्‍तार से जानने का प्रयास करते हैं ।

बहरे मुज़ारे ( मुरक्‍कब बहर )

सालिम बहर

इस बार का मिसरा जैसा कि पिछली बार बताया था ये बहरे मुजारे मुसमन अखरब पर आधारित मिसरा है । ये बहर मुरक्‍कब बहर है अर्थात दो प्रकार के रुक्‍नों से मिल कर ये बहर बनी है । मुफाईलुन और फाएलातुन रुक्‍नों से मिलकर मुजारे का सालिम रुक्‍न बनता है । अर्थात बहरे हजज और बहरे रमल के स्‍थाई रुक्‍नों से मिलकर बहरे मुजारे को बनाया गया है । मुजारे की सालिम बहर में मुफाईलुन और फाएलातुन एक के बाद एक दो बार आते हैं । मुफाईलुन-फाएलातुन-मुफाईलुन-फाएलातुन ( बहरे मुज़ारे मुसमन सालिम के रूप में उपयोग में नहीं लाई जाती है, इसकी मुज़ाहिफ़ बहरें ही उपयोग में लाई जाती हैं । )

मुज़ाहिफ़ बहरें

जैसा कि आपको पता होगा कि सालिम बहर के स्‍थाई रुक्‍नों में जब परिवर्तन किया जाता है तो उससे मुज़ाहिफ़  बहरें बनती हैं । परिवर्तन को जि़हाफ़ कहते हैं और जिहाफ़ से बनी बहरें मुज़ाहिफ़ बहरें कहलाती हैं ।

1222-2122-1222-2122  ये बहरे मुजारे का स्‍थाई रुक्‍न विन्‍यास है जिसमें 1222 के बाद 2122 फिर 1222 और अंत में 2122 आता है । बहरे मुज़ारे के सालिम रुक्‍न मुफाईलुन और फाएलातुन हैं । अर्थात यहां पर दो प्रकार के परिवर्तन की गुंजाइश है । पहला तो 1222 में मात्राओं के परिवर्तन के कारण बनने वाले मुज़ाहिफ़ रुक्‍न और दूसरा 2122 में मात्रिक परिवर्तन के कारण बनने वाले मुज़ाहिफ़ रुक्‍न ।

हमने ग़ज़ल का सफ़र पर बात की थी, जुजों के बारे में । आइये यहां पर भी कुछ जुजों के बारे में बात करते हैं । रुक्‍न के टुकड़ों को  जुज़ कहते हैं । या ये भी कह सकते हैं कि जिन छोटे छोटे खंडों से मिलकर रुक्‍न बनते हैं उनको जुज़ कहते हैं । वैसे तो इनके तीन प्रकार सबब, वतद और फासला होते हैं लेकिन मुज़ारे के संदर्भ में जो जानने योग्‍य हैं वो हैं दो 1 सबबऔर 2 वतद

सबब कहा जाता है दो मात्रिक व्‍यवस्‍था को और इसके भी दो प्रकार होते हैं ।

सबब-ए-ख़फ़ीफ़-जब दो मात्रिक व्‍यवस्‍था में पहली मात्रा उजागर हो तथा दूसरी उसमें संयुक्‍त हो रही हो । जैसे तुन, मफ, मुस्‍, ऊ, ई, ला आदि आदि । इसको 2 से दर्शाते हैं ।

सबब-ए-सक़ील-जब दो मात्रिक व्‍यवस्‍था में दोनों ही मात्राएं स्‍वतंत्र हों जैसे फए, एल, आदि आदि । इसको 11 से दर्शाते हैं ।

वतद कहा जाता है तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था को इसके भी दो प्रकार  हैं ।

वतद मजमुआ-जब दो मात्राएं उजागर हों और तीसरी संयुक्‍त हो रही हो । जैसे मुफा, एलुन आदि आदि । इसको 12 से दर्शाया जाता है ।

वतद मफ़रूफ़-जब पहली मात्रा उजागर हो दूसरी उसमें संयुक्‍त हो रही हो तथा तीसरी स्‍वतंत्र हो । जैसे लातु, आदि आद‍ि ।  इसको 21 से दर्शाया जाता है ।

कुल मिलाकर    बात ये कि जुज़ इस प्रकार होते हैं सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2, सबब-ए-सक़ील 11, वतद मजमुआ 12, वतद मफ़रूफ़ 21

मुजारे के रुक्‍न दो प्रकार के हैं मुफाईलुन और फाएलातुन । आइये इन रुक्‍नों का जुज़ विन्‍यास देखते हैं ।

मुफाईलुन- मुफा+ई+लुन ( वतद मजमुआ+सबब-ए-ख़फ़ीफ़+सबब-ए-ख़फ़ीफ़)

फाएलातुन- फा+एला+तुन  ( सबब-ए-ख़फ़ीफ़+वतद मजमुआ+सबब-ए-ख़फ़ीफ़)

( नोट: कई जगहों पर फाए+ला+तुन के हिसाब से वज्‍़न लिखा  जाता है )

इन्‍हीं मात्राओं में परिवर्तन करने के फलस्‍वरूप रुक्‍नों का रूप बदलता है और उसके कारण नई ध्‍वनियां उत्‍पन्‍न होती हैं । मुजारे में मुख्‍य रूप से चार प्रकार से मात्राओं का परिवर्तन किया जाता है ( जि़हाफ़) जिसके कारण मुजारे की मुज़ाहिफ बहरों में चार प्रकार के मुज़ाहिफ़ रुक्‍न मिलते हैं । 1 अख़रब 2 मकफूफ 3 महजूफ़ 4 मक़सूर। ये चारों मुज़ाहिफ़ रुक्‍न चार प्रकार के परिवर्तनों (जिहाफ़)  से बनते हैं जिनके नाम क्रमश: 1ख़रब  2 कफ्फ़ 3 हज़फ़ 4 क़स्रहैं । आइये इनके बारे में जानते हैं कि ये क्‍या होते हैं । जिस प्रकार जुज तीन प्रकार के होते हैं उसी प्रकार जिहाफ़ भी तीन प्रकार के होते हैं 1ख़ास, 2 आम, 3 मिश्र । ख़ास जिहाफ़ किसी ख़ास रुक्‍न में होते हैं । आम जिहाफ़ एक से अधिक रुक्‍नों में हो सकते हैं और मिश्र जिहाफ़ का मतलब जब एक ही रुक्‍न में एक से अधिक तरीके से मात्राओं में परिवर्तन किया जाए ।

कफ्फ़ :यह एक 'आम जिहाफ़'है । सात मात्राओं वाले रुक्‍न में यदि अंतिम जुज सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है तो उसकी अंतिम संयुक्‍त मात्रा को विलोपित कर देना । जैसे मुफा+ई+लुन के 'लुन'में से 'न'विलोपित कर दिया तो बचा 'लु'और रुक्‍न बना मुफाईलु, इस मुजाहिफ़ रुक्‍न को चूंकि कफ्फ परिवर्तन से बनाया गया है तो इसका नाम होगा 'मकफूफ़'।

हज़फ़:यह एक 'आम जिहाफ़'है । किसी भी रुक्‍न के अंत में आ रहे सबब-ए-ख़फ़ीफ़ को यदि पूरी तरह से विलोपित कर दिया जाए तो उसको हज़फ़ कहा जाता है । जैसे मुफा+ई+लुन और फा+एला+तुन  में से अंत का पूरा  सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 'लुन''तुन'विलोपित कर दिया जाए तो बचेंगे क्रमश: मुफा+ई (फऊलुन) तथा फा+एला ( फाएलुन )  । ये मुज़ाहिफ़ रुक्‍न महजूफ कहलाएंगे ।

ख़रब:   यह एक 'मिश्र जिहाफ़'है । मुफा+ई+लुन  में से यदि पहली और अंतिम मात्रा को हटा दिया जाए तो रुक्‍न कुछ ऐसा बचेगा फा+ई+लु ( मफऊलु ) इसे ख़रब कहते हैं । क्‍योंकि दो स्‍थानों से मात्राएं दो जिहाफ़ खिरम ( मुफा में से 'मु'को विलोपित कर देना ) और कफ्फ़ ( लुन में से 'न'को विलोपित कर देना )  का उपयोग कर हटाई गई हैं । इसलिये यह एक मिश्र जिहाफ़ है जो दो प्रकार के जिहाफ़ से मिलकर बना है । इसके कारण बनने वाले मुज़ाहिफ़ रुक्‍न को अख़रब रुक्‍न कहा जाता है ।

क़स्र:यह एक 'आम जिहाफ़'है । फा+एला+तुन  में से यदि अंत की मात्रा को हटा दिया जाए तो बचेगा फा+एला+तु । इसमें भी अंतिम मात्रा की ध्‍वनि को सायलेंट कर देना फाएलान करके ।  फाएलान में अंत का न अक्‍सर सायलेंट होता है। मकसूर रुक्‍न अधिकांशत: बहर का अंतिम रुक्‍न होता है।  वैसे क़स्र और कफ्फ़ बहुत मिलते जुलते परिवर्तन हैं । इसीलिये कई बहरों के साथ लिखा होता है 'मकफूफ़  या मक़सूर'।

तो इस प्रकार से बहरे मुजारे में पाई जाने वाली मुज़ाहिफ ( रुक्‍नों में मात्राओं के परिवर्तन से बनी बहरें) बहरों में मुख्‍य निम्‍न होती हैं ।

1 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब

2 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब महजूफ

3 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मकफूफ महजूफ

4 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मकफूफ मक़सूर

5 बहरे मुजारे मुसमन मकफूफ मक़सूर

6 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मकफूफ

7 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब महजूफ

8 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मक़सूर

9 बहरे मुजारे मुरब्‍बा अख़रब

और मुज़ारे बहर की स्‍थाई ध्‍वनि

10 बहरे मुजारे मुसमन सालिम

इनमें से हमने ठीक पहली ही मुज़ाहिफ़ बहर पर इस बार का मुशायरा घोषित किया है । बहरे मुजारे मुसमन अखरब पर ।

तो इतनी जानकारी से यदि आपके मन में तरही मुशायरे के लिये ग़ज़ल भेजने की इच्‍छा जाग गई हो तो जल्‍दी कीजिये तुरंत अपनी ग़ज़ल भेज दीजिये । क्‍योंकि 15 फरवरी से मुशायरा शुरू हो जाएगा ।

काव्यांजलि संध्‍या तथा पुस्‍तक लोकार्पण समारोह

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JANARDAN SAMMAN SAMMAN NEWS1देश में साहित्यिक पुस्तकों की अग्रणी प्रकाशन संस्था शिवना प्रकाशन Shivna Prakashanद्वारा साठोत्तरी हिंदी कविता के यशस्वी कवि पंडित जनार्दन शर्मा की पुण्यतिथि पर हर वर्ष होने वाली पुण्य स्मरण संध्या में वरिष्ठ पत्रकार स्व. अम्बादत्त भारतीय, वरिष्ठ साहित्यकार स्व. नारायण कासट, कवि स्व. कृष्ण हरि पचौरी, सुकवि स्व. रमेश हठीला, गीतकार स्व. मोहन राय तथा वरिष्ठ शायर स्व. कैलाश गुरूस्वामी को काव्यांजलि प्रदान की जाएगी। इस काव्यांजलि समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष तथा आइसैक्ट यूनिवर्सिटी Aisect universityAisect Universityके चांसलर, कहानीकार श्री संतोष चौबे उपस्थित रहेंगे। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता वरिष्‍ठ कवि एवं शायर श्री नीरज गोस्‍वामी करेंगे जबकि विशिष्‍ट अतिथि के स्‍प में वरिष्‍ठ कहानीकार डाॅ रेखा कस्‍तवार Rekha Kastwarतथा वरिष्‍ठ कवि श्री सौरभ पाण्‍डेय Saurabh Pandeyउपस्थित रहेंगे । शिवना प्रकाशन द्वारा इस कार्यक्रम में तीन सम्मान प्रदान किये जाएंगे, पैंतीसवे पंडित जनार्दन सम्मान देश के लब्ध प्रतिष्ठित कवि तथा पत्रकार श्री महेंद्र गगन Mahendra Gaganको सम्‍मानित किया जायेगा। श्री गगन भोपाल से प्रकाशित पहले पहल समाचार पत्र के प्रधान सम्पादक भी हैं। वहीं इस वर्ष से प्रदेश भर में सीहोर पत्रकारिता की पहचान रहे स्व. बाबा अम्बादत्त भारतीय की स्मृति में भी एक सम्मान शिवना प्रकाशन द्वारा स्थापित किया जा रहा है। प्रथम बाबा भारतीय सम्मान से प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुदीप शुक्ला Sudeep Shuklaको सम्‍मानित किया जाएगा। श्री शुक्ला वर्तमान में दैनिक भास्कर भोपाल में रीजनल हैड के रूप में कार्यरत हैं। गीतकार स्व. रमेश हठीला की स्मृति में दिये जाने वाले सम्मान से वरिष्ठ कवि तथा शायर श्री तिलकराज कपूर Tilak Raj Kapoorको सम्‍मानित किया जायेगा। श्री तिलकराज कपूर वर्तमान में जल संसाधन विभाग भोपाल में एडीशनल सेकेट्री के रूप में पदस्थ हैं।
कार्यक्रम में शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डॉ सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingraके साक्षात्‍कार संग्रह 'वैश्विक रचनाकार कुछ मूलभूत जिज्ञासाएं'तथा श्री नीरज गोस्‍वामी Neeraj Goswamyके ग़ज़ल संग्रह 'डाली मोगरे की'का लोकार्पण किया जाएगा ।

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कार्यक्रम 19 जनवरी रविवार की शाम ब्‍ल्‍यू बर्ड स्‍कूल सीहोर के सभागर में आयोजित किया जाएगा

शिवना प्रकाशन के आयोजन में सुदीप शुक्ला, महेंद्र गगन और तिलकराज कपूर सम्मानित हुए, ‘डाली मोगरे की’ (ग़ज़ल संग्रह : नीरज गोस्वामी), ‘मैं भी तो हूँ’ (ग़ज़ल संग्रह: नुसरत मेहदी), ‘वैश्विक रचनाकार कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ (साक्षात्‍कार संग्रह : सुधा ओम ढींगरा) का विमोचन

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छोटे शहरों में उदासी नहीं उत्साह दिखाई देता है- संतोष चौबे

सीहोर । शिवना प्रकाशन द्वारा सुकवि जनार्दन शर्मा, पत्रकार द्वय स्व. ऋषभ गाँधी तथा स्व. अम्बादत्त भारतीय, साहित्यकार स्व. नारायण कासट, कवि स्व. कृष्ण हरि पचौरी, कवि स्व. रमेश हठीला, गीतकार स्व. मोहन राय तथा शायर स्व. कैलाश गुरूस्वामी की स्मृति में आयोजित पुण्य स्मरण संध्या में पैंतीसवा जनार्दन शर्मा सम्मान प्रतिष्ठित कवि श्री महेंद्र गगन को,  बाबा भारतीय सम्मान वरिष्ठ पत्रकार श्री सुदीप शुक्ला को  तथा रमेश हठीला सम्मान शायर श्री तिलकराज कपूर को प्रदान किया गया।

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स्थानीय ब्ल्यू बर्ड स्कूल के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में वनमाली सृजन पीठ के अध्‍यक्ष कहानीकार श्री संतोष चौबे तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में कहानीकार रेखा कस्तवार, साहित्‍य अकादमी मप्र से पधारीं नुसरत मेहदी और इलाहाबाद के कवि सौरभ पाण्डेय उपस्थित थे, अध्यक्षता जयपुर के सुप्रसिद्ध शायर श्री नीरज गोस्वामी ने की। कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर साहित्यकारों के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की । आयोजन समिति संयोजक बसंत दासवानी, प्रकाश व्यास काका, प्रमोद जोशी गुंजन, ओमदीप, रामनारायण ताम्रकार,  रमेश गोहिया, हरीश अग्रवाल, डा. साधुराम शर्मा,राममूति शर्मा तथा योगेश राठी, धर्मेन्द्र पाटीदार ने किया। ‘बाबा भारतीय सम्मान’ से सम्मानित पत्रकार श्री सुदीप शुक्ला का परिचय पंकज सुबीर ने,  ‘जनार्दन शर्मा सम्मान’ से सम्मानित कवि श्री महेंद्र गगन का परिचय सुप्रसिद्ध कहानीकार श्रीमती रेखा कस्तवार ने तथा ‘रमेश हठीला सम्मान’ से सम्मानित कवि श्री तिलकराज कपूर का परिचय शायर श्री सौरभ पाण्डेय ने दिया। तत्पश्चात तीनों सम्मानित रचनाकारों का सम्मान अतिथियों द्वारा किया गया ।

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इस अवसर पर शिवना प्रकाशन की पुस्तकों ‘डाली मोगरे की’ (ग़ज़ल संग्रह : नीरज गोस्वामी),  ‘मैं भी तो हूँ’ (ग़ज़ल संग्रह: नुसरत मेहदी),  ‘वैश्विक रचनाकार कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ (साक्षात्‍कार संग्रह : सुधा ओम ढींगरा) का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया ।

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अतिथियों ने कैनेडा से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘हिन्दी चेतना’ के नव वर्ष अंक और दिल्ली से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘दूसरी परम्परा’ का भी लोकार्पण इस अवसर पर किया । मुख्य अतिथि श्री संतोष चौबे ने अपने उदबोधन में  कहा कि इस प्रकार के आयोजन के दूसरे उदाहरण बहुत मुश्किल से मिलेंगे जहां पर शहर इस प्रकार से अपने साहित्यकारों को याद कर रहा है । उन्होंने इस बात को लेकर सराहना की कि पैंतीस सालों से एक आयोजन को अनवरत किया जा रहा है । उन्होंने कहा कि छोटे शहरों में साहित्य का माहौल देखने का मिल रहा है मैं शुरु से कहता रहा हूं कि देश के बड़े साहित्यकारों को छोटे शहरों से संवाद बनाए रखना जरुरी है क्योंकि जो प्रतिभा छोटे शहरों में मिलती है उसमें उदासी नहीं उत्साह दिखाई देता है।

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कार्यक्रम के अगले चरण में सम्‍मानित कवियों श्री महेंद्र गगन, श्री तिलकराज कपूर के साथ अतिथि कवियों श्री नीरज गोस्‍वामी, श्री सौरभ पाण्‍डेय तथा नुसरत मेहदी ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन कहानीकार पंकज सुबीर ने किया । अंत में आभार व्यक्त करते हुए पत्रकार शैलेश तिवारी ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में के बुद्धिजीवी, कवि, पत्रकार, साहित्यकार तथा श्रोता उपस्थित थे ।
समाचार संकलन : चंद्रकांत दासवानी

एक सूचना के साथ कडि़यों को फिर से जोड़ने का प्रयास- आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी को इस वर्ष का सुकवि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान प्रदान किया जाएगा ।

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मित्रों जीवन का बड़ा ही अजीब सा खेला है । शुरू होता है और समाप्‍त होता है । हम बहुत कुछ ऐसा करते हैं जो आखिर में समाप्‍त होता है । और इन सबके पीछे बहुत कुछ होता है । जैसे कि ये ही कि सात साल पहले ऐसे ही किसी दिनों में ब्‍लॉगिंग की शुरूआत की । इस ब्‍लॉग की । सुबीर संवाद सेवा। जो एक मंच बन गया । बीच में कई सारी उपलब्धियां मिलीं । बहुत कुछ हुआ । एक पूरा परिवार बन गया । इस परिवार में कई लोग मिलते गए जुड़ते गए। और सफर चलता रहा । फिर जाने क्‍या हुआ कि साल डेढ़ साल पहले सफर पर अचानक विराम लग गया । लेकिन ये जरूर हुआ कि समय के साथ ब्‍लॉगिंग परिवार के जो लोग विरचुअल थे उन सबसे मिलना हो गया । लगभग सभी से । और मिल कर लगा ही नहीं कि पहली बार ही मिलना हो रहा है । इतनी बातें हो चुकी थीं कि लगना था ही नहीं ।

लेकिन हां ये बात ज़रूर है कि सिलसिला रुक जाने से मन में पीड़ा भर गई । हर बार सोचा कि सिलसिला शुरू किया जाए मगर बस । इस बीच व्‍यस्‍तताओं ने पैर पकड़ रखे । हालांकि व्‍यस्‍तता का तो बहाना होता है बात तो प्राथमिकता की होती है । दिन भर में दस पन्‍द्रह मिनट का समय तो निकाला जा सकता है । इस बीच ब्‍लॉगिंग के कई अल्‍टरनेट आए । फेसबुक, वाट्स अप आदि आदि । लेकिन जो आनंद यहां है वो कहीं नहीं । फेसबुक एक ऐसा मंच है जहां पर आपको केवल प्रशंसा करने और सुनने जाना है । और कुछ नहीं । वहां कोई किसी के बारे में लिखे तो अच्‍छा ही लिखे । यदि वो गलत है तो भी । एक प्रकार की अराजकता बसी है वहां ।

बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं। इसलिए कुछ आदत छूट सी गई है । मगर अब कोशिश करूंगा कि आदत बनी रहे । भले ही अंतराल हो लेकिन निरंतरता बनी रहे । यहां के तरही मुशायरे बंद होने के बाद कई लोगों ने नया ही नहीं  लिखा । और ऐसा कुछ लोगों ने स्‍वयं मुझसे कहा । यदि ऐसा है तो ये मेरा ही अपराध है । राकेश खंडेलवाल जी ने कई बार फोन करके मुझसे इस विषय में चिंता व्‍यक्‍त की। मगर फिर भी सन्‍नाटा बना रहा तो मैं ही उसका दोषी हूं ।

तो आज एक सूचना के साथ कडि़यों को फिर से जोड़ने का प्रयास कर रहा हूं । सूचना ये कि निर्णायक समिति ने वर्ष 2013 हेतु शिवना सम्‍मान का नाम तय कर लिया है । सुकव‍ि रमेश हठीला शिवना सम्‍मान पिछले वर्ष श्री तिलकराज कपूर जी को और उससे पहले श्री नीरज गोस्‍वामी जी को प्रदान किया जा चुका है ।  इस वर्ष भी सम्‍मान समारोह का आयोजन दिसम्‍बर अथवा जनवरी में किया जाना प्रस्‍तावित है । तो इस वर्ष निर्णायक समिति ने सुकवि रमेश हठीला शिवना सम्‍मान हेतु वरिष्‍ठ शायरा आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी का नाम तय किया है । शिवना प्रकाशन की ओर से उनको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं । इस्‍मत जी अभी तक गोवा की निवासी थीं लेकिन अब वे मध्‍यप्रदेश के ही सतना में आ गईं हैं । जल्‍द ही सम्‍मान की तिथि आदि घोषित की जाएगी ।

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सुकवि रमेश हठीला शिवना सम्‍मान

आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी

तो ये सूचना थी जिसकी भूमिका के लिए मैंने बहुत कुछ कहा । मगर हां अब ये जरूर कि कोशिश करूंगा यहां पर निरंतरता बनाए रखने की । परिवार जैसा एक समूह जो कि कुछ दूर दूर हो गया है उसे फिर से पास लाने की । जल्‍द ही अगली घोषणा भी की जाएगी । लेकिन अगली घोषणा आप सब के उत्‍साह पर ही निर्भर करती है । तो बस ये कि सिलसिला फिर से शुरू करने के लिए आप सब का साथ और उत्‍साह बहुत आवश्‍यक है ।

फिर शुरूआत और फिर कुछ दिन की चुप्‍पी, किसी भी काम को दोबारा शुरू करना बहुत मुश्किल होता है । मगर चलिए दीपावली के मुशायरे से शुरूआत की जाए ।

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लो जी साहब दीपावली का त्‍यौहार तो आकर देहरी पर ही खड़ा हो गया। बल्कि ये कहें कि त्‍यौहारों का पूरा मौसम ही सामने आ गया है। दशहरा फिर ईद फिर शरद पूर्णिमा और फिर दीपावली। जीवन में कुछ नई आहटें भर देते हैं ये त्‍यौहार । जीवन में से यदि इन त्‍यौहारों को हटा दिया जाए तो कितना कठिन हो जाएगा जीवन । रूटीन को तोड़ने का काम करते हैं ये त्‍यौहार। और उसमें भी ईद और दीपावली जैसे त्‍यौहार तो पर्वराज हैं। ये तो त्‍यौहारों के त्‍यौहार हैं। सुबीर संवाद सेवा पर हम सबने मिल जुल कर त्‍यौहार मनाने की जो परंपरा कायम की थी वो मेरी ही कुछ व्‍यस्‍तताओं या यूं कहें कि लापरवाही के चलते कुछ स्‍थगित सी हो गई। मगर कोई बात नहीं जब जागो तब ही सवेरा है।

इस ब्‍लॉग जो परिवार बनाया उसमें भारत तथा भारत के बाहर के परिजन भी शामिल हुए । बीते सात सालों के सफर में हुआ ये कि उन सबसे मुलाकात हो गई। कुछेक ही लोग बचे होंगे जिनसे भेंट नहीं हो पाई। मिलते समय कतई नहीं लगा कि इनसे पहली बार मुलाकात हो रही है। ऐसा लगा कि रोज ही तो मिलते रहे हैं इनसे। चूंकि संवाद कायम थे तो मुलाकात में अजनबीपन नहीं रहा। सात साल पहले जब ब्‍लॉग की दुनिया में प्रवेश किया तब कहां पता था कि ये शुरूआत कहां कहां पहुंचेगी। सुबीर संवाद सेवा एक ब्‍लॉग न होकर एक परिवार हो जाएगा। एक चौपाल हो जाएगी जहां आकर बतियाने के लिए दरवाजे हमेशा खुले होंगे।

हमने पिछले सात सालों में ग़ज़ल की उंगली पकड़ कर कई सारी बातें कीं। बहुत से नए रहस्‍यों को खोला और बहुत सी नई बातों की पड़ताल की । मैं हमेशा से अपने बारे में ये कहता रहा हूं कि मैं अरूज़ का कोई विद्वान नहीं हूं। मैं तो उसका विद्यार्थी ही हूं। ज्ञान का अंत नहीं होता इसलिए हम सब सीखते रहते हैं, सीखते रहते हैं। मैं भी उसी सीखने की प्रक्रिया में हूं। और उस प्रक्रिया में जो कुछ भी सीख पाया उसे आप सब से साझा करता रहा। कोशिश यह की, कि सरल भाषा में बात की जाए। ऐसी भाषा में जो सबको समझ में आए। मैं नहीं जानता कि कितना सफल रहा लेकिन बस ये कि जो बन पड़ा वो किया।

बातें वातें हो गईं अब काम की बात की जाए। तो साहब अब तरही की शुरूआत की जाए। हमने गई कई बहरों पर काम किया, उन पर तरही का आयोजन किया। मगर ये भी सच है कि अभी अभी बहुत सारी बहरें हमारे लिए इंतज़ार कर रही हैं ।तो सोचा ये कि किसी ऐसी बहर पर काम किया जाए जिस पर पूर्व में नहीं किया गया हो। हालांकि याद नहीं आ रहा है कि किस किस पर काम किया और किस किस पर नहीं। बहुत सोच कर इस बहर का तय किया कि चलो इस बार गुनगुनाने लायक इस बहर पर ही काम किया जाए ।

ललालला-लललाला-ललालला-लाला

अच्‍छी लगी न गुनगुनाने में, मुझे भी बहुत अच्‍छी लगती है ये गुनगुनाने में । रुक्‍न तो आपने निकाल ही लिए होंगे । मफाएलुन-फएलातुन-मफाएलुन-फालुन। बहर कौन सी है । वो नहीं बताई जाएगी, आप लोग ही इस बहर का नाम निकाल कर बताएं कि ये कौन सी बहर है। बहुत मुश्किल नहीं है । थोड़ा प्रयास करेंगे तो पकड में आ जाएगी ।

तो अब इस धुन पर क्‍या लिखा जाए । कुछ मिसरा बनाया जाए । किस प्रकार का मिसरा हो । जाहिर सी बात है कि वो मिसरा दीपावली पर ही होगा । उसमें कहीं न कहीं प्रकाश की बात होगी । उसमें अंधकार की समापन की बात होगी ।

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अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

ठीक लगा न मिसरा । अंधेरी रा ( मुफाएलुन) त में जब दी ( फएलातुन) प झिल मि ला ( मुफाएलुन) ते हैं ( फालुन) । ये अलग से बताने की जरूरत नहीं है कि अंधेरी में 'री'तथा रात के बाद आने वाले  'में'को गिरा कर लघु किया गया है । और हां ये भी कि 'हैं'रदीफ है और 'आते'ध्‍वनि काफिये की ध्‍वनि है ।

तो उठाइये कलम और दीपावली की तरही के लिए ग़ज़ल लिखना शुरू कर दीजिए ।


दीपावली का त्‍यौहार आ गया है और तरही को लेकर अभी भी बहुत काम होना बाकी है ।

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ये बात तो सच है कि किसी भी काम को एक बार कुछ विराम देकर फिर से शुरू करना बहुत मुश्किल होता है। असल में एक माइंड सेट होता है जो बिगड़ जाता है । और उस बिगड़े को सुधार पर फिर से पहले की ही तरह करना कुछ कठिन काम होता है । मगर याद आती है नेपोलियन की वो बात जब उसके सामने एक पहाड़ आ गया था तो उसने अपने सैनिकों से कहा था कि समझो कि ये पहाड़ सामने है ही नहीं । तो बस ये कि हमें भी यही समझ के काम करना है कि पहाड़ है ही नहीं। क्‍योंकि फिर से शुरुआत करना एक प्रकार से पहाड़ ही है । और इस पहाड़ पर चढ़ना अभी फिलहाल तो ज़रूरी है। इसलिए भी क्‍योंकि हम सब को मिल कर ही शुरुआत करनी है ।

अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

इस बार के मिसरे को लेकर बाद में कई सारे गीत लोगों ने याद दिलाए । जैसे कि कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है और मेरा तो जो भी क़दम है वो तेरी राह में है । या फिर कहां थे आप ज़माने के बाद आए हैं और जगजीत सिंह द्वारा गाई गई ग़जल़ अगर न ज़ोहरा जबीनों के दरमियां गुज़रे तो फिर ये कैसे कटे जिंदगी कहां गुज़रे । तो ये गीत गुनगुना कर भी गजल लिखने का काम किया जा सकता है । जगजीत सिंह जी द्वारा गाई गई ग़ज़ल की धुन तो वैसे भी कमाल है ।

कई बार सोचता हूं कि सुबीर संवाद सेवा के अचानक ठंडा पड़ जाने का कारण क्‍या है । हर बार मैं अपने आप को ही कारण पाता हूं । मैं ही । क्‍योंकि बस ये रहा कि प्राथमिकताएं बदल गईं । और ये कि बस दूरी होती चली गई । हम कई बार ये कहते हैं कि व्‍यस्‍सता हो गई है । असल में व्‍यस्‍तता कुछ नहीं होती होती तो प्राथमिकता ही है । सारी व्‍यस्‍तताओं के बाद भी हम आखिर को भोजन करने का समय तो निकालते ही हैं । क्‍योंकि वो हमारी प्राथमिकता में है । 

इसी बीच हिन्‍दी चेतना का विशेषांक भी सामने आ गया है । ये विशेषांक कथा आलोचना पर केन्द्रित है । विशेषांक पर भी पिछले एक साल से काम चल रहा था । विशेषांक को पढि़ये और अपनी राय दीजिये ।

और हां ग़ज़ल जल्‍दी भेजिए क्‍योंकि बस अब कुछ ही दिन शेष हैं । और ये भी कि कुछ लोगों की ग़ज़लें प्राप्‍त हो चुकी हैं । उनको आभार ।

अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं... कितना कुछ बदल गया है पिछले सात सालों में ।

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अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

मित्रों समय की गति इतनी तेज़ हो गई है कि कुछ पता ही नहीं चलता कि दिन, महीने और साल कब गुज़र गए । देखिए ऐसा लगता है कि कल की ही बात है जब ब्‍लॉगिंग की शुरुआत की थी । और इस ब्‍लॉग के बारे में सोचा था । सात साल हो गए। शायद पहली बार शरद पूर्णिमा को कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया था 2007 में । जिस प्रकार से कवियों का उत्‍साह सामने आया था उसके चलते बस सफ़र चल पड़ा । और अब हम यहां तक आ पहुँचे हैं । जाने कितनी दीपावलियॉं हमने साथ साथ मनाईं और जाने कितनी होली, ईद, राखियॉं आदि भी । समय सबको व्‍यस्‍त कर देता है । उसी व्‍यस्‍तता का परिणाम यहॉं भी देखने को मिला । लेकिन इस बार तरही को लेकर जिस प्रकार लोगों ने उत्‍साह दिखाया है उसको देखकर कहा जा सकता है कि अब कोशिश यही रहेगी कि सिलसिला चलता रहे... आमीन।

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इस बार हमने बहरे मुजतस की एक बहुत ही लोकप्रिय बहर ली है । बहरे मुजतस जैसा कि आप जानते ही हैं कि ये एक मुरक्‍कब बहर है । मतलब ये कि ये दो प्रकार के रुक्‍नों से मिल कर बनी है, मुस्‍तफएलुन और फाएलातुन। इन्‍हीं दोनों रुक्‍नों की मात्राओं में नियमानुसार परिवर्तन करके मुजतस की उप बहरें या मुज़ाहिफ बहरें बनाईं गईं हैं । आपको पता ही है यदि मुफ़रद बहरों की बात की जाए तो मुस्‍तफएलुन रुक्‍न 'बहरे रजज'का सालिम रुक्‍न है और फाएलातुन 'बहरे रमल'का स्‍थाई रुक्‍न है । इसलिए कहा जा सकता है कि दो मुफरद बहरों रजज और रमल के रुक्‍नों के कॉम्बिनेशन से तीसरी मुरक्‍कब बहर मुजतस बनी है । अब फाएलातुन रुक्‍न के जितने मात्रिक परिवर्तन हो सकते हैं वो सब मुजतस में लागू होंगे और उसी प्रकार मुस्‍तफएलुन के भी सभी मात्रिक परिवर्तन मुजतस में लागू होंगे । मुजतस की सालिम बहर है  मुस्‍तफएलुन-फाएलातुन-मुस्‍तफएलुन-फाएलातुन। अब इसमें हमारी बहर को बनाने के लिए जो परिवर्तन किए गए हैं वो ये कि मुस्‍तफएलुन रुक्‍न 2212 को 1212 कर दिया गया है। इसके बाद फाएलातुन 2122 में भी यही किया गया उसको भी 1122 कर दिया गया । और अंत में फाएलातुन 2122 को 22 या 112 में परिवर्तित कर दिया गया । बहर का नाम 'मुजतस'है ये तय है उसमें चार रुक्‍न हैं सो वो 'मुसमन'है ये तय है। सालिम नहीं है मुज‍ाहिफ है ये तय है । तो 'बहरे मुजतस मुसमन'के आगे नाम क्‍या होगा ये ऊपर किए गए मात्रिक परिवर्तनों के नाम के आधार पर होगा । रुक्‍न मुस्‍तफएलुन की मात्रिक संरचना में पहले दो 'सबब-ए-ख़फ़ीफ़'हैं ( 2 जैसे हम, तुम, कब ) और फिर एक वतद है ( 122 जैसे कलम, मगर, इधर) । जिहाफ की परिभाषा के हिसाब से यदि किसी रुक्‍न में प्रारंभ में सबब-ए-ख़फी़फ़ हो और उसके दूसरे हर्फ को गिरा दिया जाए तो इसे 'ख़ब्‍न'कहते हैं और इस प्रकार बने रुक्‍न को 'मखबून'कहा जाता है । अरे मैंने तो नाम का एक अंश बता भी दिया । मतलब ये कि 'बहरे मुजतस मुसमन मखबून....'तो हुआ, चलिए बाकी के अंशों की तलाश कीजिए जो जा‍हिर सी बात है कि फाएलातुन के फएलातुन और फालुन करने में छिपे हैं ।

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आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी

सुकव‍ि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान

एक सूचना ये कि शिवना का वार्षिक आयोजन 19 जनवरी 2015 को आयोजित होगा। कार्यक्रम में आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी को 'सुकव‍ि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान 'प्रदान किया जाएगा । आप सब इस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं । काफी पूर्व से सूचना दी जा रही है जिससे आप अपना शेड्यूल बना सकें ।

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तो ठीक है फिर जल्‍दी जल्‍दी अपनी ग़ज़लें भेजिए ताकी काम आगे बढ़े । जिन लोगों ने समय से भेज दी हैं उनके प्रति आभार। जय जय ।

अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं, आइये आज से शुरू करते हैं दीपावली तरही मुशायरा ।

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सुबीर संवाद सेवा पर तरही का आयोजन हमेशा से एक उत्‍सव की तरह रहा है । जब ये आयोजन पिछले एक डेढ़ साल से कुछ कम हुए तो ऐसा लगा कि कहीं कुछ छूट रहा है । सीहोर के कवि स्‍व. मोहन राय की कविता की पंक्तियां याद आती रहीं ''कोई गीत नहीं है उपजता, कुछ छूट रहा है''। बहुत सहमे हुए क़दमों से जब दीपावली की तरही की भूमिका बांधी तो मन में कई तरह के विचार थे । लेकिन जिस प्रकार से सबने आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और उसके बाद ग़ज़लें भेजीं उससे, लगा कि नहीं जब जागो तभी सवेरा वाली बात ग़लत नहीं है । एक बहुत मन को छू जाने वाली बात नीरज जी की ग़ज़ल के साथ आई ''ये करिश्मा सुबीर संवाद सेवा है जिसकी बदौलत कोई छह महीने के बाद ये ग़ज़ल हुई है''। बस यही तो वो आत्‍मीयता है वो सूत्र है जो हम सबको जोड़े हुए है । ये आत्‍मीयता बनी रहे बस यही कामना है ।

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अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

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आइये आज से शुरू करते हैं दीपावली के त्‍योहार के अवसर पर यह विशेष तरही आयोजन। झिलमिलाना एक विशेष गुण है जो कि जगमगाने से कुछ अलग होता है । दीपको के संदर्भ में तीन प्रयोग आते हैं झिलमिलाना, जगमगाना और टिमटिमाना। यही प्रयोग सितारों के संदर्भ में भी प्रयुक्‍त होते हैं । सितारों के संदर्भ में जगमगाना प्रयोग नहीं होता । जगमगाना एक प्रकार से समृद्धि का, एश्‍वर्य का और कुछ मायनों में दंभ का भी प्रतीक होता है जबकि झिलमिलाना स्‍वाभिमान का प्रतीक होता है। सूर्य जगमगाता है, सितारे झिलमिलाते हैं या टिमटिमाते हैं। जो कुछ है उसे पूरी शिद्दत के साथ प्रदर्शित करने का गुण झिलमिलाना होता है । जगमगाने की क्रिया में खुद्दारी, स्‍वाभिमान नहीं होता जबकि झिलमिलाने में होता है । इस मिसरे में झिलमिलाना काफी सोच समझ कर रखा गया है । और अच्‍छा लगा ये जानकर कि उसका सभी रचनाकारों ने बहुत ध्‍यान रखा ।

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह

अँधेरी रात की फ़ाक़ाकशी मिटाते हैं
फ़सल छतों पे उजाले की हम उगाते हैं

लड़ाइये न इन्हें आँधियों से बेमतलब
जला के दिल को दिये रोशनी लुटाते हैं

उजाले साथ ही चलते हैं रात भर उनके
जो बनके चाँद अँधेरों के पास जाते हैं

किसी विजय या पराजय से है ये बात बड़ी
उजाले आज सभी को गले लगाते हैं

अँधेरा काँपने लगता है रोशनी छूकर
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

प्रकाश कम है कहीं दीप ही न बुझ जाए
चलो ख़याल की बाती जरा बढ़ाते हैं

क्‍या बात है सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं । सबसे बेहतरीन प्रयोग गिरह के शेर का मिसरा उला है । यही वो सोच है जिसको लेकर ऊपर संकेत दिया गया है । जगमगाने वालों से कोई नहीं कांपता लेकिन झिलमिलाने वालों से कांपते हैं सब । मतला भी बहुत अच्‍छा है । अंधेरी रात की फाकाकशी.... खूब प्रयोग है भई । आखिरी शेर भी खूब बन पड़ा है । ख़याल की बाती ज़रा बढ़ाने की बात कई कई संदर्भों की ओर संकेत देती है । चांद बनके अंधेरों के पास जोन का प्रयोग भी खूब है । बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है । वाह वाह वाह ।

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दिगंबर नासवा


पुराने प्यार की वो दास्ताँ सुनाते हैं
मेरी दराज़ के कुछ ख़त जो गुनगुनाते हैं 

चलो के मिल के करें हम भी अपने दिल रोशन
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

तुम्हारे आने की हलचल सी थी हवाओं में
तभी तो बाग़ के ये फूल खिलखिलाते हैं

झुकी झुकी सी निगाहें हैं पूछती अकसर
ये किसके ख्वाब मुझे रात भर जगाते हैं

कभी न प्यार में रिश्तों को आजमाना तुम
के आजमाने से रिश्ते भी टूट जाते हैं 

कई बार ऐसा होता है कि एक मिसरे पर ही सब कुछ कुर्बान कर देने को मन करता है । जैसे कि ये मिसरा 'ये किसके ख्‍़वाब मुझे रात भर जगाते हैं '। बहुत ही सुंदर मिसरा है । कई बार जाने हुए के बारे में कहने से ज्‍यादा सुंदर होता है अनजाने के बारे में कहना । गिरह का शेर अलग तरीके से बना है । सामान्‍य प्रयोग के बदले कुछ अलग किया गया है । मिसरे के 'जब'श‍ब्‍द को केन्‍द्र में कर दिया गया । बहुत ही सुंदर। पूरी ग़ज़ल बहुत ही कमाल बनी है । वाह वाह वाह।

deepawali (4)

girish pankaj

गिरीश पंकज

लगे है जैसे कोई गीत गुनगुनाते हैं
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

अन्धेरा हमको डराता रहा ये माना पर
चराग़ हाथ में हो गर तो मुस्कराते हैं

हमेशा अपने लिए जीना कोई जीना है
चलो के चल के ज़रा रौशनी लुटाते हैं

किसी भी दर पे  अँधेरा फटक नहीं सकता
समझ के अपना ही घर दीप हम जलाते हैं

सुना है हमने यही के अँधेरे हैं ज़ालिम 
मगर ये सच है उजालों से खौफ खाते हैं 

अगर हो साथ में दीपक तो डर नहीं लगता
चले हैं शान से औ रास्ता बनाते हैं

पूरी की पूरी ग़ज़ल अँधेरे और उजाले के संघर्ष की ग़ज़ल है । तमसो मा ज्‍योर्तिगमय  के सूत्र वाक्‍य पर लिखी हुई है । मगर ये सच है उजालों से खौफ खाते हैं में बहुत दूर की बात कही है । हर अंधेरा उजाले से डरता है । क्‍योंकि प्रकाश उसका समापन कर देगा। ठीक वैसे ही जैसे प्रतिभाहीन लोग प्रतिभावानों से डरते हैं। मतले में ही बहुत सुंदर तरीके से गिरह बांध दी है । झिलमिलाने को गीत के गुनगुनाने के साथ प्रयोग कर बहुत सुंदर तरीके से बात कही गई है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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deepawali 

बहुत ही सुंदर शुरुआत हुई है तरही मुशायरे की । अब आप सब की बारी है दाद देने की । ज़रा खुल कर खिल कर दाद दीजिए । दाद देने से उत्‍साह में और आनंद आता है । तो आज के इन तीन शायरों की रचनाओं का आनंद लीजिए तालियां बजाइये वाह वाह कीजिए। कल कुछ और शायरों के साथ मिलते हैं ।

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद, संजय दानी, मन्सूर अली हाशमी और नवीन चतुर्वेदी के साथ आइये आगे बढ़ते हैं तरही मुशायरे में।

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मित्रों सबसे पहले आप सबको आज से शुरू हो रहे पांच दिवसीय दीप पर्व के प्रथम दिवस की मंगल कामनाएं। कल बहुत अच्‍छा आगाज़ हुआ तरही मुशायरे का । और ये भी कि श्रोताओं ने खूब दाद भी दी । ये अलग बात है कि कुछ लोग लगातार यहां से अनुपस्थित रह रहे हैं । इस मुशायरे के बाद सुबीर संवाद सेवा की मेलिंग लिस्‍ट को भी अपडेट कर दिया जाएगा ताकि अनुपस्थित रहने वालों के मेल बाक्‍स में सुबीर संवाद सेवा की अवांछित मेल नहीं पहुंचा करे।अवांछित चीजें हमेशा ही कष्‍ट देती हैं। खैर कल की ग़ज़लें बहुत बहुत शानदार रहीं और आज भी वैसा ही कुछ होने वाला है । कल जब पोस्‍ट लग रही थी तो एक ही गीत दिमाग में गूंज रहा था 'मिले न फूल तो कांटों से दोस्‍ती कर ली'मुझे लगा कि इस बहर पर लिखने के लिए ये सबसे परफेक्‍ट धुन है यदि आपको बहर समझने में दिक्‍कत आती हो तो। कल ही किसी ब्‍लॉग पर संभवत- कबाड़खाना पर नज़ीर अकबराबादी की दीपावली पर लिखी नज्‍़म 'चढ़ा है मुझको भी अब तो नशा दिवाली का'पढ़ी । नज्‍़म तो खैर क्‍या खूब है लेकिन मज़ा ये जानकर आया कि बहर भी यही है जिस पर अपना मुशायरा चल रहा है ।  कल सुधा ढींगरा जी ने सुबीर संवाद सेवा को लेकर बहुत अच्‍छी बात कही उन्‍होंने कहा कि सुबीर संवाद सेवा का माहौल गोष्ठियों के समान होता है जहां रचनाएं और चर्चा दोनों होती हैं ।

खैर तो चलिए आज हम आगे बढ़ते हैं कुछ और शायरों के साथ । आज हम चार शायरों शाहिद मिर्ज़ा शाहिद, संजय दानी, मन्सूर अली हाशमी और नवीन चतुर्वेदी के साथ आगे चल रहे हैं । चारों बहुत अच्‍छे शायर हैं और हमारे तरही आयोजनों के चिर परिचित नाम हैं । किसी परिचय की आवश्‍यकता नहीं है  इनको । तो आइये आज सुनते हैं इन चारों से इनकी ग़जलें ।

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अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

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शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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ये दौर रंज ओ अलम का चलो भुलाते हैं
कोई भी करके जतन खूब मुस्कुराते हैं।

नई उमंग नई आरजू जगाते हैं।
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं।

जला के लाए हैं खुशियों के सब दिलों में चिराग
सभी के साथ चलो हम भी जगमगाते हैं

जरा सा दौर मेरे इम्तहां का क्या आया
खुशी के लम्हे भी जी भरके आजमाते हैं।

सुना है कुफ्र है रहमत से उसकी मायूसी
चलो चिराग उमीदों के जगमगाते हैं।

हमारी गलियों में हमको जो कर गए तन्हा
उन्हीं की याद से हम अंजुमन सजाते हैं।

वही पहुंचते हैं मंजिल पे एक दिन शाहिद
जो अज्म रखके मुसलसल कदम बढ़ाते हैं।

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सकारात्‍मकता का अपना मज़ा है और मतला पूरी तरह से सकारात्‍मकता से भरा हुआ है । जो है जैसा है उसी में खुश रहने की सीख देता हुआ शानदार मतला । एक शेर सकारात्‍मकता के अद्भुत सौंदर्य से भरा है 'सुना है कुफ्र है रहमत से उसकी मायूसी'अहा क्‍या कह दिया है । काश हर इन्‍सान इस सबक को सीख ले । मकते में आया हुआ 'मुसलसल'शब्‍द क्‍या खूब उदाहरण पेश कर रहा है बहर के उतार चढ़ाव का । सकारात्‍मकता से भरी हुई बहुत ही शानदार ग़ज़ल । क्‍या बात, वाह, वाह, वाह।

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papa

संजय दानी

deepawali (7)

लकीरे-दस्त पे विश्‍वास हम जताते हैं,
कभी न हौसलों को अपने आजमाते हैं।

बहारों को कहां मालूम आदतें पा की,
खिजां से इश्क है, काटों में चैन पाते हैं।

अमीरों ने हमें हर दौर में सताया है,
किनारे, लहरों से रिश्ते कहाँ बनाते हैं।

गमे-चराग से हैं इश्क के बिछौने भी,
मकाने- हुस्न में भी आंसू ये बहाते हैं।

जलाना दुश्‍मनों का घर भी है कहाँ जायज,
वहां भी अपना बसेरा खुदा बसाते हैं।

न था हजारों बरस पहले धर्म या मजहब,
हरेक इन्सां के आपस में रिश्ते-नाते हैं।

अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं,
तुम्हारे हुस्न की यादों में खो ही जाते हैं।

deepawali (7)

संजय दानी जी ने बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है । बहारों को कहां मालूम में मिसरा सानी बहुत कमाल बन गया है । ये भी अपनी तरह की एक सकारात्‍मकता है कि खिजां से इश्‍क है कांटों में चैन पाते हैं । खूब ।  एक और शेर न था हज़ारों बरस पहले धर्म भी अच्‍छा बना है विशेषकर मिसरा सानी में सबके आपस में संबंध होने की बात को बहुत ही सुंदर तरीके से निभाया है । मतले को व्‍यंग्‍य के अंदाज़ में लिख कर कुप्रथा पर करारी चोट की गई है । संजय दानी ने अपने ही अंदाज में ग़ज़ल कही है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।   

deepawali (7)

Mansoor ali Hashmi

मन्सूर अली हाशमी

deepawali (7)

अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते है
यक़ीन बढ़ता है वहमो-गुमान जाते है।

अमन के चैन के नग़मे हमें सुनाते हैं
अवाम जागे तो फिर हुक्मराँ सुलाते हैं ।

लतीफा गो है; ये लीडर हमें हँसाते हैं ,
इधर ये प्याज़ो-टमाटर हमें रुलाते हैं। 

हमारे देश के   नेता तो देश की ख़ातिर
न खाने देते किसी को न खुद ही खाते हैं।

वशीकरण सा है मंतर भी इनकी बातों में
ये सब्ज़ बाग़ भी अक्सर हमें दिखाते हैं ।

धरम से वास्ता इनको कभी रहा ही नही
चुनाव जीतने ख़ातिर ही बस  भुनाते हैं ।

'त्रिशंकु'स्थिति भाती है धारा-सभ्यों को
ये 'Trade'  होने की ख़ातिर ही हिनहिनाते हैं !

बदल गए है मआनी  भी सादगी के यहाँ  
लिबासे  खादी में भी लोग  चमचमाते हैं। 

मन्‍सूर भाई बहुत ही चुटीले अंदाज़ में अपनी बात शेरों के माध्‍यम से कहते हैं । और ये ग़ज़ल भी वैसी ही है । अमन के चैन के नग़मे में मिसरा सानी एक साथ हंसा भी देता है और रुला भी देता है । ये ही किसी रचना की सफलता है कि वो आपको हंसाए भी और रुलाए भी। धरम से वास्‍ता इनको कभी रहा ही नहीं में व्‍यंग्‍य अपने चरम पर है । आखिर का शेर लम्‍बी मार करने वाला शेर है काश वहां तक पहुंच सके जहां कि लिए लिखा गया है । लीडर द्वारा हंसाना और टमाटर द्वारा रुलाने का प्रयोग भी सुंदर है । बहुत ही बढि़या ग़ज़ल है । सुंदर अति सुंदर । वाह वाह वाह ।

deepawali (7)

naveen chaturvedi

नवीन चतुर्वेदी

deepawali (7)

अँधेरी रैन में जब दीप झिलमिलावतु एँ
अमा कूँ बैठें ई बैठें घुमेर आमतु एँ

अबन के दूध सूँ मक्खन की आस का करनी
दही बिलोइ कें मठ्ठा ई चीर पामतु एँ

अब उन के ताईं लड़कपन कहाँ सूँ लामें हम
जो पढते-पढते कुटम्बन के बोझ उठामतु एँ

हमारे गाम ई हम कूँ सहेजत्वें साहब
सहर तौ हम कूँ सपत्तौ ई लील जामतु एँ

सिपाहियन की बहुरियन कौ दीप-दान अजब
पिया के नेह में हिरदेन कूँ जरामतु एँ

तरस गए एँ तकत बाट चित्रकूट के घाट
न राम आमें न भगतन की तिस बुझामतु एँ

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नवीन जी को धन्‍यवाद कि उन्‍होंने ब्रज की मीठी बोली में लिखी हुई ग़ज़ल को लाकर इस मंच को समग्रता प्रदान की । एक शेर जो मुझे सबसे ज्‍यादा पसंद आया है वो है सिपाहियों की पत्नियों द्वारा दीपक के स्‍थान पर हृदय को जलाने वाला शेर है । बहुत सुंदर प्रयोग हो गया है उसमें । वाह । राम के चित्रकूट पर नहीं लौटने का प्रयोग भी बहुत खूब है । वापस नहीं लौटने की अपनी पीड़ा है उस पीड़ा को बहुत सुंदर तरीके से व्‍यक्‍त किया गया है । अबन के दूध में व्‍यंग्‍य की धार खूब पैनी है । बहुत ही सुंदर और मीठी ग़ज़ल है । सुंदर अति सुंदर वाह वाह वाह ।

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वाह वाह वाह, आज तो चारों शायरों ने अपने अपने तरीके से रंग जमा दिया है । अलग अलग रंग और अलग अलग लहजे की ग़ज़लें महफिल में चारा चांद लगा गईं हैं। पूर्णता वास्‍तव में भिन्‍नता में ही आती है ये बात आज की तरही बताती है । तो आनंद लीजिए चारों ग़जलों का और देते रहिए दाद। कल मिलते हैं कुछ और रचनाकारों के साथ । जय हो ।

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आज हमारे यहां होती है रूप चतुर्दशी, तो आइये आज सुनते हैं लावण्‍या दीपक शाह जी, सुधा ओम ढींगरा जी, इस्‍मत ज़ैदी जी और डिम्‍पल सिरोही की ग़ज़लें।

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दीपावली का त्‍योहार सामने आ गया है । अब बस एक ही दिन है दीपावली में । आज रूप चतुर्दशी है । हमारे यहां आज सुबह उबटना लगा कर नहाया जाता है क्‍योंकि आज रूप को सँवारने का दिन होता है। तो आइये आज हम तरही के सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं । रूप का संबंध नारी शक्ति के साथ होता है तो आज नारी शक्ति की ही ग़ज़लें और गीत। दीपावली वैसे तो पांच दिवसीय पर्व है मगर प्रथम तीन दिन अधिक महत्‍वपूर्ण होते हैं। ये तीन दिन तीन गुणों का प्रतीक होते हैं। तीन गुणों के या फिर तीन प्रतीकों के । तन, मन और धन। आज लावण्‍या दीपक शाह जी, सुधा ओम ढींगरा जी, इस्‍मत ज़ैदी जी और डिम्‍पल सिरोही की ग़ज़लें सुनते हैं और उससे पहले सुलभ जायसवाल का एक मुक्‍तक।

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अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

आज सबसे पहले सुनते हैं सुलभ जायसवाल से एक मुक्‍तक। सुलभ का ये मुक्‍तक बताता है कि सुबीर संवाद सेवा से जिनको भी दिली लगाव है वे लोग दौड़ते भागते, जैसे तैसे करके इस मुशायरे में शामिल हुए हैं । क्‍योंकि ये एक प्रकार से सुबीर संवाद सेवा के उत्‍सवों को फिर से शुरू करने का प्रयास है जिसमें हर किसी की भागीदारी आवश्‍यक थी और हुई भी है।

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सुलभ जायसवाल

'अँधेरे'हार के  चुपचाप बैठ जाते हैं
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं 
उन्हीं  फरिश्तों  से संसार में उजाला है
जो मुश्किलों में भी हंसकर दीये जलाते हैं

बहुत सुंदर मुक्‍तक है। रौशनी और अँधेरे की लड़ाई बरसों बरस से जारी है और चलती रहेगी। उसी लड़ाई को लेकर ये मुक्‍तक है। उन लोगों को समर्पित जो अँधेरे से जंग लड़ रहे हैं।

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लावण्या दीपक शाह

अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
सितारे घर में औ’ आंगन में बिछ से जाते हैं।

भुला के ग़म को ज़रा देखो जलते दीपक को     
है कल की भोर सुनहरी न हौसला हारो
हरेक पल को ही दीपावली समझना है  
नई उमंगें हों मन में नवीन आशा हो। 

हैं साथ सैकड़ों दीपक, है रात दीवाली  
बढ़ा के प्रीत चलो जश्न हम मनाते हैं

सुंदर गीत है । सकारात्‍मक सोच से भरा हुआ गीत। उत्‍साह, उमंग, आशाएं इनसे ही तो हमारा जीवन बना है। भुला के ग़म को ज़रा देखो जलते दीपक को, पंक्ति बहुत कुछ कह रही है । हौसले को बनाए रखना आवश्‍यक होता है और ये गीत उसी हौसले की बात कर रहा है । हरेक पल को ही दीपावली समझना है, पंक्ति जीवन को हर क्षण जीने हर पल में आनंद लेने की पंक्ति है । बहुत ही सुंदर गीत । वाह वाह वाह ।

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 Dr. Sudha Dhingra

सुधा ओम ढींगरा

अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
तो पथ से भटके मुसाफिर भी राह पाते हैं॥

घना अँधेरा है, मंजिल भी दूर है, क्या ग़म,
सितारे हौसलों के राह जब दिखाते हैं॥

समेट रक्खा है इन्सां  ने खुद को अपने तक  
नज़र ज़मीं ये इतने जो देश आते हैं॥

सबक जिन्होंने भी इंसानियत का सिखलाया  
वही सलीबों पे आखि़र में पाए जाते हैं॥

है फ़त्ह चाँद को हमने किया है फिर भी हम
जो राह काट दे बिल्ली  ठिठक ही जाते हैं॥

ये नफ़रतों का अँधेरा मिटाने हर दिल से 
चराग़ प्रेम के मिलकर चलो जलाते हैं॥

सुधा जी वैसे तो कहानीकार हैं और कविताएं छंदमुक्‍त लिखती हैं लेकिन सुबीर संवाद सेवा पर वे अपनी ग़जल़ें हमें सुनाने आती हैं । उनकी उपस्थिति हमारे लिए प्रेरणादायक होती है। घना अँधेरा है औ'दूर है मंजिल, क्‍या ग़म में हौसलों के सितारों का प्रयोग बहुत सुंदर है । सबक जिन्‍‍होंने ने भी इंसानियत का सिखलाया, शेर एक कड़वी सच्‍चाई को सामने लाता है, ईसा से लेकर गांधी तक सबके चेहरे सामने आ जाते हैं । चराग़ प्रेम  के जलाने का संदेश देकर ग़ज़ल समाप्‍त होती है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर । वाह वाह वाह । 

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ismat zaidi didi 2

इस्‍मत ज़ैदी "शिफ़ा"

ताआल्लुक़ात चटख़ते हैं, टूट जाते हैं
जब हम ख़ुलूसो मोहब्बत को आज़माते हैं

जो राहे हक़ पे ज़िआले क़दम बढ़ाते हैं
तो पैर ज़ुल्मतो बातिल के थरथराते हैं
(ज़िआले : बहादुर, ज़ुल्मतो बातिल : अधर्म और अँधेरा)

ख़ुशी का एक नया ज़ाविया उभरता है
हम अपने बच्चों से जिस वक़्त हार जाते हैं
(ज़ाविया : दृष्टिकोण)

मैं एक भूल भुलैया में क़ैद हूँ जैसे
तसव्वुरात मेरे मुझको आज़माते
हैं

ठहर सा जाता है इक अक्स चाँद के रुख़ पर
लबे चराग़ जो इक बार मुस्कुराते हैं

महो नजूम भी हैरत से देखते हैं ज़मीं
"अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं"

उदास शब भी अमावस की मुस्कुराती है
जो कुमकुमे से निगाहों में जगमगाते हैं

शग़फ़ है ख़ूब रवायाते रफ़्तगा से मगर
हम अहदे नो के तराने भी गुनगुनाते हैं
(शग़फ़ : बहुत लगाव, रफ़्तगा : गुज़रा हुआ, अहदे नो : नया युग)

हमारे बीच जो दीवार उठ रही है "शिफ़ा"
चलो के मिल के उसे आज हम गिराते हैं

क्‍या किया जाए ? बताइये क्‍या किया जाए ? आप बताइये कि मैं किस शेर को कोट करके उसकी तारीफ में यहां पर कुछ लिखूँ ? मैं पहले एक बात बताना चाहता हूँ इस्‍मत जी गोवा से सतना शिफ्ट हुईं हैं और इस दौरान ही तरही की घोषणा हुई । इंटरनेट की अनुपलब्‍धता और परेशानियों के बीच उन्‍होंने मुझे मोबाइल पर रोमन में मैसेज द्वारा शेर भेजे। यही तो वो जज्‍़बा है जो सुबीर संवाद सेवा को एक परिवार बना देता है । खुशी का एक नया ज़ाविया उभरने में मिसरा सानी अहा अहा है । पलकों की कोरों पर बूंदें आ जाती हैं बरबस । गिरह के शेर में मिसरा उला खूब बना है । कुमकुमे से निगाहों में जगमगाने की बात ही क्‍या है वाह । अब मेरे बस की नहीं है कि प्रशंसा के लिए और शब्‍द लाऊं, वाह वाह वाह ।

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dimple sirohi

डिम्पल सिरोही
चूँकि डिम्‍पल जी पहली बार हमारे मुशायरे में आ रही हैं इसलिए इनका परिचय पहले। डिम्‍पल जी जनवाणी मेरठ में सब एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।

हजार ख्वाब उमीदों के गीत गाते हैं।
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं।

बड़ा वीरान सा रहता है आजकल मौसम
चलो कि मिलके इसे फिर से सब हंसाते हैं।

तिमिर को सख्त हिदायत है चुप रहे शब भर,
कंवल उजालों के हम मिलके सब खिलाते हैं।

कुछ इस सलीके से मुझसे खफा हुए हमदम
वो बात करते तो हैं, पर जिया जलाते हैं।

खफा नहीं हैं वो मुझसे, तुम्हें नहीं मालूम
वो सबसे छुपके मेरे गीत गुनगुनाते हैं।

चराग जैसा बनाओ वजूद तुम अपना,
अंधेरी रात में ये रास्ता दिखाते हैं।

ये दिन भी होते हैं कुछ खास दोस्तों जैसे
कभी हंसाते हैं डिम्पल कभी रुलाते हैं।

डिम्‍पली जी पहली बार मुशायरे में आईं हैं लेकिन ग़ज़ल से लगता है कि वे सिद्धहस्‍त शायरा हैं । एक पंक्ति जो दिमाग में बैठ गई वो है तिमिर को सख्‍़त हिदायत है चुप रहे शब भर, कुछ अलग सा प्रयोग साहित्‍य में हमेशा अच्‍छा लगता है और ये पंक्ति उसी प्रयोग की पंक्ति है । एक और मिसरा ग़ज़ब का बना है बड़ा वीरान सा रहता है आजकल मौसम, बाद में उतना ही सुंदर मिसरा सानी । और सलीके से खफा होने की तो बात ही अलग है । प्रेम के शेर वैसे भी हमेशा ही आनंद देते हैं । मकता भी खूब है । सुंदर ग़ज़ल बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह ।

deepawali (6)

वाह वाह वाह रूप चतुर्दशी का पर्व आज की रचनाओं ने सार्थक कर दिया है। दीपावली के आगमन की पूरी भूमिका आज की रचनाओं ने बांध दी है । कल दीपावली है तो आज इन ग़ज़लों का आनंद उठाइये और खूब दाद दीजिये । कल हम कुछ और रचनाकारों के साथ मनाएंगे दीपावली का त्‍योहार । तब तक निर्मल आंनद ।

deepawali (16)

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