याद आता है बचपन का वो ठीक ठाक सा पहला रक्षाबंधन । हर तरफ भाइयों की कलाई पर राखी बंधी हुई । और हम दोनों भाई टुकुर टुकुर उनको ताकते हुए । पहली बार जिन बहनों ने कलाई पर राखी बांधी थी वो भी पांडेय ही थीं । जाने अब वो कहां हैं । इतना ज़रूर पता था कि बड़ी बहन जी के पति मध्यप्रदेश कांग्रेस सेवादल के प्रदेश अध्यक्ष थे छत्तीसगढ़ बनने के पहले तक । उसके बाद का कुछ पता नहीं । ये भी संयोग है कि आज जिन दो शायरों को तरही में ग़ज़ल पाठ के लिये आमंत्रित किया जा रहा है वे भी दोनों ही पांडेय हैं ।
प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये
आज तरही में जो शायर आ रहे हैं । दोनों ही शायर कमाल के हैं । दोनों का ही नाम तरही के लिये अपरिचित नहीं हैं । श्री सौरभ पांडेय जी और श्री विनोद पांडे तरही में नियमित आते रहे हैं । दोनों ही शायर अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं का मन जीतते रहे हैं । आज रक्षाबंधन की पूर्व बेला में सुनते हैं दोनों शायरों की ग़जल़ें ।
श्री सौरभ पांडेय जी
आज कलियाँ प्रणय की खिली हैं प्रिये
तितलियाँ चाह की झूमती हैं प्रिये
धड़कनों से खिलें पुष्प पाटल कमल
धमनियों में उमंगें बही हैं प्रिये
धार रक्तिम तरंगित उपटती बहीं
सुर सधी जलतरंगें छुई हैं प्रिये
भाल सिन्दूर से लसपसाया हुआ
सूर्य-किरणें हुलस कर बसी हैं प्रिये
व्यक्त विदरण लगें देहरी देह की
प्रीत की अल्पनाएँ सजी हैं प्रिये
मंद घड़ियाँ मनोरम न यों थीं कभी
मुग्ध हो कसमसाती लगी हैं प्रिये
मधु भरे वार दो आज मुझ पे अधर
देह में चीटियाँ रेंगती हैं प्रिये
दो कदम मैं चलूँ दो कदम तुम चलो
दूरियाँ मिल हमें काटनी हैं प्रिये
तुम ये मानो न मानो मग़र सच यही
तुमसे सुधियाँ हृदय की हँसी हैं प्रिये
मधु भरे वार दो आज मुझ पर अधर, देह में चीटियां रेंगती हैं प्रिये, कमाल शेर । दोनों ही मिसरे कमाल कमाल हैं । मिसरा सानी तो श्रंगार तथा अश्लीलता के बीच की बारीक डोर पर नट की तरह सधा हुआ गुज़रा है । उफ कमाल का शेर । भाल सिन्दूर से लसपसाया हुआ में लसपसाया हुआ की तो बात ही क्या है । देशज शब्द जब काव्य में सही तरीके से आते हैं तो सोने पर सुहागा हो जाता है । ऐसा ही एक शब्द और आया है धार रक्तिम तरंगें उपटती बही में, उपटती की क्या बात है । बहुत सुंदर ग़ज़ल । वाह वाह वाह ।
श्री विनोद कुमार पांडेय
इस लहर सी हृदय में उठी है प्रिये
क्या कहूँ किस कदर बेखुदी है प्रिये
नैन बेचैन है, हसरतें हैं जवाँ
हर दबी भावना अब जगी है प्रिये
प्रेम के गीत की गूँज है हर तरफ
प्रीत की अल्पना भी सजी है प्रिये
साज श्रृंगार फीके तेरे सामने
दिल चुराती तेरी सादगी है प्रिये
मेरे दिल का पता दिल तेरा हो गया
ये ठगी है कि ये दिल्लगी है प्रिये
उस हवा से है चंदन की आती महक
जो हवा तुमको छूकर चली है प्रिये
उस कहानी की तुम ख़ास किरदार हो
संग तुम्हारे जो मैने बुनी है प्रिये
छन्द, मुक्तक, ग़ज़ल, गीत सब हो तुम्हीं
तुम नही तो कहाँ, शायरी है प्रिये
बहुत सुंदर ग़ज़ल । साज श्रंगार फीके तेरे सामने में दिल को चुराने वाली सादगी की क्या बात है । छन्द मुक्तक ग़ज़ल गीत में प्रेम को काव्य का मूल आधार होने की बात को बहुत सुंदरता के साथ प्रतिपादित किया गया है । मेरे दिल का पता तेरा दिल हो गया में ठगी और दिल्लगी की बात को अच्छा बांधा है । बहुत सुंदर ग़ज़ल । वाह वाह वाह ।