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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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आइये नई पीढ़ी के साथ मनाते हैं बासी दीपावली आज युवा शायर नकुल गौतम, अंशुल तिवारी और गुरप्रीत सिंह लेकर आ रहे हैं अपनी ग़ज़लें।

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मित्रों दीपावली के बाद का उल्लास बना हुआ है और हम लगातार बाद के आयोजनों में वयस्त हैं। मज़े की बात यह है कि लोग भाग-भाग कर ट्रेन पकड़ रहे हैं। आप तो जानते ही हैं कि हमारा यह तरही मुशायरा उस शिमला की खिलौना ट्रेन की तरह होता है जिसे कोई भी कभी भी भाग कर पकड़ सकता है। सबका स्वागत है। लेखन समयबद्ध नहीं किया जा सकता। विचार जब हलचल मचाएँगे तभी तो लेखन होगा। इसलिए अपना तो एक ही नियम है कि कोई नियम नहीं है।

उजाले के दरचे खुल रहे हैं

मित्रों आज तीन एकदम युवा शायर अपनी ग़ज़लें लेकर आ रहे हैं। नकुल गौतम को आप सब जानते हैं। अंशुल तिवारी हमारे ब्लॉग के पुराने सदस्य श्री मुकेश तिवारी के सुपुत्र हैं दूसरी पीढ़ी के रूप में वे इस मुशायरे में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। और गुरप्रीत दूसरी बार मुशायरे में आ रहे हैं। पहली बार उनका फोटो नहीं लग पाया था इसलिए दूसरी इण्ट्री फोटो के साथ। याद आता है फिल्म कभी-कभी का गीत –कल और आएँगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले।

deepawali

Nakul Gautam

नकुल गौतम

deepawali (1)

लुटेरे मॉल सज-धज कर खड़े हैं
सनम दीपावली के दिन चले हैं

लगी दीपावली की सेल जब से
मेरी बेग़म के अच्छे दिन हुए हैं

मेरे बटुए का बी.पी. बढ़ रहा है
मेरे बच्चे खिलौने चुन रहे हैं

सफाई में लगी हैं जब से बेग़म
सभी फनकार तरही में लगे हैं

तरन्नुम में सुना दी सब ने गज़लें,
मगर हम क्या करें जो बेसुरे हैं

कहाँ थूकें भला अब पान खा कर
सभी फुटपाथ फूलों से सजे हैं

यक़ीनन आज फिर होगी धुलाई
गटर में आज फिर पी कर गिरे हैं

नहीं दफ़्तर में रुकता देर तक अब
मेरे बेगम ने जब से नट कसे हैं

इन्हें खोजेंगे कमरे में नवासे
छिपा कर आम नानी ने रखे हैं

चलो छोड़ो जवानी के ये किस्से
'नकुल'अब हम भी बूढ़े हो चले हैं

deepawali (4)

हज़ल के रूप में लिखी गई सुंदर ग़ज़ल। मतले में तीखा कटाक्ष बाज़ारवाद पर किया गया है। उसके बाद एक बार फिर से बाज़ारवाद पर कटाक्ष करता हुआ शेर है जिसमें बच्चों के ‌खिलौने चुनने पर पिता के बटुए का बीपी बढ़ने के बात कही गई है। बहुत ही अच्छा शेर। पिता की पीड़ा पिता हुए बिना नहीं जानी जा सकती। कहाँ थूकें भला अब पान खाकर में हमारी मनोवृत्ति पर अच्छा व्यंगय कसा गया है। ज्यादा सज धज हमें परेशान कर देती है कि अब हम कचरा कहाँ फेंकेंगे। बाद के दो शेर विशुद्ध हास्य के शेर हैं। बहुत अच्छे। कमरे में नवासों द्वारा आमों को खोजा जाना मुझे बहुत कुछ याद दिला गया। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह।

deepawali[4]

ANSHUL TIEARI

अंशुल तिवारी

deepawali (1)[4]

अंधेरे रोशनी में घुल रहे हैं,
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं।

ख़ुशी बिखरी है चारों ओर देखो,
दर-ओ-दीवार में गुल खिल रहे हैं।

दीवाली साथ में ले आई सबको,
पुराने यार फिर से मिल रहे हैं।

मोहल्ले में मिठाई बँट रही है,
गली में भी पटाखे चल रहे हैं।

सभी आँखों में रौनक़ छा रही है,
सुहाने ख़्वाब जैसे पल रहे हैं।

भुलाए ज़ात, मज़हब, नफ़रतों को,
मिलाए हाथ इंसाँ चल रहे हैं।

ये मंज़र देख, दिल को है तसल्ली,
हरेक आँगन में दीपक जल रहे हैं।

deepawali (4)[4]

अंशुल के रूप में हमारे यहाँ अगली पीढ़ी ने दस्तक दी है अंशुल ने भी उसी तरह ग़़जल कही है जिस प्रकार नुसरत दी ने कही थी मतलब क़ाफ़िये को ज़रा पीछे खिसका कर। मतला ही बहुत सुंदर बना है। यह पूरी ग़ज़ल सकारात्मक ग़ज़ल है। असल में इस समय जितनी नकारात्मकता हमारे समय में घुली हुई है उसमें हमें इसी प्रकार के सकारात्मक साहित्य की आवश्यकता है। दीवाली साथ में ले आई सबको पुराने यारों का फिर से मिलना यही तो दीवाली का मूल स्वर है। भुलाए ज़ात मज़हब नफ़रतों को मिलाए हाथ इन्साँ चल रहे हैं, यह शेर नहीं है बल्कि एक दुआ है, हम सबको एक स्वप्न है जो शायद कभी पूरा हो आमीन। और अंत का शेर शायर के साथ हम सबको भी तसल्ली देता है कि हरेक आँगन में दीपक जल रहे हैं अभी समय बहुत खराब नहीं हुआ। सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali[4]

Gurpreet singh

गुरप्रीत सिंह

deepawali (1)[4] 

उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
अंधेरे दुम दबा के भाग उठे हैं

हुई सीने पे बारिश आँसुओं की
तो शिकवे दिल के सारे धुल गए हैं

उजाले में जिसे खोया था हमने
अंधेरे में अब उसको ढूंढते हैं

चलो करते हैं दिल की बात दिल से
चलो चुप चाप कुछ पल बैठते हैं

ये माना ज़िंदगी इक गीत है तो
ये मानो लोग कितने बेसुरे हैं

deepawali (4)[4]

गुरप्रीत का यह दूसरा प्रयास है। गुरप्रीत ने इस ब्लॉग की पुरानी पोस्टों से ग़ज़ल कहना सीखा है। हुई सीने पे बारिश आँसुओं की तो शिकवे दिल के सारे धुल गए हैं में प्रेम का बहुत जाना हुआ और भीगा हुआ रूप सामने आ रहा है। उसके बाद का शेर एकदम चौंका देता है उजाले में जिसे खोया था हमने, अँधेरे में अब उसको ढूँढ़ते हैं में एकदम से बड़ी बात कह डाली है। तसल्ली होती है कि ग़ज़ल की अगली पीढ़ी कहने में ठीक हस्तक्षेप कर रही है। अगले शेर में दिल की बात दिल से करने के लिए चुपचाप बैठने की बात भी बहुत सुंदर कहन के साथ सामने आई है। और अंत का शेर भी बहुत खूब बन पड़ा है। जिंदगी का गीत होना और लोगों का बेसुरा होना। बहुत अच्छी बात कही गई है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।

deepawali[4]

तो मित्रों ये हैं आज की तीनों ग़ज़लें, तीन युवाओं का प्रभावी हस्तक्षेप। इसके बाद एक और पोस्ट आएगी जिसमें दो बुज़ुर्ग शायर अपनी ग़ज़लें ला रहे हैं और उसके बाद चिर युवा कवि भभ्‍भड़ कवि भौंचक्के यदि मेरे करण अर्जुन आएँगे की तर्ज पर आ पाए तो आकर समापन करेंगे। लेकिन आज तो आपको इन युवाओं को जी भर कर दाद देना है कि ये हमारे ध्वज वाहक हैं आगे के सफ़र में।

deepawali (4)[4]


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