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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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अभिनव शुक्‍ल, धर्मेंद्र कुमार सिंह और सौरभ शेखर के साथ हम आज से प्रारंभ कर रहे हैं दीपावली का तरही मुशायरा ।

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दीपावली आ ही गई है । रौशनी का पर्व । जिसे ठीक उस दिन ही मनाया जाता है जिस रात अमावस होती है । हम सब जीवन भर अंधेरे से एक लड़ाई लड़ते रहते हैं । कभी ये अंधेरा जीतता हुआ नज़र आता है तो कभी हम उससे जीतते हुए नज़र आते हैं । पिछले दिनों एक राजनेता के किसी बयान पर जिसमें एक नायक और खलनायक की तुलना की गई थी काफी बवाल  हुआ । दरअसल उक्‍त राजनेता बात को ग़लत तरीके से बोल गये थे । आई क्‍यू के स्‍थान पर बात होती है सकारात्‍मक और नकारात्‍मक ऊर्जा की ।  सकारात्‍मक ऊर्जा जो प्रतीक होती है रौशनी का, उजाले का, प्रकाश का । नकारात्‍मक ऊर्जा जो प्रतीक होती है अंधकार का, तम का । तो बात वही है कि आप अपने अंदर की कौन सी ऊर्जा का पोषण कर रहे हैं । हमारे पूर्वज कह कर गये हैं कि 'जैसा खाओगे अन, वैसा होगा मन' । इसी बात का विस्‍तार दिया जाये तो मेरे विचार में हम जो कुछ पढ़ते हैं, सुनते हैं देखते हैं उसका ही हम पर सबसे ज्‍यादा असर होता है । और उसी के कारण हमारे अंदर की सकारात्‍मक या नकारात्‍मक ऊर्जा का पोषण होता है । और उसी के चलते हममें से कोई गांधी या विवेकानंद बन जाता है तो कोई हिटलर । बात आई क्‍यू की नहीं है बात है सकारात्‍मक या नकारात्‍मक ऊर्जा की । और उसीके चलते हम अपनी तरह की ऊर्जा वालों के साथ एक जुड़ाव महसूस करते हैं । आइये इस दीपावली अपने अंदर की सकारात्‍मक ऊर्जा को और बढ़ाएं और अपने अंदर के प्रकाश को मजबूत करें ।

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घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

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आज तीन शायरों के साथ हम शुरूआत कर रहे हैं । तीन के साथ इसलिये क्‍योंकि जितनी ग़ज़लें प्राप्‍त हुई हैं उस हिसाब से हम तीन तीन को लेकर भी दीपावली तक चल सकते हैं । आज दीपावली के तरही की शुरूआत कर रहे हैं अभिनव शुक्‍ल, धर्मेंद्र कुमार सिंह और सौरभ शेखर। तीनों की ग़ज़लें अपने अपने रंग में हैं और विभिन्‍न भावों को समेटे हैं । तो आइये सुनते हैं तीनों की ग़ज़लें ।

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह

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हजार बार हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
सपाट गर लिलार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

बस एक दीप चाहिए बना रहे जो राहबर
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

बहू तो लाइए जरा, सुनेगा फिर न आपकी
सपूत होनहार हो तो हो रहे तो हो रहे

न आँख मूँद कर कभी किसी को मानिए खुदा
कोई युगावतार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

लगाइए, निराइए, फसल जहाँ में प्यार की
भविष्य में तुषार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

विजय समय की बात है जो मित्र मेरे साथ हों
रकीब होशियार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

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बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है । मतला ठीक प्रकार से गढ़ा गया है । इस बार का मिसरा ज़रा सी चूक से हिंदी का वाक्‍य दोष बनने की संभावना लिये हुए है । इस बात का इस ग़ज़ल में बहुत ध्‍यान रखा गया है । न आंख मूंद कर कभी, में एक बहुत सामयिक विषय पर इशारों में बात कर दी गई जो प्रभावी बन पड़ी है । गिरह का शेर भी भली प्रकार से बांधा गया है दीपक को राहबर बना कर अंधेरे से लड़ने की बात को खूब गूंथा है । आखिरी शेर भी सुंदर है । वाह वाह वाह, खूब आगाज़ है मुशायरे का ।

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अभिनव शुक्‍ल

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जो मेघ पर मल्हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे,
नदी की तेज़ धार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

ये कोई कम नहीं हमारा हौसला बुलंद है,
कमीज़ तार तार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

अब उल्लुओं से और क्या निज़ाम चाहते हो तुम,
घना जो अन्धकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

जमाई जी तो खा चुके हैं जम के खीर पूड़ियाँ,
जो सास पर उधार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

हमारे तुम, तुम्हारे हम, तुम्हारे हम, हमारे तुम,
इसी का नाम प्यार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

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वाह अब उल्‍लुओं से और क्‍या निज़ाम वाले शेर में कमाल कमाल गिरह बांधी है, मन खुश हो गया । गिरह का मिसरा सानी एकदम बरस कर आ रहा है । कमाल गिरह । झकझोर देने वाला शेर, बहुत आगे जाने वाला शेर । प्‍यार की परिभाषा को अंतिम शेर में बखूबी व्‍यक्‍त किया गया है । और कमीज़ तार तार में मिसरा उला में वाक्‍य का गठन प्रभावी बन पड़ा है । वही सहजता जिसकी बात हम पिछली पोस्‍ट में कर चुके हैं । बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है वाह वाह वाह ।

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सौरभ शेखर

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बदी का कोहसार है, तो हो रहे,तो हो रहे
सफ़र तवील यार है, तो हो रहे,तो हो रहे

न कम हुआ जुनूँ अभी, न हौसला हुआ है कम
शदीद इन्तिशार है, तो हो रहे,तो हो रहे

लिखा तो जायेगा हमारा नाम जंगजूओं में
अगर हमारी हार है, तो हो रहे,तो हो रहे

अकेली लौ चिराग की बहुत है इसके वास्ते
'घना जो अन्धकार है, तो हो रहे,तो हो रहे'

मुहब्बतें तो खुशबुओं की तर्ह फ़ैल जाएँगी
अना का गर हिसार है, तो हो रहे,तो हो रहे।

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मतला ही शुरू में अपनी ओर खींच रहा है बदी के कोहसार के साथ सफर के तवील होने की बात का बहुत सुदंरता के साथ जोड़ा है । सौरभ ने 'हो' के स्‍थान पर 'है' को बांधा है । गिरह का शेर खूब बन पड़ा है । अकेली लौ चराग़ की बहुत है इसके वास्‍ते, में जो ललकार है वो कई कई प्रश्‍नों के उत्‍तर समेटे हुए है । और जो शेर बाकमाल बना है वो है लिखा तो जायेगा हमारा नाम जंगजुओं में । ये शेर लम्‍बी दूरी का घोड़ा है । खेल भावना को भली प्रकार से अभिव्‍यक्‍त करता हुआ । वाह वाह वाह ।

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तो आज तीनों शायरों ने रंग जमा दिया है । शानदार आगाज़ किया है मुशायरे का । कमाल कमाल के शेर कहे हैं । जितने कमाल शेर हैं उतनी ही दाद दी जाये । आनंद लीजिये तीनों ग़ज़लों का और मन से दीजिये दाद । कल मिलते हैं कुछ और शायरों के साथ ।

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