इन दिनों कुछ व्यस्तता वाले हाल में हूं । लेकिन इस व्यस्तता वाले हाल में से ही एक किरण उजाले की फूटने की प्रतीक्षा कर रही है । उन अंधेरों को चीर कर जो पिछले कई सालों से भयाक्रांत किये हुए हैं । चूंकि कहावत भी है कि जब सुब्ह होने को हो तो अंधेरा और घना हो जाता है । तो बस उसी समय से गुज़र रहा हूं । इसलिये कहीं तरही में कुछ ग़लत लिखा जाए, जो कुछ लापरवाही हो जाए तो क्षमा कीजियेगा क्योंकि दिमाग़ कहीं और है । आज उसी के कारण भूमिका भी अनुपस्थित हो रही है ।
''ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की अता है''
आइये आज सुनते हैं आज दो रचनाकारों को । उम्र के दो अलग अलग पड़ावों पर खड़े रचनाकार । आदरणीय नीरज गोस्वामी जी और अनन्या 'हिमांशी' । अनन्या ने ये ग़ज़ल किसी भीषण संत्रास से गुज़रते हुए समय में लिखी है । किसी गहन दुख के क्षणों में ।
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी
ये कैदे बा-मशक्क्त जो तूने की अता है
मंज़ूर है मुझे पर, किस जुर्म की सजा है ?
ये रहनुमा किसी के दम पर खड़ा हुआ है
जिसको समझ रहे थे हर मर्ज़ की दवा है
नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे
असली अदीब बैठा ताली बजा रहा है
इस दौर में उसी को सब सरफिरा कहेंगे
जो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है
रोटी नहीं हवस है, जिसकी वजह से इंसां
इंसानियत भुला कर वहशी बना हुआ है
मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
गाते सभी है इनको, किसने मगर गुना है
आभास हो रहा है हलकी सी रौशनी का
उम्मीद का सितारा धुंधला कहीं उगा है
हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?
सबसे पहले बात हुस्ने मतला की । ये रहनुमा किस के दम पर खड़ा हुआ है, क्या बारीक और तेज़ व्यंग्य है ऐसा पैनापन कि लगे तो उतरता चला जाए । बहुत खूब । नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे, खूब खूब ये शेर हो सकता है इन दिनों हिंदी साहित्य में जो कुछ चल रहा है उसके चलते वहां लोकप्रिय हो जाए । असली अदीब बैठा ताली बजा रहा है । अरे वाह जो कुछ मैंने ऊपर भूमिका में कहा उसको ही शब्द प्रदान करता हुआ शेर आ गया है आभास हो रहा है हल्की सी रौशनी का, इसे कहते हैं मन की भावना को शब्द मिल जाना । मीरा कबीर और तुलसी को गुनने का शेर भी सुंदर बन पड़ा है । और पिछले अंक की भूमिका को सार्थक करता हुआ मकता तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है । अहा अहा । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
अनन्या 'हिमांशी'
अनन्या ने ये ग़ज़ल अपनी बुआ की पुण्य स्मृति को समर्पित की है, जिनको हमने भी ये मुशायरा समर्पित किया हुआ है ।
बर्बादी का ये मंज़र जिसने मुझे दिया है,
वो नाम है दगा का, किस बात का खुदा है.
कोई न जुर्म मेरा फिर भी निभा रही हूं,
ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की आता है.
यूँ प्यार से सजा के रिश्तों को छीन लेना,
बेरब्त ये हुकूमत, बेरब्त फ़ैसला है.
ख्वाबो मे उसके आ के आवाज़ दी जो तूने,
फिर सुब्ह से वो हर सू तुझको ही ढूंढता है.
जख़्मो को कुछ दबा के, हौले से मुस्कुराना,
फिर तेरा फुसफुसाना, कुछ दिन से लापता है.
सारे जहां को रोशन करती 'किरण' अमर है,
उद्घोष आज तेरा संसार कर रहा है.
सबसे पहले गिरह के शेर की बात । बहुत सुंदर गिरह बांधी है अनन्या ने । इस उम्र में इतनी परिपक्व गिरह बांधना भविष्य की कई संभावनाओं का प्रतीक है । ख्वाबों में उसके आके, ये दर्द का शेर है । दर्द किसी अपने को खो देने का । और उसको स्वप्न में देख कर सुबह तलाश करने का । यूं कि बस रात को तो वो था साथ ही । किसी अपने को खो देने की मानसिकता में ये ग़ज़ल कही गई है । दर्द अपनी पूरी शिद्दत से इसमें गूंज रहा है । मगर इस दर्द में एक प्रतिरोध भी है एक मुख़ालफत भी है, उस फैसले के प्रति जो एक तरफा सुनाया गया है । मतला भी उसी विरोध के स्वर में है और यूं प्यार से सजा के शेर भी । आखिरी शेर में अपनी बुआ के नाम को गूंथ कर उनके नाम से मकते का शेर बनाने का बहुत मर्म स्पर्शी प्रयास किया है । खूब बहुत खूब ग़ज़ल ।
तो दोनों ग़ज़लों को सुनिये और मन से दाद दीजिये ।