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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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तेरे ही आने वाले महफ़ूज 'कल' की ख़ातिर मैंने तो हाय अपना ये 'आज' दे दिया है, गौतम राजरिशी का कल जन्‍मदिवस है तो आज सुनिये गौतम की ग़ज़ल ।

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सबसे पहले बात होली के तरही मुशायरे की । ये मुशायरा होली के मुशायरे तक जारी रहेगा । जारी रहेगा मतलब ये कि  होली का मुशायरा 24, 25 और 26 मार्च को होगा । 27 को होली है सो हम होली के तीन दिन पहले ये आयोजन करेंगे । तो 24 तक ये ही मुशायरा चलेगा और उसके बाद तीन दिवसीय होली का मुशायरा । होली को लेकर जो मिसरा दिया जा रहा है वो ये है ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी

मिसरा समान बहर पर है जो चल रही है अर्थात 221-2122-221-2122 (मफऊलु-फाएलातुन-मफऊलु-फाएलातुन)  । इसमें क़ाफिया  भी वही है जो अभी चल रही तरही में  है अर्थात 'आ' की मात्रा ( हरा की आ की मात्रा ) । और रदीफ है 'गुलाबी' । तो होली के मुशायरे के लिये अपनी ग़ज़ल लिख भेजें ।

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कल यानि 10 मार्च को गौतम का जन्‍मदिन है, कल चूंकि रविवार है तो हम गौतम का जन्‍मदिन एक दिन पूर्व ही मना लेते हैं और आज की भूमिका में भी गौतम का पत्र ही लगाया जा रहा है । पत्र से पता चलता है कि ग़ज़ल किन विपरीत परिस्थितियों में लिखी और भेजी गई है ।

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जन्‍मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रिय गौतम

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गौतम राजरिशी

शायद ऐसा पहली बार हुआ होगा कि कोई ग़ज़ल पेन ड्राइव में तेरह हजार फुट से राशन सप्‍लाय करने आए हेलिकॉप्टर द्वारा भेज कर आपको मेल किया गया हो| तरही लिखते समय बहर की धुन पे गुनगुनाते हुये कई गीत आने लगे जुबान पर...जैसे "इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के"..."ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले रे"... "चीनू अरब हमारा हिंदोस्ता हमारा रहने को घर नहीं है सारा जहां हमारा"... "गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा" ..."ओ रात के मुसाफिर चन्दा ज़रा बता दे मेरा कसूर क्या है ये फैसला सुना दे"....
अठारह फीट बर्फ अभी ही जमा हो गई है और मौसम की भविष्यवाणी के हिसाब से ये पूरा महीना बर्फबारी है| ईनटरनेट की स्पीड 54 के बी पी एस पर कुथ कुथ के कोई पेज खुलता है| सामने दुश्मन तो शांत है फिलहाल है, लेकिन उसकी कसर प्रकृति पूरी तरह से निकाल रही है| नायक इंद्रजीत बहुत ही अच्छा सिपाही था मेरा| बर्फ निगल गई उसको... और मौत भी कैसी कि उसको शहादत में भी नहीं गिनी जाएगी| उसी की लड़ाई लड़ रहा हूँ दिल्ली से| उसकी मौत को शहादत का दर्जा दिलवाना ही है मुझे कि उसकी विधवा और दो छोटे बच्चों को कुछ फायदा हो| बहुत सारी बातें बतानी है आपको यहाँ के बारे में| लेकिन जाने ये मेल कब पहुंचेगा आप तक| मेरा दोस्त मेरे मेल के पासवर्ड से भेजेगा इसे| प्रकृति, मौसम और पड़ोसी के अलावा जो एक और दुश्मन है वो है अकेलापन... हालांकि इस अकेलेपन में एक बात तो ये हुई कि दो कहानियाँ लिख गया|  फिर जाने कब मौका मिले|  शेष सब कुशल ही है

आपका फौजी

उकसाने पर हवा के आँधी से भिड़ गया है
मेरे चराग का भी मुझ-सा ही हौसला है

रातों को जागता मैं, सोता नहीं है तू भी
तेरा शगल है, मेरा तो काम जागना है

साहिल पे दबदबा है माना तेरा ही तेरा
लेकिन मेरा तो रिश्ता, दरिया से प्यास का है

बारिश तो शहर में कल हर ओर थी बराबर
फिर लॉन तेरा ही क्यूँ सबसे हरा-भरा है

कब तक दबाये मुझको रक्खेगा हाशिये पर
मेरे वजूद से ही तेरा ये फलसफ़ा है

अम्बर की साज़िशों पर हर सिम्त खामुशी थी
धरती की एक उफ़ पर क्यूँ आया ज़लज़ला है

तेरे ही आने वाले महफ़ूज 'कल' की ख़ातिर
मैंने तो हाय अपना ये 'आज' दे दिया है

मेरी शहादतों पर इक चीख़ तक न उट्ठे
तेरी खरोंच पर भी चर्चा हुआ हुआ है

साँसों की हैं सलाखें, ज़ंजीर धड़कनों की
'ये क़ैदे-बामुशक्कत जो तूने की अता है'

मतले से शुरू करके आखिरी के शेर तक पूरी ग़ज़ल एक ही धुन में सिरफिरी हवा सी बावली होकर सनसना रही है । चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर खून को जमा देने वाली ठंड में ये ग़ज़ल लिखी गई है ।  ग़ज़ल में आक्रोश और पीड़ा रह रह कर अभिव्‍यक्‍त हो रही है । मतले में चराग के पास अपना हौसला होना गौतम के अपने रंग में कहीगई बात है । रातों को जागता मैं, शेर गहरे अर्थ को समेटे है । इसके बाद बात उन  दो शेरों की जिनमें आक्रोश मुखर होकर सामने आ रहाहै । तेरे ही आने वाले महफूज़ कल की खातिर, ये गहन पीड़ा का शेर है । चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर खड़े होकर अपना 'आज' दे रहे उस जज्‍बे को सलाम करने के अलावा और हम कर ही क्‍या सकते हैं । और अम्‍बर की साजिशों पर हर सिम्‍त खामुशी थी, में मानो उन सबका दर्द छलक गया है जो वहां सरहद पर खड़े होकर अपना मस्‍तक चढ़ा रहे हैं । उन सबको प्रणाम । और कह सकता हूं कि एक बहुत शानदार गिरह के साथ ग़ज़ल समाप्‍त होती है । अपने पीछे छूट गये सन्‍नाटे के साथ । बहुत प्रभावशाली ग़जल़ ।

तो गौतम को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं, सुनते रहिये ये ग़ज़ल और देते रहिये शुभकामनाओं के साथ साथ दाद भी ।


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