ईद मुबारक
ईद, कितनी यादें बसी हैं ईद को लेकर । यादें, बचपन के उस छोटे से घर में घर के दोनों तरफ रहने वाले पड़ोसियों की यादें । घर के इस तरफ दीवार से सटा हुआ नफ़ीसा सिस्टर का घर और घर की उस तरफ की दीवार से लगा ज़हीर हसन साहब का घर । हमारा बचपन अपने आंगन से ज़्यादा उन दोनों आंगनों में बीता । अस्पताल के उस कैम्पस ने ही शायद मुझे असली धर्म निरपेक्षता सिखाई । जहां हम बच्चों के लिये हिन्दू मुसलमान या ईसाई कोई नहीं होता था । दो घर छोड़ कर रहने वाली क्रिश्चियन सिस्टरों के घर हम क्रिसमस की रात भर हंगामा करते थे । ज़हीर हसन साहब गणेश उत्सव की झांकियों में कमाल की कारीगरी दिखाते थे । ऐसी कि देखने वाला दांतों तले उंगली दबा ले । सचमुच की आग में बैठी होलिका हो या उबलते कढ़ाव में बैठे विक्रमादित्य, ये झांकियां उनके ही हुनर का कमाल होती थीं। उनकी बेटियां गणेश उत्सव की झांकियों में राधा और सीता बनती थीं । ईद पर हम सब बच्चे नये कपड़े पहनते थे । सबको ईदी मिलती थी । तब त्यौहार किसी एक धर्म के नहीं होते थे । आपको लग रहा होगा कि मैं कुछ ज़्यादा ही कह रहा हूं । लेकिन यदि आपने अस्सी के दशक का भारत देखा हो तो वो ऐसा ही था । ज़हीर हसन साहब और नफ़ीसा सिस्टर दोनों ही अब तो दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें मेरे दिल में हैं । हमेशा रहेंगीं । शहर छोड़ देने के बरसों बाद तक भी हर ईद पर सेवईं से भरा कटोरा जो नफ़ीसा सिस्टर के यहां से आता था वो अब कहां । इन्सान भोज्य पदार्थ नहीं खाता है बल्कि प्रेम का स्वाद लेता है, वरना मिलने को बाज़ारों में ऐसा क्या है जो नहीं मिलता, बस प्रेम को छोड़कर ।
अल्लाह मेरे मुल्क में अम्नो अमां रहे
अल्लाह सारे विश्व में अम्नो अमां रहे
आइये अब ईद को लेकर अपनी निशस्त शुरू करते हैं । पहले इसे एक ही दिन के लिये घोषित किया था किन्तु जिस प्रकार से कम समय में लोगों ने ग़ज़लें तैयार करके भेजीं उससे दिल गार्डन गार्डन हो गया (ये श्री रमेश हठीला का डॉयलाग है किसी फिल्म का गाना नहीं ) । और आज से ही हम निशस्त की शुरूआत कर रहे हैं । चूंकि कम समय में तैयार ग़ज़लें हैं इसलिये भावनाओं को ही देखा जाये, यदि बहर आदि की कोई समस्या हो तो उसे त्यौहार की खुशी में भुला दिया जाये । आज यदि चांद दिख जाता है तो कल ईद होगी तथा यदि ऐसा नहीं होता है तो सोमवार को तो ईद तय है । तो चांद की खुशी में आज की निशस्त और ईद की खुशी में अगली । ईद का चांद दिख जाना भी तो बड़ी खुशी है ।
एक बात पहले ही वो ये कि आज ब्लाग की साज सज्जा के चलते संचालक थक गये हैं तो आज दाद देने का काम श्रोताओं को ही करना है । तो शुरू करते हैं उस अल्लाह के नाम से ईद की ये निशस्त 'बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम'
इस बार की ईद के साथ 15 अगस्त भी जुड़ा है । एक रोचक तथ्य ये है कि 15 अगस्त 1947 को भी रमज़ान ही चल रहे थे और 15 अगस्त 1947 को भी रमज़ान की 24 वीं तारीख़ थी तथा 15 अगस्त 2012 को भी रमज़ान की 24 वीं तारीख़ थी । तो इस बार स्वतंत्रता दिवस के साथ ईद की दोहरी खुशियां हैं जो ग़ज़लों में देखने को मिली हैं ।
स्वतंत्रता दिवस की मंगल कामनाएं
आदरणीया देवी नागरानी जी
रहमत तेरी हरेक पे रब बेकराँ रहे
अल्लाह मेरे मुल्क में अम्नो-अम्माँ रहे
महफ़ूज हर बला से मेरा आशियाँ रहे
फटके न पास दूर ही बर्के-तपाँ रहे
चाहे जबाँ पे लाख तेरी बन्दिशें लगें
खामोश लब यहाँ हों तो चर्चा वहाँ रहे
दिन में हो धूप छाँव तो तारों भरी हो रात
देवी यूं झिलमिलाता हुआ आसमाँ रहे
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है । बहुत सुंदर मतला है । हरेक शेर दुआओं से भरा हुआ है । बहुत खूब ।
धरती पे आग हो न गगन में धुआँ रहे
सबके दिलों में प्रेम का उजला मकाँ रहे
हम चार साल बाद ही मंगल पे जाएँ पर
अल्लाह मेरे मुल्क में अम्नो अमाँ रहे
बहुत सुंदर मुक्तक कहा है सच कहा चांद पर जाने से पहले यहां धरती को रहने लायक बनाना ज्यादा ज़ुरूरी है ।
दिगंबार नासवा
हम तुम रहें सदा ये ज़मीं आसमाँ रहे
महके बयार और महकती फिजाँ रहे
मैं कहकहों की खान लुटाता रहूँ सदा
गुज़रूँ जहाँ से रात सुहानी वहाँ रहे
फिर से चमक उठे न ये शमशीर खौफ़ की
महफूज़ हर बला से मेरा गुलसिताँ रहे
ज़ुल्मों सितम फरेब न महसूस हो कहीं
अल्लाह मेरे मुल्क में अमनों अमाँ रहे
इस ईद में मिटेंगे सभी बैर आपसी
इफ्तार में जो कृष्ण मुहम्मद यहाँ रहे
बहुत सुंदर ग़ज़ल । मतला से शुरू होकर हर शेर अपनी ज़बानी खुद ही कह रहा है । बहुत अच्छे शेर कहे हैं । खूब । बस एक छोटी सी बात की तरफ ध्यान खींचना चाहूंगा और वो ये कि असली शब्द 'फि़ज़ा' है 'फिज़ां' नहीं है । अर्थात चंद्रबिंदु नहीं है ।
श्री गिरीश पंकज जी
बाकी न दर्द का यहाँ कोई निशाँ रहे
ज़न्नत रहे कदमों के तले तू जहाँ रहे
दुश्मन भी है तो क्या हुआ उससे गले मिलो
ये ईद है मोहब्बतों का ये मकां रहे
हर दिन हो ईद की तरह दिल से यही दुआ
महके ये कायनात खिला गुलसिताँ रहे
अपनी है आरजू यही करते हैं बस दुआ
'अल्लायह मेरे मुल्कु में अम्नोँ अमाँ रहे''
है चार दिन की ज़िंदगी ये सोच कर चलें
अच्छे-बड़े नवाब भी ज्यादा कहाँ रहे
क्यों लड़ रहे हैं लोग रहे प्यार से जहाँ
हर मुल्क रहे और ये हिन्दोस्ताँ रहे
है दूर नहीं तू मेरा दिल है तेरा मकां
हो तू कहीं भी चाहे मगर तू यहाँ रहें
बहुत खूब क्या ग़ज़ल कही है । उस दो जहान के मालिक से जो मांगना है वो सब अपनी ग़जल़ में अभिव्यक्त कर दिया है । बहुत सुंदर ।
श्री निर्मल सिद्धू
अल्लाह मेरे मुल्क़ में अमनो अमां रहे,
माहौल ख़ुशगवार हो महकी फ़िज़ां रहे,
मेरे चमन में फूल खिले नौ बहार के,
ख़ुशियों में झूमता ये मेरा आशियां रहे,
मिल साथ य़ूं चले कि जुदा हों न हम कभी
दुनिया में काम वो करें अपना निशां रहे,
तहज़ीब हो सुलूक हो कुछ भी हो चाहे पर,
दुनिया में नाम बस एक हिन्दोस्तां रहे,
बदले निज़ाम दूर हो सब ख़ामियां वहाँ,
ख़ुशबू से प्यार की महकता गुलिस्तां रहे,
ग़ुरबत हो ख़त्म और सियासत हो साफ़ गर,
समझो गली गली फिर जन्नत वहां रहे,
त्योहार यूं मनायें कि कोई फ़र्क न हो,
निर्मल हो कि नईम मुहब्बत जवां रहे,
अहा क्या शेर कहें हैं । सचमुच यदि इस प्रकार से ही अमल हो जाये तो हमारा ये देश क्या पूरा विश्व ही जन्नत हो जाये । बहुत खूब ।
श्री विनोद पांडेय
जब तक ज़मीं रहे ये खुला आसमाँ रहे
उससे कहीं जियादा ये हिंदोस्ताँ रहे
खुश्बू-ए-मोहब्बत से गुलजार है चमन
है चाहते खुदा भी कि आकर यहाँ रहे
आपस में रहे प्यार तरक्की करें सभी
अल्लाह मेरे मुल्क में अम्नो अमाँ रहे
बहुत सुंदर बात कही है । प्रेम और भाईचारा ही तो वो है जो दिलों में रौशनी भरता है । सब एक रहें सब नेक रहें ।
रजनी नैय्यर मल्होत्रा जी
अल्लाह मेरे मुल्का में अम्नो अमाँ रहे
रंगों भरी ज़मीं हो खुला आसमां रहे
हर दिन हो ईद, रात दिवाली की हों सभी
हिंदोस्तां पे रब वो यूं ही मेहरबाँ रहे
झुक कर करे सलाम ये सारा जहां इसे
दुनिया में सबसे ऊंचा ये हिन्दोस्तां रहे
दुनिया को दिया अम्न का पैग़ाम हमीं ने
उस रौशनी में चलता सदा कारवां रहे
हिन्दू, मुसलमां सिक्ख, इसाई हों बोध हों
हर रंग से सजा ये मेरा गुलिस्ताँ रहे
बहुत सुंदर कहा है । भावनाएं सुंदर हैं । और आज तो हम वैसे भी भावनाओं को ही देख रहे हैं । बहुत अच्छी भावनाएं हैं । सुंदर ।
तो देते रहिये दाद और आनंद लीजिये ग़ज़लों का । और इंतज़ार कीजिये चांद का ।