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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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आइये आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीन शायरों श्री तिलक राज कपूर, श्री शाहिद मिर्जा शाहिद और अभिनव शुक्‍ल के साथ

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जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि इस बार के तरही मुशायरे में ग़ज़लें बहुत कोमल भावों के साथ आ रही हैं। हालांकि सोई हुई रदीफ के साथ बहुत सी बातें कही जा सकती हैं। मगर फिर भी चूंकि मिसरा कोमलकांत है इसलिये ग़ज़लें भी उसी अनुसार आ रही हैं। कोमलता काव्‍य का वो गुण है जो श्रोता के मन में रस की उत्‍पत्ति करता है। श्रोता के अंदर जो कुछ भी मृदुल है कोमल है उसे ये काव्‍य कोमलता अपने रेशम से जाकर छूती है जगाती है। और उसे अपने साथ एक दूसरे संसार में ले जाती है। जहां चारों तरफ मोर के पंख, गुलाब की पंखुरियां, सेमल की रूई के स्‍पर्श को आमंत्रण बिछा होता है। यह आमंत्रण बरबस खींच ले जाता है उस दुनिया में। और जब श्रोता वहां वाह वाह कर रहा होता है तो वो दिमाग से नहीं दिल से कर रहा होता है। उस तो पता ही नहीं होता है कि वो कब वाह वाह कर उठता है। वह सम्‍मोहन में होता है। यह सम्‍मोहन ही किसी कव‍ि की सबसे बड़ी सफलता होती है। यदि कोई कवि अपने शब्‍दों के, अपने भावों के, अपने विचारों के सम्‍मोहन से ( गायन के सम्‍मोहन से नहीं) श्रोता को मंत्रमुग्‍ध कर देता है तो उसकी कविता सफल और सुफल दोनों हो जाती है। जब वो अपनी कविता को बहुत अच्‍छे से गा कर मंत्रमुग्‍ध करता है तो यह समझना मुश्किल होता है कि श्रोता उसकी कविता के रस का आनंद ले रहा है या उसके गले का। मेरे विचार में कविता की परिभाषा कुछ यूं होनी चाहिये ''कविता, 'शब्‍दों'और 'विचारों'के सर्वश्रेष्‍ठ कॉम्बिनेशन से बनी हुई वो इकाई है जो अपनी अभिव्‍यक्ति के लिये अपने रचनाकार की ओर से किसी अतिरिक्‍त भूमिका, प्राक्‍कथन या पुरोवाक् की मांग नहीं करे।''

मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

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आइये आज मुशायरे को तीन शायरों के साथ मिलकर आगे बढ़ाते हैं। तीनों नाम चिर परिचित नाम हैं । और तीनों ही अपनी विशिष्‍ट शैली और अंदाज़ के कारण जाने जाते हैं और मुशायरे में इनका सबको इंतज़ार भी रहता है। तिलक राज कपूर जी, शाहिद मिर्जा शाहिद जी और अभिनव शुक्‍ल। ये तीनों ही इस मुशायरे और इस ब्‍लॉग के प्रारंभिक समय से इसके साथ हैं। हमने इन्‍हें जी भरकर सुना और सराहा है। आइये आज भी इनकी शानदार ग़ज़लें सुनते हैं।

Tilak Raj Kapoor

तिलक राज कपूर

पैंजनी पहने हुए नाज़ुक कली सोई हुई
मुग्ध मन देखा किया नन्ही परी सोई हुई।

मैं चुनौती बन गया हूँ, जानकर उसने कहा
आओ फिर से हम जगायें दोस्ती  सोई हुई।

मैं जगाने जब अलख निकला तो आया ये समझ
इक चुनौती है जगाना जिन्दगी सोई हुई।

एक परिभाषा नई धारे हुए मजहब मिला
घुप अंधेरे में है जिसके रोशनी सोई हुई।

क्या  हिफ़ाज़त की रखें उम्मीद इस माहौल से
हर तरफ़ देखी है जिसमें चौकसी सोई हुई।

गोप-गोपी आ गये पर, नृत्य कैसे हो शुरू
कृष्ण  के अधरों धरी है बांसुरी सोई हुई।

साथ में पुरुषार्थ लेकर वो सिकंदर हो गया
भाग्य में जिसके लकीरें थीं सभी सोई हुई।

ओस की इक बूँद देखी है अधर पर आपके
डर मुझे है उठ न जाये तिश्नगी सोई हुई

प्रस्फ़ुटित होने लगीं विद्रोह की चिंगारियॉं
कब तलक रहती कहो तुम बेबसी सोई हुई।

ज्यूँ शरद की पूर्णिमा की ओढ़नी हो ताज पर
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई।

मैं चुनौती बन गया हूं जानकर उसने कहा, सबसे पहले बात इसी शेर की हो। कितने सलीके से बात को कहा गया है। ग़ज़ल का एक और सबसे बड़ा गुण सलीक़ा इस शेर में उभर के सामने आ रहा है। वाह क्‍या बात है। और एक और शेर है कृष्‍ण के अधरों पर धरी बांसुरी का सोया होने वाला। यह शेर जाने कहां कहां की यात्रा करता हुआ गुज़र रहा है। वह बांसुरी एक प्रतीक बनकर मानो हर सोए हुए के पीछे के कारण को इंगित कर रही है। वाह वाह । एक बहुत ही कोमल शेर इसमें बना है ओस की इक बूंद वाला शेर, इसकी नफ़ासत और नाज़ुकी पर निसार होने को जी चाह रहा है। कमाल का बिम्‍ब रचा है । प्रेम के सातवें आसमान का बिम्‍ब। और उसी अनुसार रचा गया है आखिरी का गिरह का शेर । ताजमहल को मोगरे के फूल के समानांतर स्‍थापित कर सुंदर प्रयोग किया गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह।

shahid-11

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

दर्द ए दिल जागा हुआ और हर ख़ुशी सोई हुई
गोद में हालात के है ज़िंदगी सोई हुई

अब जहां बारूद है मासूम खेतों में वहां
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

देखकर मंज़र अंधेरे भी बहुत हैरान हैं
इस चरागों के नगर में रोशनी सोई हुई

ऐ घटा उम्मीद की, अबके बरस कुछ तो बरस
सूखे दरिया में जगा दे तश्नगी सोई हुई

धुंध में मायू्सियों की क्या करे सूरज भला
रोशनी की है यहां उम्मीद भी सोई हुई

आज भी ’वो तोड़ती पत्थर’ अजब तकदीर है
उसकी मंज़िल थम गई है, राह भी सोई हुई

रंग पल-पल में बदलती रहती है ये उम्र भर
है अभी जागी हुई क़िस्मत अभी सोई हुई

गर्मजोशी की ज़रूरत जब हुई शाहिद मुझे
सर्द रिश्तों सी मिली है दोस्ती सोई हुई

सबसे पहले बात करते हैं गिरह के शेर की । बिल्‍कुल अलग तरह से गिरह लगाई गई है। अलग भावों के साथ। इसे ही कहते हैं कन्‍ट्रास्‍ट गिरह। मोगरे के फूल और चांदनी के बीच भी सामाजिक सरोकारों को याद रखने के कवि धर्म को निभाया गया है। बहुत खूब। और अगले ही शेर में अंधेरों की हैरानगी की बात बहुत उम्‍दा तरीके से कही गई है। और कोई नहीं स्‍वयं अंधेरे ही हैरान हैं रोशनी के सोए होने पर । वाह क्‍या बात है। जब भी कोई रचनाकार अपने पूर्वज रचनाकार के यहां से कोई बिम्‍ब उठाता है तो उसके ऊपर बड़ा दबाव होता है जैसा कि शाहिद जी ने निराला जी की तोड़ती पत्‍थर से बिम्‍ब लेकर किया है। लेकिन बहुत कुशलता से उस दायित्‍व को निभा भी दिया है। और मकते को शेर भी अलग मिज़ाज का शेर है। आज की दोस्‍ती को परिभाषित करता। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

abhinav

अभिनव शुक्‍ल

आशिकी की बांह थामे शायरी सोई हुयी,
मैंने अपने घर में देखी रोशनी सोई हुयी,

कर के पोंछा और बासन, चूल्हा चौका पाट के,
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुयी,

रतजगा था जुगनुओं की भीड़ में जागा हुआ,
यामिनी की गोद में थी दामिनी सोई हुयी,

एक लोरी गुनगुनाई थी कभी उसने इधर,
इस गली में है अभी तक रागिनी सोई हुयी,

धीरे बोलो, कोई खटका न करो तुम इस तरफ,
देर तक जागी थी मेरी ज़िन्दगी सोई हुयी।

सबसे पहले तो यह कि अभिनव को बधाई, उसके आने वाले कविता संग्रह हेतु जो कि शिवना प्रकाशन से विश्‍व पुस्‍तक में लांच होने जा रहा है। काव्‍य संग्रह का नाम है ''हम भी वापस जाएंगे''। कर के पोंछा और बासन, चूल्‍हा चौका पाट के, में ज़बरदस्‍त गिरह लगी है, कमाल की गिरह, स्‍तब्‍ध कर देने वाली गिरह। मैं बहुत देर तक बिम्‍ब को अपने दिमाग में रचता रहा मिटाता रहा । मोगरे का फूल कौन और चांदनी कौन है। बहुत खोलना नहीं चाहता लेकिन जब आप भी उस विचार तक पहुंचेंगे तो आपको भी आनंद आएगा। कमाल की गिरह है। क्‍या इस तरीके से भी गिरह लगाई जा सकती है। वाह क्‍या बात है। मैं वैसे तो गिरह के शेर के अलावा किसी और शेर की बात करना ही नहीं चाहता। लेकिन लोरी गा कर गली की रागिनी के सोने का शेर भी सुंदर बन पड़ा है। वाह वाह क्‍या बात है। कमाल की गिरह कमाल की ग़ज़ल ।

तो आनंद लेते रहिये इन तीनों ग़ज़लों का और दाद देते रहिये । तीनों शानदार ग़ज़लों का । मिलते हैं अगले अंक में कुछ और रचनाकारों के साथ।


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