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Channel: सुबीर संवाद सेवा
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लगभग दो माह की चुप्‍पी के बाद आज त्‍यौहारों के मौसम के ठीक पहले दिन आने वाली तरही की चर्चा ।

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नवरात्री पर्व की मंगलकामनाएं

ब्‍लाग को लेकर कुछ लोग कहते हैं कि फेसबुक आने के बाद ब्‍लॉग का क्रेज कम हो गया है । कुछ लोग कहते हैं कि अब ब्‍लॉग ख़त्‍म हो रहा है । लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि अभिव्‍यक्ति का सबसे अच्‍छा माध्‍यम यदि इंटरनेट पर कोई है तो वो ब्‍लॉग ही है । एक ऐसा स्‍थान जहां आप कम से कम अपने नियंत्रण में चीज़ों को रख सकते हैं । जहां समान रुचियों वाले लोग एकत्र होकर सार्थक चर्चा कर सकते हैं । फेसबुक और ब्‍लॉग में बहुत अंतर है । मैं फेसबुक को एक 'अराजक उगालदान' कहता हूं । यह टर्म पिछले दिनों कही किसी भाषण में दी थी । कुछ लोगों को ये परिभाषा पसंद नहीं आई । मेरा ऐसा मानना है कि फेसबुक पर गंभीर चर्चा नहीं हो सकती । उसके लिये आपको ब्‍लॉग पर ही आना होगा । फेसबुक तो उन्‍हीं बातों के लिये ठीक है जैसे 'आज मेरे बच्‍चे का जन्‍मदिन है बधाई दीजिये' या 'आज मेरे बेटे ने 90 प्रतिशत में परीक्षा पास की बधाई दीजिये' या बिना मतलब के इमोशनल मैसेज जिनको पढ़कर लोग तुरंत कमेंट्स करें ।खैर ये तो लम्‍बी चर्चा है जिसका कोई अंत नहीं है । चर्चा को यहीं विराम देते हैं इस वाक्‍य के साथ कि 'फेसबुक पश्चिमी संगीत है जिसे सुनकर पैर हिलते हैं और ब्‍लॉग शास्‍त्रीय संगीत है जिसे सुनकर सिर हिलता है' ।

अगस्‍त और सितम्‍बर का मौन इस ब्‍लॉग पर अक्‍सर आता है । कारण क्‍या है कुछ पता नहीं लेकिन होता यही है । इस बार ये मौन कुछ अधिक लम्‍बा हो गया है । चुप्‍पी तोड़ने का सबसे अच्‍छा तरीका है कि एक धमाकेदार तरही का आयोजन किया जाये । धमाकेदार इसलिये कि वैसे भी ये तो दीपावली का, त्‍यौहारों का मौसम है । तो इससे अच्‍छा कोई काम हो नहीं सकता है ।

एक ऐसी बहर पर काम किया जाये जिसका रुक्‍न मुझे हमेशा से बहुत लुभाता है । जैसा डॉ आज़म ने अपनी पुस्‍तक आसान अरूज़ में भी लिखा है कि ये रुक्‍न शिव के डमरू से निकलने वाली ध्‍वनि से उत्‍पन्‍न हुआ है । डमड्-डमड् डमड्-डमड् । शिव तांडव स्‍तोत्र मुझे बचपन से ही अपनी ध्‍वनि के चलते लुभाता रहा । और फिर जब कुछ समझने लायक हुआ तो सबसे पहले इसी को याद किया । इसकी लय में जो आनंद है वह अकल्‍पनीय है । लय के साथ इसको पढ़ा जाये तो अंदर एक ऊर्जा सी पैदा होने लगती है । लघु और दीर्घ मात्राओं की एक के बाद एक आवृत्ति जिस प्रकार की तरंग दैर्ध्‍य को उत्‍पन्‍न करती है वह आत्‍मा की तरंग दैर्ध्‍य के साथ मिलकर अद्भुत बाइब्रेशन को जन्‍म देती है । वाइब्रेशन का ही तो खेल है सारा ।

बहरे हज़ज मूसमन मकबूज़

एक के बाद एक मफाएलुन की चार बार ध्‍वनियां । इस बहर को कई स्‍थानों पर उपयोग किया गया । अलग अलग रसों के साथ प्रयोग किया गया, किन्‍तु, मुझे ऐसा लगता है कि ये बहर सबसे अधिक मुफ़ीद है वीर या ओज रस के लिये । वीर रस की कविता को यदि इस पर लिखा जाता है तो वो लहर की तरह उठती गिरती है और श्रोता को आनंदित करती है । बहुत पहले एक कविता लिखी थी जो कि भारतीय सेना को समर्पित की थी । कारगिल के समय उसका एक दो स्‍थानों पर पाठ भी किया था । इच्‍छा है कि कभी सेना के जवानों के बीच उसका पाठ करूं । कुछ पंक्तियां इस प्रकार थीं ।

कहो  कि आंधियां यहां से मौत की हैं चल पड़ीं

हैं भारती के सैनिकों की टुकडि़यां निकल पड़ीं

वीर रस की कविता में भाव प्रधानता होती है । सो इसमें भी तत्‍कालीन भाव ही थे । जो कारगिल के समय पूरे देश के दिल में थे ।

ये तो हुई अपनी बात मगर इस बार मेरी इच्‍छा है कि ग़ज़लें कुछ अलग भाव भूमि पर हों । दीपावली की बात हो, मगर अंधकार से निर्णायक युद्ध की भी बात हो । कुछ अलग सा हो कुछ हट कर किया जाये । कर्नल गौतम राजरिशी की किसी ग़ज़ल (याद नहीं आ रहा कौन सी)  के मिसरे में से आधा टुकड़ा लेकर ये  मिसरा बनाया है । बहुत मुश्किल है ये जानता हूं । काफिये के साथ निभाना कुछ और मुश्किल है ये जानता हूं । किन्‍तु अब ये ब्‍लॉग पांच साल का हो चुका है । अब भी यदि हम सरल काम करेंगे तो ज़रा मज़ा नहीं आयेगा ।

घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

अब इसमें क्‍या है कि ये ग़ज़ल से ज्‍यादा गीत की संभावना लिये है । इसमें 'आर' की ध्‍वनि काफिया है और बाकी का सब रदीफ है । मतलब प्‍यार, धार, हार, तार, आदि आद‍ि । काफिये रदीफ के साथ्‍ा कुछ कम हो रहे हैं । क्‍योंकि रदीफ है 'हो, तो हो रहे, तो हो रहे' । ये मिसरा इस बार मेरे अंदर के वीर रस के कवि ने लिखवाया है । इससे हमारे तरही मुशायरों की मोनोटोनी भी टूटेगी । ग़ज़ल तो इस पर बहुत सुंदर बन रही है ये तो प्रयोग करके मैंने देख लिया है किन्‍तु यदि गीत लिखा जाये तो वो भी सुंदर बनेगा ।

बहरे हज़ज की मूल बहर और इसमें बस ये अंतर है कि एक दीर्घ को लघु किया गया है हर रुकन में । और देखिये किस प्रकार पूरी की पूरी ध्‍वनि ही बदल गई है । और इस बहर पर लिखा गया शहरयार साहब का वो रोंगटे खड़े कर देने वाला गीत 'ये क्‍या जगह है दोस्‍तों ये कौन सा दयार है ' । आपको नहीं लगता कि दिल चीज़ क्‍या है की जगह इस गाने को उमराव जान का नंबर वन गाना माना जाना चाहिये । ये वो गाना है जो न केवल सुनने में अच्‍छा लगता है बल्कि फिल्‍म में इसको देखना भी एक अलग ही अनुभव है । डाउन मेमारी लेन का इससे अच्‍छा कोई उदाहरण नहीं हो सकता । बुला रहा है कौन मुझको चिलमनों के उस तरफ । 

तो आने वाले समय अर्थात तरही के पहले के समय में हम कुछ प्रश्‍नों की चर्चा करेंगे जो श्री तिलक राज कपूर जी ने उठाये हैं एक ईमेल के माध्‍यम से । वे प्रश्‍न बहुत ही रोचक हैं तथा उनके उत्‍तर के माध्‍यम से हम कई बातों पर चर्चा करेंगे । तो उठाइये क़लम और हो जाइये शुरू एक सुंदर ग़ज़ल लिखिये और भेज दीजिये ।


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