होली है भइ होली है रंगों वाली होली है, रंगबिरंगी होली है। बुरा न मानो होली है, बुरा न मानो होली है। उल्लास, उमंग और तरंग लिए होली आपके द्वार पर आ खड़ी हुई है। आइये होली के रंग में हम सब डूब जाएँ और आज रंगमय हो जाएँ। सब परेशानियाँ भूल जाएँ, सारी रंज़िशें भुला दें और बस होली मय हो जाएँ। जो रंग हो वह बस होली का ही हो। बाकी सारे रंगों को अब कुछ दिनों के लिए भूल जाएँ हम।
आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में
आइए आज पाँच रचनाकारों के साथ मनाते हैं होली का पर्व आदरणीय तिलक राज कपूर जी, राकेश खंडेलवाल जी, अश्विनी रमेश जी, सुमित्रा शर्मा जी, मन्सूर अली हाश्मी जी और अनीता तहज़ीब जी के साथ।
तिलक राज कपूर
बंद अधरों में है अधखिले रंग में
एक नाज़ुक कली मदभरे रंग में।
शह्र डूबा कहूँ कौनसे रंग में
दिख रहे हैं सभी आपके रंग में।
श्याम के रँग डूबी हुई राधिका
क्या दिखा तू बता साँवले रंग में।
चाँद छत पर ठहर देखता ही रहा
चाँद आग़ोश में चांद के रंग में।
एक दुलहिन हथेली रचाते हिना
सोचती है सपन क्या भरे रंग में।
रास का अर्थ तुम भी समझ जाओगे
”आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में।”
तिलक जी की एक ग़ज़ल हम कल भी सुन चुके हैँ, यह दूसरी ग़ज़ल है उनकी। मतला ही मानों श्रंगार रस से सराबोर होकर लिखा गया है। घनघोर श्रंगार का मतला। और अगला हुस्ने मतला भी प्रेम की अलग कहानी कह रहा है। सारे शहर किसी एक के रँग में रंग जाए तो क्या कहा जाए फिर। प्रेम से आध्यात्म की ओर जाता हुआ अगला शेर जिसमें श्याम के रंग में डूबी हुई राधिका से कवि पूछ रहा है कि क्या रखा है भला साँवले रंग में, उधो याद आ गए इस शेर को पढ़ कर। हथेली पर हिना सजाती दुलहन की सोच कई अर्थ समेटे है आने वाले समय को लेकर अनिश्चितता के चलते। और अंतिम शेर में रास का अर्थ समझाने के लिए इश्क़ के रंग में रँगने का शेर ख़ूब बना है। बहुत सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।
राकेश खंडेलवाल
आई होली पे तरही नयी इस बरस
आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में
और मैं सोचता सोचता रह गया
भाई पंकज हैं डूबे लगा भंग में
कौन सी तुक है आई समझ में नहीं
आज टेपा यहाँ इश्क करने लगे
सूरतो हाल का रंग सारा उड़ा
और वे इश्क का रंग भरने लगे
अब तो नीरज के, पंकज के कुछ शेर ले
हम भी कह देंगे सब एक ही संग में
जब खुमारी उतर जायेगी, तब कहें
आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में
इश्क की बोतलें आई गुजतात से ?
या कि गंगा किनारे सिलों पर घुटी
इश्क हम तब करेंगे हमें दें प्रथाम
चार तोले की लाकर के शिव की बुटी
पास में अपने कोई ना चारा बचा
आजकल जेब भी है जरा तंगमय
होलियों का चढ़े थोड़ा महुआ तो फ़िर
आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में
अपने माथे पे हमने तिलक कर लिया
और सौरभ रखा टेसुओं का निकट
सज्जनों को दिगम्बर करे होलिका
सामने आ खड़ी है समस्या विकट
अश्विनी हो गई उत्तराफ़ाल्गुनी
आज पारुल भी, गुरप्रीत भी दंग हैं
और नुसरत ने ये मुस्कुरा कर कहा
आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में
राकेश जी का यह गीत हमारे ब्लॉग परिवार को ही समर्पित है। होली के रंग लेकर आए हैं वे सबको हास्य के रंग में सराबोर करने के लिए। यही शिष्ट और शालीन हास्य तो होली की विशेषता होती है कविता में। राकेश जी ने उस रंग से हम सबको सराबोर कर दिया है। मिसरा ए तरह से लेकर क़ाफिया तक सभी को लपेट लिए हैं राकेश जी। जोगीरा सारारारा की धुन पर राकेश जी ने नीरज जी, सौरभ जी, तिलक जी से लेकर युवाओं तक सभी को रँग में रंग दिया है। उनकी कलम से चली हुई पिचकारी ने किसी को भी नहीं छोड़ा है। सबके माथे पर प्रेम से चंदन मिश्रित गुलाल उन्होंने लगा दिया है। बहुत ही सुंदर गीत हम सब इसके रंग में रंग चुके हैं। बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर गीत क्या बात है वाह वाह वाह।
अश्विनी रमेश
चाँद तारों भरी महफिले रंग नें
”आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में।”
मद भरा ये समां नाचे झूमे यहां
रम गये हम यहाँ यों नये रंग में
रंग में रँग गये हम किसी के यहां
खो गये अब नयन मदभरे रंग में
होली आयी रे आयी रे होली ए हो
रँग के इक दूजे को नाचो रे रंग में
छेड़ दो रागिनी प्रेम की आज तो
खो सके सुरमयी बावरे रंग में
दौलते हुस्न के रंग तो कम चढ़े
रँग गये हम मगर सांवले रंग में
माफ़ करना हमें हो गये मस्त हम
रँग गये इस कदर हम तिरे रंग में
अश्विन जी ने बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है। पूरी ग़ज़ल होली के रंग में ही रँगी हुई है। होली के मूड को और ज़्यादा रंग में बढ़ाती हुई यह ग़ज़ल है। किसी के मदभरे रंग में रँग जाना ही तो होली होती है। मदभरे नयनों के रंग में जब कोई रंग जाता है तो उसके बाद ही तो होली होती है। होली में यही तो होता है कि हम एक दूसरे को रंग कर नाचते हैं गाते हैं और धमाल मचाते हैं। दौलते हुस्न के रंग हमेशा ही कम पड़ते हैं क्योंकि मन तो हमेशा ही साँवले रंग में रँगना चाहता है। यही तो असली रंग है। जो रंग मन पर चढ़ जाए वही असली रंग होता है जो तन पर चढ़ता है वह तो नकली रंग होता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
सुमित्रा शर्मा
झूम हर तृण रहा फाग के रंग में
बूटी ज्यों घुल गई हो हरे रंग में
शीत में थीं विरह के जो धूसर हुईं
चाह बौरा गईं फागुने रंग में
छोड़ दो जोगिया और वलकल अभी
आओ रंग दें तुम्हे इश्क के रंग में
ढाई आखर के रंग में जो डूब गया
रंग रहा वो हरेक दिन नए रंग में
पास घर के तुम्हारे क्या पार्लर खुला
रोज़ तुम सज रही जो नए रंग में
रंग भरने की बिरियाँ वो कौली भरें
बेधड़क हो अनंग ज्यों घुले रंग में
केश चांदी हुए तो अलग रौनकें
गात उजला लगे इस पके रंग में
पार सरहद उड़े रंग ये इश्क का
जो न भीगे ज़मीं खून के रंग में
ये जुनूँ इश्क का इस क़दर तक बढ़े
सांस रँगने लगे सांवरे रंग में
वाह वाह क्या ही सुंदर ग़ज़ल कही है सुमित्रा जी ने आनंद ही ला दिया है । मतले में ही जो बात कही है कि किस प्रकार से फाग के रंग में हर तिनका झूम रहा है जैसे कोई भांग पी रखी हो। बहुत ही सुंदर। और गिरह का शेर तो शायद पूरे मुशायरे का सबसे ज़बरदस्त शेर बना है। जोगिया और वलकल को छोड़कर इश्क़ के रंग में रंगने की जो बात कही है वह बहुत ही ग़ज़ब कही गई है बहुत ही सुंदर। ढाई आखर के रंग में डूबने की बात भी अगले ही शेर में बहुत अच्छे से कही गई है। और यहां से अपने रंग में आते हुए हास्य का रस ग़ज़ल ने पकड़ लिया है घर के पास पार्लर का खुलना और रोज़ नए रंग में दिखना यह बहुत ही सुंदर प्रयोग है। अगले शेर में ग़ज़ल घनघोर श्रंगार में डूब जाती है रंग भरने की बिरियां वो कौली भरें, अहा आनंद ही आनंद और मिसरा सानी रहस्य को खोलता हुआ। फिर उसके बाद अगला शेर केश में चांदी घुल जाने के बाद भी उस रंग का आनंद ले रहा है पके रंग का आनंद उठा रहा है। अंतिम शेर भी श्रंगार के रंग को समेटे हुए बहुत ही खूब बन पड़ा है, सांस के सांवले रंग में रंगना वाह क्या बात है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है क्या बात है वाह वाह वाह।
आई होली सभी रँग गये रंग में
हैं मुलाकातों के सिलसिले रंग में
सुब्ह आई सँवर सुनहरे रंग में
शाम घुलने लगी साँवरे रंग में
रंग अपना ज़रा घोल दे रंग में
देखूँ कैसी लगूँ मैं तेरे रंग में
रंग उतरे न ताउम्र इसका कभी
"आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में"
द्वार आँगन हँसी कहकहे गूँजते
रँग गया फ़ाग भी मसखरे रंग में
रंग ही रंग आयें नज़र हर तरफ़
रँग गई ज़ीस्त उम्मीद के रंग में
कोई जादू ही आता है शायद तुझे
अब मेरे रतजगे हैं तेरे रंग में
चाँदनी छा गई हर गली बाम पर
चाँद भीगा हुआ प्रीत के रंग में
लाल पीला हरा जामुनी चम्पई
भर गई हैं बहारें नये रंग में
एक झोंका हवा का मिला पत्तों से
छाँव सजने लगी धूप के रंग में
अनीता जी ने हमारे ब्लॉग परिवार के बारे में कहीं पढ़ा और बस वे आ गईं इस मुशायरे में शामिल होने। उनका चित्र नहीं मिला तो एक छोटी बिटिया का चित्र लगाया जा रहा है। मतला बहुत ही सुंदर है मुलाक़ातों के सिलसिले ही तो होते हैं जो किसी भी त्योहार को त्योहार बनाते हैं। अगले दोनों हुस्ने मतला भी सुंदर बन पड़े हैं सुबह का सुनहरे रंग में रँगना और शाम का साँवले रंग में डूबना, सुंदर चित्र है। और अगला हुस्ने मतला तो कमाल है किसी से अपना रंग रँग में घोलने की चाह ताकि उसमें स्वयं को रँग कर देखा जा सके, वाह क्या बात है। उसके बाद गिरह का शेर भी बहुत ही सुंदर बना है। बहुत ही सुंदर शेर। एक और सुंदर शेर जिसमें ज़ीस्त का उम्मीद में रँग जाना और हर तरफ़ प्रेम ही प्रेम दिखाई देना चित्रित है। और एक शेर जिसमें जादू से रतजगे का रंग जाना बहुत ही कमाल का शेर है। सच में यही तो ग़ज़ल का शेर होता है। अंतिम शेर में भी बहुत नाज़ुक बात कही गई है जिसमें हवा के झोंके से पत्तों का मिलना और छाँव का धूप के रंग में रँगना। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है अनीता जी ने। वे इस ब्लॉग पर पहली बार आईं हैं उनका स्वागत है। बहुत सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।
मन्सूर अली हाश्मी
आज फिर आ गये हैं गधे रंग में
भाँग पी चल रहे हैं रँगे रंग में।
मार दें न दुलत्ती कि बचिये ज़रा
हैं गधे आज कुछ चुलबुले रंग में।
बच के रहना सखी आज होरी के दिन
रोड पर फिर रहे हैं गधे रंग में।
ए-ए करते हुए शब्द के सिर चढ़े
कैसे-कैसे मिले काफिये रंग में।
वोट के बदले मिलते यहाँ नोट हैं
अब गुलाबी, थे पहले हरे रंग में।
शब्द में, अर्थ में, गीत में, छन्द में
आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में।
प्रीत में, रीत में, सुर में, संगीत में
गुन गुनाऊँ तुम्हें हर नये रंग में।
'हाश्मी'केसरी तो कन्हैया हरा
मित्रता से बने हैं सगे रंग में।
हाशमी जी हास्य रस की ग़ज़लें कहते हैं, यह उनका ही रंग है। मतला ही गधे को प्रतीक बना कर हास्य के माध्यम से मानसिकता पर व्यंग्य कस रहा है। बहुत ही अच्छा मतला। अगले ही शेर में एक चेतावनी सामने आ रही है जन साधारण को सूचित करते हुए। दुलत्ती से बचने की समझाइश देते हुए। और अगले शेर में सखी अपनी सखी को चेतावनी दे रही है कि बच के रहना आज सड़क पर गधे अपने रंग में फिर रहे हैं। अगले शेर में तरही मिसरा के क़ाफिये को ही लपेट लिया है शायर ने और ख़ूबी यह कि ए-ए की ध्वनि के साथ लपेटा है तो हमारे काफिये की भी ध्वनि है और गधे का भी यही स्वर होता है। वाह। वोट के बदले मिलते नोट में गुलाबी और हरे रंग का प्रयोग मिसरा सानी में बहुत ही सुंदर हुआ है, यह शेर बहुत कमाल का हुआ है। और गिरह का शेर जिस प्रकार एकदम रंग बदल लेता है वह चौंका देता है, जिन चीज़ों से रँगना चाहता है कवि वह बहुत सुंदर है। इसके ठीक बाद का शेर भी इसी प्रकार के भाव लिए हुए है। कितने तरीक़े से प्रेमी अपने महबूब को गुनगुनाना चाहता है। और मकते का शेर तो अंदर तक भिगो देता है। बहुत ही सुंदर भावना से भरा हुआ शेर। क्या बात है बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
तो आप सबको होली की शुभकामनाएँ। आपके जीवन में रंग रहें, उमंग रहे, उल्लास हो और जीवन ख़ुशियों से भरा रहे हमेशा। आप यूँ ही खिलखिलाते रहें, जगमगाते रहें। दाद देते रहें। और इंतज़ार करते रहें भभ्भड़ कवि भौंचक्के का।